-डा. रवीन्द्र अरजरिया-
तृतीय विश्व युध्द के दरवाजे पर दस्तक हो चुकी है। विशेष सम्प्रदाय का राज्य, वर्चस्व की स्थापना और सीमाओं के विस्तार को लेकर जंग का माहौल बन चुका है। आतंकी गिरोहों को तैयार करके सम्प्रदायिकता का परचम फहराने वाले राष्ट्रों अपने मंसूबे जाहिर कर दिये हैं। उन्होंने हमास के कन्धे पर हाथ रखकर निरीह लोगों को मौत के घाट उतारा, अबलाओं की अस्मिता लूटी और आम आवाम का अपहरण किया। भयाक्रान्त करके अपनी शर्तें मनवाने के लिए किया गया यह दुष्कृत्य उसके ही गले की फांसी बन गया। प्रतिशोध की ज्वाला ने गाजा को जलाना शुरू कर दिया। हमास ने अपने गैरमानवीयता वाले षडयंत्र पर मानवता की दुहाई देना शुरू कर दी। मासूमों के मदरसों, यतीमों के यतीमखानों, बीमारों के अस्पतालों, इबादत वाली मस्जिदों जैसे संवेदनशील जगहों के नीचे हमास की सुरंगें बदस्तूर इजराइल पर जबाबी कार्यवाही करके जुल्म का रोना रोता रहा। फिलिस्तीन के लोगों ने अपने मासूमों को लाशों में बदलना कुबूल किया परन्तु हमास के जल्लादों को बेनकाब नहीं किया। खण्डहर होती इमारतों में तडफते लोगों का मंजर किसी वीभत्स दृश्य की करुण कहानी कहते रहे मगर कट्टरता का पाठ सांसों की कीमत पर ही रटाया जाता रहा। हमास के पास इतना पैसा कहां से आया कि वह हजारों किलोमीटर लम्बी सुरक्षित और आधुनिक संसाधनों से युक्त सुरंगें बना सका। मिसाइलों, गोलों, राकेट लांचरों, मशीनगनों जैसे अत्याधुनिक हथियारों की खरीद हेतु धनराशि के अलावा अवैध डील करने के सम्पर्क कहां से आये। अन्तर्राष्ट्रीयस्तर पर पहचान बनाने की नवीनतम तकनीक कहां से आई। इन जैसे सभी सवालों का एक ही जबाब है कि साम्प्रदायिक एकता के नारे तले कट्टरता का बुलंद होता इकबाल। यह सब एक ही दिन में नहीं हुआ। जनसंख्या के विस्तार के साथ ही समूची दुनिया पर कब्जा करने की नियत ने भी विकास पाया। आवश्यकता से अधिक की आय ने खुराफाती जुमले इजाद करना शुरू कर दिये। कहीं तेल की इफरात कमाई तो कहीं फितरा का हिस्सा। कहीं जकात का पैसा तो कहीं मजहबी मजलिसों के नाम पर बक्शीस। कट्टरता के नाम पर लोगों के दिमाग में जिस्म के बाद की दुनिया का तिलिस्म पैदा किया गया। इंसानियत का ब्रेनवाश करने के बाद उन जुनूनी जमातों को जेहाद की जमीन पर जंग के लिए उतार दिया गया। धीरे-धीरे इस जहर को खून में शामिल करने के बाद जगह-जगह इनके अड्डे बनाये गये जहां से दुनिया को अपनी जद में लिया जा सके। हमास की जेहादी सोच पर जब इजराइल ने हमला किया तो हिजबुल्लाह ने चौधरी बनकर धमकाना शुरू किया। जब हिजबुल्लाह के अड्डे नस्तनाबूत होने लगे तो हूती ने हमलों की कमान सम्हाली। हमास, हिजबुल्लाह और हूती के बाद दुनिया के नौ आंतकी संगठन अब अपनी बारी के लिए अंधेरी कोठरी में दुबके बैठे आकाओं की ओर देख रहे हैं। वहां से हरी झंडी मिलते ही एक-एक करके वे इस जंग में कूद जायेंगे। लेबनान के बाद ईरान, ईराक, कतर, यमन, सीरिया, तुर्की, पाकिस्तान, बंगलादेश और अफगानस्तान के लडाके अपनी जेहादी तैयारियों में जुट गये हैं। आतंकी संगठनों के नाम पर अनेक देशों की सेना के जवान, सिक्यूरिटी कमाण्डो, सुरक्षाबल के सैनिक भी वर्दी उतार कर दुनिया फतह करने निकल पडेंगे। ऐसे में वे देश भी नहीं बचेंगे जिन्होंने अपने लाभ के लिए जल्लादों के हाथों में अस्तुरे बेचे हैं। गवाही है कि अमेरिका के पैदा किये आतंकियों ने उसे भी नहीं बक्सा था। हथियारों के सौदागरों ने अपने खूनी कारोबारों को चमकाने के