प्रोफेसर (डॉ.) दिनेश चमोला ‘शैलेश’ का सृजन-मूल्यांकन’ विषय पर सत्रहवां (17वां) राष्ट्रीय पाक्षिक व्याख्यान संपन्न

asiakhabar.com | December 27, 2024 | 11:57 am IST

नई दिल्ली। विभिन्न विधाओं में सात दर्जन से अधिक पुस्तकें लिखने वाले, साहित्य अकादमी के बाल साहित्य पुरस्कार से सम्मानित, चर्चित लेखक प्रोफेसर (डॉ.) दिनेश चमोला ‘शैलेश’ ने जहां गत दिनों कश्मीर विश्वविद्यालय, श्रीनगर (जम्मू एवं कश्मीर) में भारत सरकार, शिक्षा मंत्रालय द्वारा आयोजित तीन दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी में ‘ हिंदी पद्य साहित्य में संवाद कौशल’ विषय पर प्रभावी व्याख्यान दिया, वहीं दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा, मद्रास के संयोजन में ‘प्रख्यात हिंदी साहित्यकार प्रोफेसर (डॉ.) दिनेश चमोला ‘शैलेश’ का सृजन-मूल्यांकन’ विषय पर आयोजित पाक्षिक व्याख्यानमाला का सत्रहवां (17वां) ऑनलाइन व्याख्यान उनके चर्चित दोहा संग्रह ‘कान्हा की बांसुरी’ विषय पर केंद्रित रहा ।
समारोह के अध्यक्ष के रूप में विक्रम विश्वविद्यालय , उज्जैन (मध्य प्रदेश) के कुलपति, प्रोफ़ेसर अर्पण भारद्वाज रहे, कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय, कुरुक्षेत्र, हरियाणा की डीन, कला एवं भाषाएं, प्रो. पी. रानी,विशिष्ट अतिथि रहीं, जबकि प्रो.भगवान नामदेवराव गह्वाड़े , हिंदी विभाग, हैदराबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय, हैदराबाद,आमंत्रित विद्वान के रूप में रहे ।
अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में कुलपति, प्रोफ़ेसर अर्पण भारद्वाज ने कहा कि हिंदी के चर्चित साहित्यकार, प्रोफेसर (डॉ.) दिनेश चमोला ‘शैलेश’ के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा,चेन्नई जैसी देश की प्रतिष्ठित संस्था द्वारा अबाध गति से क्रमशः सत्रह पाक्षिक व्याख्यानों का आयोजन अपने आप में गौरवपूर्ण उपलब्धि है । प्रो.भारद्वाज ने कहा कि काव्य-सृजन नवरसों का आश्वादन कराता है; हमारे मन-मस्तिष्क को आनंदानुभूति नहीं कराता, अपितु इससे हृदय में छाए अंधकार, संत्रास, पश्चाताप आदि सब के बादल छंट जाते हैं । मैत्रीभाव, सौहार्द, प्रेम व मां के महत्व को शब्दों में उतारा नहीं जा सकता । सूरदास जी ने अपने आराध्य कृष्ण को लेकर जो वात्सल्य की पवित्र धारा प्रवाहित की, इसे जिस मार्मिकता से काव्य में कभी ने पिरोया है, उसके श्रवण व पठन में दृश्य एवं श्रव्य दोनों ही रूपों में दोहरा सुख मिलता है । काव्य की दृष्टि में इस रचना को परखा जा सकता है, प्रेरणा ली जा सकती है । ‘कान्हा की बांसुरी’ अपने आप में संपूर्ण महाकाव्यात्मक एवं काव्योचित भावों एवं गुणों को समेटे हुए है । इसमें विभिन्न प्रकार की मानवीय गुण, सौंदर्यबोध, माध्यबोध व आजपूर्ण कविता के समूचे गुण एक साथ दिखाई देते हैं । ‘ कान्हा की बांसुरी’ में लोक मंगल के कवि तुलसीदास की सी समन्वय भावना, लोकमंगल की भावना के संपूर्ण स्वर एक साथ दिखाई देते हैं । अत्यंत गुणग्राही इन दोहों के भाव, मर्मस्पर्शी के साथ साथ उल्लसित व प्रमुदित करने वाले हैं । साधना में।