एनएसएसओ का ताजा सर्वे सामने आया है। इस सर्वे के अनुसार भारत में 15 से 29 वर्ष की आयु वर्ग के 38 करोड़ युवाओं में से हर तीसरा युवा ना तो कोई पढ़ाई कर रहा है। नाही कहीं प्रशिक्षण ले रहा है और नाही कोई कारोबार कर रहा है। इस सर्वे के अनुसार लगभग 12 से 13 करोड युवा पूरी तरह से बेरोजगार रहकर घर बैठे हैं। उनके सामने आगे कोई लक्ष्य भी नहीं है। सर्वे के अनुसार 2036 तक यह स्थिति और भी विकराल हो सकती है।
सरकार ने लोकसभा में जो आंकड़े प्रस्तुत किए हैं। उसमें पिछले 8 वर्ष में प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना में हर 4 प्रशिक्षित युवाओं में से एक युवा को ही नौकरी या रोजगार मिला है। बाकी 4 में से 3 प्रशिक्षण के सर्टिफिकेट लिए हुए घूम रहे हैं। सरकारी आंकड़ों के अनुसार तीसरे चरण में मात्र 10 परसेंट युवा ही प्रशिक्षित होकर नौकरी प्राप्त कर सके हैं। यह नौकरी भी कुछ ही महीने रहती है। उसके बाद यह नौकरी भी बेरोजगारी में तब्दील हो जाती है। ऐसा युवाओं के बीच सर्वे करने के बाद पाया गया है। सरकार ने अभी तक 18800 करोड रुपए प्रशिक्षण में खर्च करके 1 करोड 32 लाख युवाओं को कौशल विकास का प्रशिक्षण दिया है। हर युवा पर सरकार ने 16000 रुपये खर्च किए। इसके बाद भी सरकारी रिकॉर्ड के अनुसार ही 30 लाख युवा अपनी आजीविका चलाने के लायक प्रशिक्षित हुए हैं।
स्नातक एवं परास्थानक तक शिक्षित युवओं को 10 से 15 हजार रुपये की नौकरी भी निजी अथवा सरकारी स्तर पर उपलब्ध नहीं हो रही है। केन्द्र एवं राज्य सरकारों के 1 करोण से ज्यादा स्वीकृत पद वर्षों से खाली पड़े हुए हैं। संविदा में सरकारें 8 से 15 हजार रुपये तक की नौकरी दे रही है। यह नौकरी कितने दिन रहेगी यह भी युवाओं को पता नहीं है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 15 (3) और 39 के तहत यह जवाबदारी सरकार की है। सरकार ऐसी नीतियां बनाए, जिससे लोगों को रोजगार अथवा नौकरी प्राप्त हो। समय रहते केंद्र एवं राज्य सरकारों ने विशेष रूप से शिक्षा पद्धति का जो मॉडल बनाया है। यदि वह ठीक नहीं किया तो इतनी बड़ी युवा शक्ति को संभालना किसी के बस की बात नहीं होगी। भूखे भजन न होय गोपाला की तर्ज पर जब युवा के पास कोई काम नहीं होगा, तो वह किस तरह की प्रतिक्रिया देगा, यह सरकार को सोचना चाहिए।