मिसालः कहते थे लोग कि नहीं बजा सकतीं, लो बजा दिया बैंड

asiakhabar.com | January 6, 2018 | 4:55 pm IST

पटना। बाजा बजाने का काम “भैया राजा” ही करते आए हैं। क्या आपने कभी कोई बारात कोई शोभा यात्रा ऐसी देखी है, जिसमें महिला बैंड पार्टी एक्शन में हो? आइये मिलते हैं नारी गुंजन सरगम महिला बैंड पार्टी से। पटना से सटे दानापुर के ढिबरा-मुबारकपुर गांव की महिलाओं ने नारी सशक्तीकरण का नया अध्याय लिखा है।

महादलित समुदाय की इन 10 महिलाओं ने बैंड-बाजे के क्षेत्र में पुरुषों के एकाधिकार को ध्वस्त कर दिया। 2014 में जब इन्होंने इस काम को अंजाम देने की ठानी, तो लोगों ने जमकर मजाक उड़ाया। कहा, लो अब ये भी बैंड बजाएंगी…। मजाक ही नहीं विरोध भी सहा। लेकिन अंत में बैंड बजा डाला।

ऐस बनी बैंड पार्टीः

बात 2014 की है। पिछड़े समुदाय की ये महिलाएं और इनका परिवार कृषि मजदूर के रूप में जीविका चला रहे थे। कड़ी मशक्कत के बावजूद बमुश्किल रोटी का इंतजाम होता था। बच्चों की शिक्षा, स्वास्थ्य और अन्य बुनियादी आवश्यकताएं पूरी करना बूते की बात नहीं थी। ऐसे में सामाजिक कार्यकर्ता पद्मश्री सुधा वर्गीज मदद को आगे आईं।

विचार आया कि यदि ये महिलाएं बैंड पार्टी बना लें तो शादी-ब्याह के सीजन में अतिरिक्त कमाई कर सकती हैं। सुधा ने एक प्रशिक्षक का बंदोबस्त कर दिया। बैंड पार्टी में बजाए जाने वाले विविध वाद्यों को बजाना इन महिलाओं ने सीख लिया। दस महिलाओं इस टोली में जुटी थीं। अप्रैल 2015 में इन्होंने नारी गुंजन सरगम महिला बैंड का गठन किया।

मर्दों का काम मर्दों को ही सुहाता हैः

बैंड पार्टी से जुड़ीं सावित्री, पंचम, लालती, मानषी, चित्ररेखा, अनीता, सोना, विज्ञानवती, डोमनी और छठिया देवी कहती हैं कि जब बाजा बजाना सीख रहे थे, तो मर्द लोग मजाक उड़ाने लगे, कहते कि ये लो अब यही काम बाकी रह गया है…, ये बैंड-वैंड इधर नहीं चलेगा। बुजुर्ग महिलाओं ने भी ताने मारने में कसर नहीं छोड़ी। कहतीं, मर्दों का काम मर्दों को ही सुहाता है…। पतियों के गुस्से का भी सामना करना पड़ा। वे कहते थे, ढोल पीटने से पेट कैसे भरेगा…। घर-गृहस्थी उजड़ने का खतरा सामने था। लेकिन इन्होंने सब सहा। उम्मीद बड़ी चीज है। इन्हें उम्मीद थी कि ऐसा कर अपने परिवार को गरीबी से उबार देंगी। हुआ भी यही।

बदल गई जिंदगीः

टीम लीडर सविता कहती हैं कि बैंड से हमारी जिंदगी ही बदल गई है। हर सदस्या को हर माह 15,000 रुपये तक की आमदनी होने से घर-परिवार में हमारा सम्मान बढ़ गया है। ढिबरा-मुबारकपुर में सभी समझ गए हैं कि बैंड बजाना केवल मदोर् का काम नहीं है। फाइव स्टार होटल में जब हम बैंड बजाने जाते हैं, तो लोग देखते ही रह जाते हैं। गांव में भी चर्चा होती है। सुधा वर्गीज कहती हैं कि उम्मीद से अधिक सफलता मिली है। दूसरी महिला बैंड पार्टी की बुनियाद पुनपुन प्रखंड में रखी जा रही है।

मोबाइल पर होती है बुकिंगः

पंचम देवी बताती हैं कि बिहार के अलावा दूसरे राज्यों से भी बुलावा आता है। दिल्ली तो कमोबेश हर माह आना-जाना होता है। लोग मोबाइल पर संपर्क करते हैं। बैंड पार्टी की फीस के अलावा रहने-खाने तथा आने-जाने का खर्च भी वहन करते हैं। सरकारी आयोजनों के लिए प्रायःआमंत्रण मिलता रहता है। लग्न के दिनों की बुकिंग कई माह पहले हो जाती है। बैंड पार्टी में 10 महिलाएं हैं। पार्टी की हर माह इतनी आमदनी हो जाती है कि इससे प्रत्येक सदस्या को महीने का 15 हजार आसानी से मिल जाता है।


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