मालदीव में हुए चुनाव में मोहम्मद मोइज्जू के दल ने 71 सीटों पर जीत हासिल की है। राष्ट्रपति मोइज्जू के नेतृत्व वाली पीपुल्स नेशनल कांग्रेस (पीएनसी) ने बीसवी पीपुल्स मजलिस यानी संसद में कुल 93 में से 68 सीटें जीतीं। इसके गठबंधन साझेदारों मालदीव नेशनल पार्टी व मालदीव डेवलपमेंट एलायंस ने क्रमश: एक व दो सीट जीती। जो संसद के दो तिहाई बहुमत से अधिक है। पिछले साल चुनाव जीतने के बाद यह चुनाव उनकी सबसे बड़ी राजनीतिक परीक्षा की तरह देखा जा रहा था। मुइज्जू की प्रचंड कही जा रही यह जीत चीन समर्थक व भारत विरोधी नीतियों के तौर पर देखी जा रही है। मौजूदा मजलिस में पूर्व राष्ट्रपति मोहम्मद सोलीह को भारत समर्थक माना जाता है। अब तक बहुमत में रहे उनके दल मालदीवियन डेमोक्रेटिक पार्टी ने पिछले दिनों मुइज्जू सरकार के मंत्रियों की नियुक्ति रोक दी थी। ताजा चुनाव में उन्हें भारी हार का सामना करना पड़ा। मालदीव की आर्थिक स्थिति बेहद चिंतनीय है। उस पर पहले ही भारी कर्ज है, जिस पर अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष चेतावनी भी दे चुका है। मुइज्जू के सत्ता में आने के बाद भारत से रिश्तों में आई खटास बढऩे का अंदेशा व्यक्त किया जा रहा है। कहा जा रहा है भारतीय सैनिकों की वापसी के फैसले के कारण ही उन पर मतदाताओं का भरोसा बढ़ा है। चीन इसका लाभ उठाने की संभावनाओं की तलाश में पहले ही है। वह करोड़ों डॉलर कर्ज दे चुका है। चीन के निमंत्रण पर वहां दौरा कर मुइज्जू भारत को स्पष्ट संकेत दे चुके हैं। वे यूएई व तुर्की भी गए पर भारत नहीं आए, जबकि इससे पहले अब तक वहां के राष्ट्रपति यहां आते रहे हैं। हम छोटे देश हैं, उसका मतलब यह नहीं कि हमें धौंस दिखाने का अधिकार है, मुइज्जू ने यह बयान भारत का नाम लिये बगैर दिया था। बल्कि उन्होंने अपनी रैली में साफतौर पर कहा कि चीन उन्हें नॉन लीथल हथियार मुफ्त देने को राजी है। इससे पहले ही चीन के साथ मालदीव सरकार के सैन्य समझौतों को लेकर भारत की चिंताएं बढ़ चुकी हैं। भारतीय पर्यटकों की पसंदीदा जगह होने के साथ ही मालदीव हम पर खाद्य व निर्माण सामग्री के लिए निर्भर होने के चलते रिश्तों को इतना बिगाडऩे से पहले सोचेगा जरूर। चीन से नजदीकी व लाभ के बावजूद दोनों देशों को शांतिपूर्ण संबंधों के भरसक प्रयास करने चाहिए। जो विश्व शांति व भाईचारे के लिहाज से भी समय की मांग हैं।