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भारत एक लोकतांत्रिक और संवैधानिक राष्ट्र है। कानून का राज है, तटस्थ और विवेकी न्यायपालिका है। इस देश में वक्फ बोर्ड भी है। वह जिस इमारत, जमीन, गांव और सैकड़ों साल पुराने मंदिर और मठ की तरफ अपनी उंगली उठाता है, तो वह उसकी संपत्ति मान ली जाती है। बेशक विवादों के लिए एक ट्रिब्यूनल भी है, लेकिन उसमें 40,950 से अधिक मामले अब भी लंबित पड़े हैं। 9942 मामले ऐसे भी हैं, जो मुसलमान वादियों ने ही वक्फ के खिलाफ कर रखे हैं। देश में सेना और रेलवे के बाद सबसे अधिक वक्फ बोर्ड के अधीन 9.40 लाख एकड़ जमीन है। आर्थिक विश्लेषण किया जाए, तो उस जमीन से 1.25 लाख करोड़ रुपए की आमदनी होनी चाहिए। वक्फ जमीन के कब्जेबाज सिर्फ 200 करोड़ रुपए की आमदनी ही मानते रहे हैं। क्या यह किसी घोटाले की ओर संकेत करता है?
क्या ऐसी निरंकुशता और कानूनहीनता किसी संवैधानिक देश में स्वीकार्य हो सकती है? यह बुनियादी आधार है, जिस पर वक्फ बोर्ड के नए कानून, नए नियमों और पूरी तरह कानूनी प्रारूप के लिए मौजूदा कानून में संशोधन अनिवार्य है। भारत में सेंट्रल और राज्य के कुल 30 बोर्ड कार्यरत हैं। लाखों संपत्तियां वक्फ बोर्ड के अधीन हैं, लेकिन आम मुसलमान के लिए कोई फायदा नहीं। आम मुसलमान के लिए कोई अधिकृत अस्पताल नहीं। आधुनिक स्कूल, कॉलेज नहीं हैं। जरूरतमंद के लिए आर्थिक मदद की कोई विशेष योजना नहीं है। मुसलमानों की स्थिति पर सच्चर कमेटी की रपट में भी वक्फ पर कई गंभीर और तल्ख टिप्पणियां की गई थीं। दरअसल एक ताकतवर तबके के वक्फ बोर्ड के जरिए लाखों संपत्तियों पर अवैध कब्जे हैं। संविधान के अनुच्छेद 14, 15 और 29 के तहत न तो किसी के मौलिक अधिकार छीने जा रहे हैं, न मजहबी आजादी को ‘गुलाम’ बनाया जा रहा है और न ही सरकार किसी मस्जिद, इबादतगाह, दरगाह, मदरसों, कब्रिस्तानों आदि पर कब्जे के मंसूबे पाले बैठी है।
संविधान और प्रभावशाली न्यायपालिका के देश में यह करना संभव भी नहीं है। मुस्लिम सांसद ओवैसी साक्ष्यों और अतीत की घटनाओं के आधार पर यह साबित करें कि सरकार वक्फ संशोधन कानून इसलिए बनाना चाहती है, ताकि मुसलमानों की वक्फ परिसंपत्तियों को हड़पा जा सके। मुस्लिम और उनके वोट बैंक पर जिंदा राजनीतिक दलों के नेता औसत मुसलमान को भडक़ाने और आंदोलित करने की सियासत कर रहे हैं, लिहाजा राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष मल्लिकार्जुन खडग़े ने वक्फ बिल पर संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) की 655 पन्नों की रपट को ‘फर्जी’ करार दिया है। उसे अलोकतांत्रिक, संविधान-विरोधी और प्रक्रिया-विरोधी भी माना है। लोकतांत्रिक भारत में ‘असंवैधानिक’ तो यह है कि वक्फ संपत्तियों का कोई ‘सेंट्रल डाटा’ ही उपलब्ध नहीं है। वक्फ वाले तो संसद भवन की जमीन को भी वक्फ की संपत्ति मानते हैं। शुक्र है कि अभी राष्ट्रपति भवन उनकी निगाहों से बचा हुआ है। वक्फ को लालकिला और कुतुब मीनार की जमीन को भी वक्फ की संपत्ति मानने में कितना वक्त लग सकता है? हैरान व्यवस्था है कि वक्फ ट्रिब्यूनल के फैसले को किसी अदालत में चुनौती नहीं दी जा सकती! अब संशोधित बिल के अनुसार ट्रिब्यूनल के फैसले को राजस्व अदालत, सिविल कोर्ट और उच्च न्यायालय में चुनौती दी जा सकेगी। वक्फ में ऐसे कई बिंदु और व्यवस्थाएं हैं, जिन्हें कानून के दायरे में लाना संसद का दायित्व है।