
वंदना घनश्याला
चाँद सा चेहरा कैसे चमकता है क़ोई मुझ से पूछ ले
तारों से अठखेलियाँ कैसे करता है क़ोई मुझ से पूछ ले
कभी जब रूठ जाती हो, कभी जब रूठ जाती हो
तमतमाये चेहरे में भी गज़ब ढाती हो
कभी अटखेलियाँ करती सुन्दर सी हसीना लगती हो
वो बात अलग है कभी कभी तुम मुझे नगीना सी लगती हो
प्रिये! तुम तो मुझे हर रूप में मेरी पसंदीदा लगती हो
रूठा सा चेहरा कैसे हँसता है क़ोई मुझे से पूछे
चाँद सा चेहरा कैसे चमकता है क़ोई मुझ से पूछ ले
तारों से अठखेलियाँ कैसे करता है क़ोई मुझ से पूछ ले
चाँदनी रात्रि में श्वेत वस्त्रों में चाँदनी की आभा बन जाती हो
पूर्णिमा की चाँदनी भी टिक नहीं पाती है
जब तुम सोलह श्रृंगार में सामने आ जाती हो
तारों सी टिमटिमाती ओढ़ चुनरिया ख़ुद ही शर्मा जाती हो
कसम ख़ुदा की!! जब मुस्कुराती हो, हजारों बिजलियों क़ो मात दे जाती हो
प्रिये! तन नहीं मन की सुन्दरता से कैसे जग चमकता है??
कोई मुझ से पूछे ले
चाँद सा चेहरा कैसे चमकता है क़ोई मुझ से पूछ ले
तारों से अठखेलियाँ कैसे करता है क़ोई मुझ से पूछ ले