-राकेश अचल-
कम से कम हमारी पीढ़ी ने तो कभी नहीं सोचा था कि भारत जैसे महान देश में सियासत में गारंटी पर भी गारंटी दी जाएगी। लोग घोषणापत्रों पर नहीं व्यक्तियों की निजी गारंटी पर वोट देंगे और सुविधाएं लेंगे। लेकिन आज गारंटी की राजनीति ही एक कड़वा सच है। आप इसे मीठा सच भी मान सकते हैं बाशर्त कि आपके मन में भक्ति-भाव आम आदमी के मुकाबले कुछ ज्यादा हो, या आपकी दृष्टि कुछ ज्यादा धुंधली हो गयी हो। कायदे से गारंटी उपभोक्तावाद का प्रमुख लक्षण है। गारंटी में प्रोडक्ट की अदला-बदली का करार होता है, लेकिन सियासत की गारंटी में ऐसा कुछ नहीं है।
आज की सियासत में गारंटी का युग शुरू करने का एकमेव श्रेय प्रधानमंत्री माननीय श्री नरेंद्र मोदी जी को जाता है। उनसे पहले न उनके वंशजों ने गारंटी की सियासत की थी और न उन कांग्रेसियों ने जिन्होंने देश की आजादी की लड़ाई में अग्रणीय भूमिका अदा की थी। नेहरू, शास्त्री, गाँधी, सिंह , राव और मन मोहन सिंह, जैसे प्रधानमंत्रियों को तो छोड़िये चौमासा प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह, चंद्रशेखर , आइके गुजराल या हरदन हल्ली देवगौड़ा के अलावा माननीय अटल बिहारी बाजपेयी भी राजनीति में गारंटी का युग शुरू नहीं कर पाए। बाजपेयी जी ने इंडिया को साइन करने की कोशिश की थी तो उन्हें देश की जनता ने चमका दिया, लेकिन मानना पडेगा कि मोदी जी ने बाजपेयी जी को चमकाने का बदला देश की जनता से अच्छे दिन आएंगे का मिथ्या नारा देकर बराबर कर लिया।
आजकल देश में कम से कम 80 करोड़ लोगों को रोजगार की गारंटी भले ही न दी गयी हो लेकिन आने वाले पांच साल तक दो जून मुफ्त अनाज देने की गारंटी जरूर दी गयी है। जाहिर है कि आने वाले पांच साल तक उनके दिन नहीं बदलने वाले। मोदी जी की गारंटी से माँ हो या बाबा सब मजबूत हो रहे हैं, ऐसा आजकल हमें टीवी चैनलों पर आ रहे विज्ञापनों से पता चल रहा है। विज्ञापनबाजी में सरकारों के बीच एक अंधी प्रतिस्पर्द्धा चल रही है। सिंगल इंजिन की सरकार हो या डबल इंजिन की सरकार बराबर अपनी गारंटियों का विज्ञापन कर रहीं है। इस कुकृत्य में न मोदी पीछे हैं है और न भगवंत सिंह मान।
बहरहाल बात सियासत में गारंटी की चल रही है। मोदी जी ने दो आम चुनाव केवल जुमलों के बूते जीते थे, अब वे तीसरा चुनाव गारंटी के बल पर जीतना चाहते है। उनकी इच्छाशक्ति का कोई मुकाबला नहीं है। वे जो ठान लेते हैं, कर दिखाते है। उन्होंने ठाना कि वे जलते हुए मणिपुर नहीं जायेंगे तो देख लीजिये नहीं गए। उन्होंने ठान लिया कि वे सब कुछ करेंगे किन्तु आन्दोलनजीवी किसानों से संवाद नहीं करेंगे, तो उन्होंने अब तक नहीं किया। मोदी जी एक-एक दिन में चार राज्यों में चुनावी रैलियां करते हैं लेकिन किसानों से संवाद नहीं करते। उन्हें पता है कि यदि बात करेंगे तो किसानों को भी गारंटी देना पड़ेगी और मोदी जी के पास किसानों को देने के लिए कुछ बचा नहीं है। सब कुछ अडानी, अम्बानी और मोदियों की फ़ौज पहले ही लूट-पाट चुकी है।