लिए निरीह लोगों को निशाना बनाने वालों की पर्दे के पीछे से मदद की है। उनका मानना था कि वे इन जालिमों का उपयोग करके पैसा भी कमायेंगे और अपने दुश्मनों को नस्तनाबूत करने में भी सफल हो जायेंगे। प्रतियोत्तर में दुश्मनों ने भी उनके लिए ऐसे ही बंदोबस्त पहले से ही कर रखे थे। चीन, अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा जैसे देशों ने हमेशा से ही फूट डालो, राज करो की नीति अपनाई है। मानवता, करुणा, सहयोग, सौहार्य जैसी भावनायें इनकी सोच में कभी नहीं रहीं। वर्तमान में यदि देखा जाये तो इजराइल अकेला ही कट्टरता की जमातों से टकरा रहा है। बाकी देश यह सोच रहे हैं कि पडोसी के यहां संकट हैं, हमें क्या फर्क पडता है। ईमानदाराना बात तो यह है कि जो समस्या आज प्रत्यक्ष में इजराइल झेल रहा है, वही समस्या अपने मुल्कों के अन्दर अधिकांश गैरइस्लामिक देश भी झेल रहे हैं। ज्यादातर तो गृह युध्द के साथ-साथ पडोसियों के साथ होने वाली जंग की कगार पर पहुंच चुके हैं। बंगलादेश जैसे राष्ट्र तो वर्तमान का उदाहरण बनकर खडा है जहां षडयंत्रकारियों ने उस भू भाग को स्वतंत्र पहचान दिलाने वाले व्यक्ति तक को वहीं के मीरजाफरों से ही मिटवा दिया। गुलामी से आजादी दिलाने वाले की मूर्ति को गुलाम बनाने वालों के इशारे पर तोड दिया गया। अन्य देशों में भी ऐसी जमातें आंतरिक हालातों को तौल रहीं है। वजन बढते ही, वहां भी डंडे के नीचे झंडे कुचलते देर नहीं लगेगी। सरकारी तंत्रों पर कब्जा करने की पहल तो अनेक देशों में लम्बे समय ही शुरू हो चुकी थी। वर्तमान में यदि अपने देश के हालातों को ही ले लें तो विधायिका पर कार्यपालिका हावी हो चुकी है। न्यायापालिका भी कार्यपालिका की बैसाखी पर खडी है। कार्यपालिका का अपना अलग ही रवैया है। किस कानून को किस तरह से लागू करना है, लागू करना है भी या नहीं। यह बात अनेक घटनाओं से अनेक बार प्रमाणित हो चुकी है। नियम-कानूनों का चाबुक केवल और केवल निरीह लोगों या उसे सम्मान देने वालों पर चलता है। कानून तोडने वाले अतिक्रमण से लेकर मनमाने कृत्यों तक को खुलेआम सम्पन्न कर रहे हैं। कानून के रखवालों की आंखों के नीचे ही कानून की रोज धज्जियां उड रहीं हैं। सरकारी मुलाजिम-भाई भाई, का नारा बुलंद होकर संविधान की अनेक अघोषित धारायों दलालों के माध्यम से व्यवहारिक रूप में लागू हो चुकीं हैं। दूूसरी ओर एक समुदाय विशेष ने सामाजिक व्यवस्था को जनसंख्या और क्रूरता के बल पर अपहरित कर लिया गया है। राजनैतिक गलियारों में वोट बैंक बढाने के लालच में देश की अस्मिता तक का सौदा होने लगा है। हरामखोरों को मुफ्त में सुविधायें देकर उन्हें आतंक फैलाने के लिए भरे पेट छोड दिया गया है। गैरमुस्लिम नेता अपनी धर्मनिरपेक्षता की छवि दिखाने के चक्कर में अपनों का ही खून बहाने का धरातल तैयार करने में लगे हैं। उन्होंने यह मुगालता पाल रखा है कि ऐसा करने पर गैरमुस्लिम वोट उनके खाते में एक मुस्त आ जायेगा, जबकि हकीकत में ऐसा नहीं हो रहा है। अतीत को भूलने वाले लोग आज अपने बाप-दादाओं के खून से सने हाथों पर ही पुष्पहार रख रहे हैं। गहराई से देखा जाये तो देश-दुनिया के हालात बारूदी ज्वालामुखी के बस एक कदम की दूरी पर है। ऐसे में वीभत्य दृश्यों के साथ गूंजती विश्व युध्द की टंकार को यदि समय रहते शान्त नहीं किया गया तो निकट भविष्य में कट्टरता के साथ विश्व संग्राम सुनिश्चित है। इस बार बस इतनी ही। अगले सप्ताह एक नई आहट के साथ पुन: मुलाकात होगी।