पागी इन कविताओं से पाठक जीवन की ऊर्जा ग्रहण कर सकते हैं । रचनाकार का निर्माण यूं ही नहीं हो जाता । इसके लिए कठोर साधना व तप अपेक्षित होता है । गुणों से संस्कारित रचना ही केवल किसी के हृदय को द्रवित व प्रभावित कर सकती है । इनमें कोमलकांत पदावली, दया, करुणा, राष्ट्रीय चेतना, ममत्व, वात्सल्य आदि गुणों से परिपूर्ण हैं । निश्चित रूप से यह महत्वपूर्ण दोहा संग्रह ‘कान्हा की बांसुरी’ हर विश्वविद्यालय के पाठ्यक्रम में पढ़ाया जाना चाहिए । मां विषयक दोहे अत्यंत हृदयस्पर्शी हैं । पर्यावरण से जुड़ी काव्यपंक्तियां मनुष्य को सचेत कर एक नया जीवन जीने की सामर्थ्य, शक्ति और प्रेरणा देती हैं । प्रोफेसर चमोला की ऊर्जावान कलम अत्यंत धनी है । इससे निश्चित रूप से हिंदी साहित्य प्रमुखत: लाभान्वित हो ही रहा है और आगे भी होता रहेगा । देवभूमि के इस ऋषि तुल्य कवि की रचना समूची मानवता के लिए प्रेरणा की भूमि जुटाती रहेगी, ऐसा मेरा दृढ़ विश्वास है ।
साहित्य समाज का दर्पण होता है और कविता जीवन का संगीत । जीवन रूपी संगीत की अनेक सुर-ताल एवं अवस्थाएं । काव्य इस सुर-ताल और संगीत की जटिलताओं को सरलीकृत कर जन सामान्य की चेतना के स्तर पर ले जाने का सहज माध्यम माना जाता है । प्रोफेसर दिनेश चमोला जी का यह काव्य संग्रह, जिसकी आज हम सभी चर्चा करने, उसे समझने के लिए एकत्रित हुए हैं, गागर में सागर के समान है…. और ‘गाएं गीत ज्ञान विज्ञान के’ नामक विज्ञान कविता संग्रह पर साहित्य अकादमी , भारत सरकार के बाल साहित्य पुरस्कार से भी आप समादृत हैं । प्रोफेसर चमोला जी ने इस काव्य के माध्यम से साहित्य, समाज, जीवन एवं संस्कृति के तमाम अनुभवजन्य पुष्पों को एकत्र कर जिस रूप में प्रस्तुत किया है, वह आपके पांडित्य का सुंदर उदाहरण है । प्रोफेसर चमोला जी का अकादमिक एवं लेखकीय योगदान हिंदी एवं गढ़वाली साहित्य में मील का पत्थर साबित होगा । प्रोफेसर चमोला जी का साहित्यिक योगदान, जीवन के उन्हीं दीर्घगामी एवं सार्थक क्षणों को प्रकट करता उदाहरण है । ऐसे विद्वान की काव्य संग्रह पर आजहो रहा यह आयोजन कई अर्थों में सार्थक रहा है ।