मोदी जी ने गारंटी नहीं दी इसीलिए आप देख लीजिये कि कल शेयर बाजार में एक झटके में आम जनता के साथ अडानी जी के भी 13 लाख करोड़ रूपये स्वाहा हो गए। 13 लाख करोड़ रूपये कुछ होते हैं, लेकिन किसी को भी इस होम का धुंआ उठता नहीं दिखाई दे रहा है। न भाजपा बोली और न कांग्रेस। बाकी की तो बोलने की हैसियत ही नहीं बची है। देश के किसान पहले एक साल दिल्ली के बाहर डेरा डेल रहे, सात सौ किसानों की जान चली गयी किन्तु किसी किसान को न तब किसी सियासत ने एमएसपी की गारंटी दी और न आज एक माह से ज्यादा से दिल्ली के बाहर डेरा डेल किसानों को कोई गारंटी देने के लिए तैयार है। मोदी जी किसानों की रैली के जबाब में दिल्ली में पार्टी के लिए रैली कर सकते हैं किन्तु किसानों को ज़रा सी गारंटी नहीं दे सकते, क्योंकि जानते हैं की किसान उनका, उनकी पार्टी का और उनकी सरकार का बाल भी बांका नहीं कर सकते।
देश में गारंटी की राजनीति के जनक माननीय नरेंद्र मोदी की गारंटियों के जबाब में कांग्रेस ने भी चुनाव से पहले नारी न्याय गारंटी योजना का ऐलान किया है। इसके तहत गरीब महिलाओं को एक लाख सालाना मदद, सरकारी नौकरी में 50 फीसदी आरक्षण का वादा कर दिया है। कांग्रेस को भी पता है कि न नौ मन तेल होगा, न राधा नाचेगी। अर्थात न कांग्रेस कि सरकार बनेगी और न महिलाओं को दी गारंटी पूरी करना पड़ेगी। कांग्रेस इलेक्टोरल बांड के जरिये उतना कमा ही नहीं पायी कि सरकार बना ले। कांग्रेस के प्रति अब तो सहानुभूति जताने में संकोच होता है। कमाई का डाटा केंचुआ कि वेब साइट पर आजकल में मिल जाएगा।
राजनीति में गारंटी ने बहुत कुछ बदला है। अब देखिये न लोकसभा चुनाव में टिकिट की गारंटी न मिलने पर कितने लोगों ने अपनी सियासी बल्दियत बदल डाली। कुछ भाजपा छोड़ कांग्रेस में चले गए और कुछ कांग्रेस छोड़ भाजपा में चले गए। देश में इस समय दल-बदल के लिए भाजपा और कांग्रेस ही दो प्रमुख ठिकाने है। यहीं गारंटी से सियासत करने की सुविधा है। बाकी के क्षेत्रीय दलों की गारंटी पर कोई ज्यादा यकीन करता नहीं। देश की जनता जब चड्डी-बनियान तक पर गारंटी मांगती है तो उसे यदि सियासत में गारंटी मिल रही है तो उसे आखिर क्यूँ कर नकारेगी? काश कि इस गारंटी में चड्डी-बनियान की तरह खराबी निकलने पर सरकार और प्रधानमंत्री बदलने का भी प्रावधान शामिल होता, लेकिन नहीं है ! देश में एक दशक से चड्डी-बनियान वालों कि सरकार है, किसी ने उसे बदला?
फिलहाल लोगों को इस बात पर यकीन करना चाहिए कि देश में ये अंतिम आम चुनाव नहीं है। सरकार की और से गारंटी दी जा रही है कि 2029 में फिर चुनाव होंगे और एक देश, एक चुनाव की तर्ज पर होंगे। मोदी सरकार देश में सब कुछ एक देश की तरह एक करना चाहती है। जैसे एक क़ानून, एक चुनाव, एक नेता, एक भाषा, एक बोली, एक खानपान, एक परिधान, एक राष्ट्रगान, तीन रंग के बजाय एक रंग का निशान, एकांगी संविधान और एक भगवान। अब देखिये कब तक देश एकाकार होता है? हम भी फ़िलहाल यहीं हैं और आप भी। जय सियाराम।