गोपाल बघेल ‘मधु’
टोरोंटो, ओन्टारियो, कनाडा
संसार बड़ा असार है,
पर असर इसका खूब है;
जो सार इसका जानता,
आनन्द लेकर झूमता!
सब कुछ यहाँ पर हो रहा,
कर्त्ता नज़र ना आ रहा;
कर्त्तव्य जो हैं कर रहे,
ना जानते क्यों हो रहा!
सब शून्य में प्रकटा हुआ,
जाता समाया उसी में;
तल अतल जल थल औ अनल,
है अनिल भी उस सूक्ष्म में!
आत्मा असल बाक़ी नक़ल,
मन पंचभूत औ जीव शिव;
उसका ही योग प्रयोग है,
उसका ही तंत्र सुयोग है!
हर कोई नियंत्रित यहाँ है,
परतंत्र हुए स्वतंत्र है;
‘मधु’ प्रभु से कम कोई कहाँ है,
ना जानता यह बात है!