प्रोफेसर चमोला केवल उत्तराखंड में ही नहीं, अपितु समूचे भारतवर्ष में अपनी उत्कृष्ट रचनाधर्मिता के लिए सुविख्यात हैं । विगत 43 वर्षों से प्रो.चमोला की यह अखंड साधना इस बात का प्रमाण है कि वह एक सुधी अध्येता के साथ-साथ एक भावप्रवण कवि, जीवंत कथाकार, स्तंभ लेखक, साक्षात्कारकर्ता एवं चर्चित संपादक भी हैं । उन्होंने देश के प्रख्यात पत्रकारों, लेखकों, साहित्यकारों, वैज्ञानिकों तथा अनेक विभूतियों के अनेक साक्षात्कार भी लिए हैं जो आज से तीन-चार दशक पूर्व देश की असंख्य पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहे हैं । वह देश के कई राष्ट्रीय समाचार पत्रों में प्रखर परिचर्चाएं संयोजित करने के लिए भी विख्यात रहे हैं ।
विशिष्ट अतिथि के रूप में बोलते हुए *कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय* , कुरुक्षेत्र (हरियाणा) के डीन , कला एवं भाषाएं, प्रो. पी. रानी ने कहा कि प्रोफेसर चमोला अपनी साहित्यिक ऊर्जा और विशिष्ट उपलब्धियों के कारण समूचे देश में समादृत हैं । इस संग्रह की समूची कविताएं प्रकृति प्रेम, मानव-मूल्य, अनमोल जीवन, सृष्टि और आध्यात्मिक चिंतन के साथ-साथ बदलते मानव मूल्य के संरक्षण की चिंता करती कविताएं हैं । ये कविताएं सच्चे मानव और सच्चे और उत्कृष्ट समाज की चिंता करती कविताएं हैं । बदलते हुए मानव मूल्यों के संरक्षण की चिंता करती ये कविताएं आम आदमी की पीड़ा तथा नैतिक मूल्यों के साथ-साथ, पर्वतीय जीवन के सरोकारों से भरी पड़ी हैं ।
हमारा भारत विश्व गुरु आज भी है । यहां कोई कमी नहीं है, विदेश में आप सफल नहीं हो सकते । साहित्य में मानवता बहुविध दृष्टिगत होती है । पुरुष और प्रकृति के संसर्ग का सदचिंतन ही रचनात्मकता की दीर्घजीविता का प्रतीक है ।
आमंत्रित विद्वान के रूप में हिंदी विभाग, हैदराबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय, हैदराबाद के प्रो.भगवान नामदेवराव गह्वाड़े ने कहा कि प्रोफेसर चमोला का यह दोहा संग्रह कई मायनों में अद्भुत है । इसमें समूचा कालबोध व संवेदनात्मक चित्रात्मकता कई रूपों में बखूबी दिखाई देती है । इसमें प्रमुख रूप से जीवनमूल्यों का संचय है । शब्दों के रूपक, बहुविध मिथकीय चेतना व मत्मस्पर्शी जीवनानुभूतियों के बिंब, अलंकार आदि शब्द-शक्तियों के चमत्कार, इस संग्रह में यत्र तत्र मिलता है ।
इस प्रकार के राष्ट्रीय जागरण की समृद्धशाली व्याख्यान श्रृंखला की परंपरा का हिस्सा बनने तथा इस अनुष्ठान में सम्मिलित होने का शुभ अवसर मुझे दिया, इस हेतु स्वयं को सौभाग्यशाली मानता हूं । प्रोफेसर चमोला का एक-एक दोहा, गागर में सागर भरने की अपूर्व क्षमता रखता है । आज ह्रास होती हुई संवेदना के क्षरण काल में साहित्य, समाज में अपने विचारों के टिमटिमाते दीप लेकर चलता है । पूरा समाज उसके पीछे चलता है । लोकमंगल से उत्प्रेरित होता हुआ, इस संग्रह के प्रत्येक शब्द में राष्ट्र की चिंता व चिंतन है । जीवन मूल्यों के बिखराव की चिंता, अनेक विषयों पर अपने नैसर्गिक प्रवाह में दिखाई देती है । उनकी भावपूर्ण वाणी से…. कलम से ऐसा प्रतीत होता है मानों उनमें साक्षात सरस्वती विराजमान है । उनकी कविता में समाज की चिंता, बांसुरी के सात स्वरों और इंद्रधनुष के सात रंगों के समान है जो नव रसों का आस्वादन कराती है । हमारे मन मस्तिष्क को आनंदित करती है । उनका यह बेजोड़ संग्रह है।
