मैत्रेयी भारत
डॉ. विपुल कुमार भवालिया
भिन्न-भिन्न यह बोली भाषा,
करती मैत्री की अभिलाषा।
दूर देश से जो भी आए,
उनकी रही ये भारत आशा।।
कोई मस्तिष्क, कोई पैर पूजा,
कोई दायीं और कोई बाईं भुजा।
चाहे लद्दाख, तमिलनाडु, हो फिर अरुणाचल, गुजरात,
सभी की यहां पर एक ही बात।।
कोई पहने साड़ी, कोई बुर्का,
कोई कोट-पेंट, कोई धोती-कुर्ता।
भिन्न-भिन्न यह वेशभूषा,
ना अलग कोई एक दूजा।।
विभिन्न धर्मो की जन्मस्थली,
बन गई विश्व की तीर्थस्थली।
हमने मैत्री, करुणा सिखाई,
बन गया भारत ज्ञानस्थली।।
हम करते प्रकृति की पूजा,
चाहे सर्प, चांद-सूरज, पर्वत, वृक्ष, या हो गाय।
या फिर हो नदी का बहाव,
हमें सभी से है अद्भुत लगाव।।
प्यार-प्रेम से सबसे रहते,
पहले हम कुछ कहते नहीं।
पर कोई हमें जब आंख दिखाएं,
फिर हम उसको सहते नहीं।।
धन्य-धन्य ये भारत भूमि,
जिस पर हमारा जन्म हुआ।
जो बन गया अप्रवासी,
वो इस मिट्टी से ना अलग हुआ।।
वैभवशाली भारत का इतिहास रहा,
संपूर्ण जगत इसका कायल हुआ।
इसी से दिल में हूक उठी,
भारत से मित्रता की भूख बढी।
ना ही किसी से झुकने वाले,
ना ही किसी से मिटने वाले।
चाहे जितना जोर लगा लो,
किसी भी देश के दुनिया वालों।।
हम भारतवासी मुखर-प्रखर हैं,
कला, शिल्प, ज्योतिष, अध्यात्म, आयुर्वेद, विज्ञान में।
यह गर्व है हमें और सत्य भी है,
सबसे आगे हैं हम, ज्ञान में, इस जहान् में।।