अशोक कुमार यादव मुंगेली
तिरंगा आन-बान-शान है वतन के।
इसके वास्ते, मर मिटूँगा कसम से।।
सीमा में जान की आहुति देने मैं चला।
मेरे रहते माँ तू फिक्र करती क्यों भला?
वर्दी खून से लाल-लाल लथपथ है।
मातृभूमि की रक्षा करूँगा शपथ है।।
तेरे लिए गोलियाँ खा लूँगा बदन पे।
तिरंगा आन-बान-शान है वतन के।।
न कभी हारा था, न ही अब हारूँगा।
न कभी रूका था, न ही अब रूकूँगा।।
मन में साहस भर के मैं लड़ता रहूँगा।
लेकर हाथ में तिरंगा आगे बढ़ता रहूँगा।।
मर जाऊँ तो, राष्ट्र ध्वज हो कफन के।
तिरंगा आन-बान-शान है वतन के।।
नव जीवन पा फिर जिंदा हो जाऊँगा।
जन्म लेकर मैं भारत भूमि में आऊँगा।।
सिपाही बन प्राण अर्पित करने तत्पर।
तुम्हारी सेवा करने के लिए आगे सत्वर।।
वंदे मातरम बोलूँगा गीत देश सदन के।
तिरंगा आन-बान-शान है वतन के।।