ध्यातव्य है कि 14 जनवरी, 1964 को उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जनपद के ग्राम कौशलपुर में स्व.पं. चिंतामणि चामोला ज्योतिषी एवं श्रीमती माहेश्वरी देवी के घर मेँ जन्मे प्रो. चमोला ने शिक्षा में प्राप्त कीर्तिमानों यथा एम.ए. अंग्रेजी, प्रभाकर; एम. ए. हिंदी (स्वर्ण पदक प्राप्त); पीएच-डी. तथा डी.लिट्. के साथ-साथ साहित्य के क्षेत्र में भी राष्ट्रव्यापी पहचान निर्मित की है। अभी तक प्रो. चमोला ने उपन्यास, कहानी, दोहा, कविता, एकांकी, बाल साहित्य, समीक्षा, शब्दकोश, अनुवाद, व्यंग्य, खंडकाव्य, व्यक्तित्व विकास, लघुकथा, साक्षात्कार, स्तंभ लेखन के साथ-साथ एवं साहित्य की विविध विधाओं में लेखन किया है ।
पिछले तेतालीस (43) वर्षों से देश की अनेकानेक पत्र-पत्रिकाओं के लिए अनवरत लिखने वाले चर्चित साहित्यकार, प्रो.चमोला राष्ट्रीय स्तर पर साठ से अधिक सम्मान व पुरस्कार प्राप्त कर चुके हैं व सात दर्जन से अधिक मौलिक पुस्तकों के लेखक के साथ-साथ हिंदी जगत में अपने बहु-आयामी लेखन व हिंदी सेवा के लिए सुविख्यात हैं ।
आपकी चर्चित पुस्तकों में ‘यादों के खंडहर, ‘टुकडा-टुकड़ा संघर्ष, ‘प्रतिनिधि बाल कहानियां, ‘श्रेष्ठ बाल कहानियां, ‘दादी की कहानियां¸ नानी की कहानियां, माटी का कर्ज, ‘स्मृतियों का पहाड़, ’21श्रेष्ठ कहानियां‘ ‘क्षितिज के उस पार, ‘कि भोर हो गई, ‘कान्हा की बांसुरी, ’मिस्टर एम॰ डैनी एवं अन्य कहानियाँ,‘एक था रॉबिन, ‘पर्यावरण बचाओ, ‘नन्हे प्रकाशदीप’, ‘एक सौ एक बालगीत, ’मेरी इक्यावन बाल कहानियाँ, ‘बौगलु माटु त….,‘विदाई, ‘अनुवाद और अनुप्रयोग, ‘प्रयोजनमूलक प्रशासनिक हिंदी, ‘झूठ से लूट’, ‘गायें गीत ज्ञान विज्ञान के’ ‘मेरी 51 विज्ञान कविताएँ’ तथा ‘व्यावहारिक राजभाषा शब्दकोश’ आदि प्रमुख हैं। हाल ही में आपकी अनेक पुस्तकें- ‘सृजन के बहाने: सुदर्शन वशिष्ठ’; ’21 श्रेष्ठ कहानियां’ (कहानियां); ‘बुलंद हौसले’ (उपन्यास); ‘पापा ! जब मैं बड़ा बनूंगा’; ‘मेरी दादी बड़ी कमाल’ (बाल कविता संग्रह) तथा ‘मिट्टी का संसार’ (आध्यात्मिक लघु कथाएं) आदि प्रकाशित हुई हैं।
प्रो. चमोला ने 22 वर्षों तक चर्चित हिंदी पत्रिका “विकल्प” का भारतीय पेट्रोलियम संस्थान, देहरादून से संपादन किया है तथा दो बार इस पत्रिका को भारत के राष्ट्रपति के हाथों प्रथम व द्वितीय पुरस्कार दिलाया है । आप देश के विभिन्न विश्वविद्यालयों, आयोगों व संस्थानों की शोध समितियों ; प्रश्नपत्र निर्माण व पुरस्कार मूल्यांकन समितियों के सम्मानित सदस्य/विशेषज्ञ हैं।


Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *