नई दिल्ली।भारत सरकार के विधि एवं न्याय मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने कहा कि आज का दिन विभाजन विभीषिका का शिकार हुए लोगों याद करने का दिन है; और यह सबक लेने का दिन है कि दुबारा ऐसी दशा भारत को न देखनी पड़े। वह दिल्ली विश्वविद्यालय के स्वतंत्रता एवं विभाजन अध्ययन केंद्र के तत्वावधान में ‘विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस’ के अवसर पर “विभाजन का सच” विषय पर आयोजित राष्ट्रीय सेमिनार के उद्घाटन सत्र में बतौर मुख्यातिथि संबोधित कर रहे थे। इस अवसर पर कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए दिल्ली विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. योगेश सिंह ने कहा कि दिल्ली विश्वविद्यालय में भारत विभाजन के सूत्रधार अल्लामा इकबाल को नहीं बल्कि महात्मा गांधी, डॉ बीआर अंबेडकर और सावरकर को पढ़ाया जाएगा। उन्होंने कहा कि इकबाल के कारण भारत के विभाजन जैसी घटनाएं हुई, जिस कारण हमें आज ये दिन मनाना पड़ रहा है।
अर्जुन राम मेघवाल ने अपने संबोधन में आगे कहा कि डॉ बीआर अंबेडकर ने स्वयं विभाजन का दंश झेला था। वह बंगाल के जिस क्षेत्र से संविधान सभा के लिए चुनकर आए थे, उस चुनाव क्षेत्र को ही पूर्वी पाकिस्तान में मिला दिया गया था। मेघवाल ने विभाजन के दौर से जुड़ी अनेक घटनाओं पर प्रकाश डालते हुए कहा कि इन विषयों पर दिल्ली विश्ववियालय में शोध होना चाहिए। उनसे पूर्व कुलपति प्रो. योगेश सिंह ने अपने संबोधन में कहा कि इकबाल को लेकर सबका अपना-अपना दृष्टिकोण हो सकता है, लेकिन राष्ट्र हित केवल राष्ट्रहित है। इकबाल भारत विभाजन का सूत्रधार था, वह पाकिस्तान के फाउंड जिन्ना का एडवाइजर था। “सारे जहाँ से अच्छा हिंदुस्ता हमारा” उसने तब लिखा था जब 1904 में वह गवर्नमेंट कॉलेज लाहौर का छात्र था। उसने तराना-ए-हिन्द लिखा तो, लेकिन खुद इसे माना नहीं।
कुलपति प्रो. योगेश सिंह ने ‘विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस’ मनाने की योजना के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का आभार प्रकट करते हुए कहा कि यह दिन उन सबको याद करने का दिन है जिन्होंने इस देश के लिए खुद को बलिदान किया। कुलपति ने कहा कि कोई नहीं चाहता था कि भारत विभाजन हो, लेकिन विरोध में कोई खड़ा नहीं हुआ! उसके बाद करीब 20 लाख जानें चली गई और करीब डेढ़ करोड़ लोग विस्थापित हो गए, लेकिन कोई नहीं बोला! प्रो. योगेश सिंह ने कहा कि आज का दिन ये संकल्प लेने का दिन है कि राष्ट्र की एकता और अखंडता से कोई समझौता न हो। राष्ट्र की सुरक्षा हर नागरिक का पहला काम है। उन्होंने कहा कि राष्ट्र प्रेम की भावना पैदा करने का काम विश्वविद्यालयों का है। शिक्षा और अनुसंधान के साथ विश्वविद्यालय ऐसे मन तैयार करें कि जब राष्ट्र पर कोई संकट आए तो वो सब एक साथ देश के लिए खड़े हो जाएँ। इस अवसर पर दक्षिणी परिसर के निदेशक प्रो. श्री प्रकाश सिंह सहित कई डीन, निदेशक, प्रिंसिपल, शिक्षक और विद्यार्थी उपस्थित रहे।
कार्यक्रम के आरंभ में स्वतंत्रता एवं विभाजन अध्ययन केंद्र के निदेशक प्रो. रवींद्र रवि ने अतिथियों का स्वागत किया और कार्यक्रम के अंत में राष्ट्रीय सिंधी भाषा संवर्धन परिषद के निदेशक प्रो. रवि प्रकाश टेकचंदानी ने आभार ज्ञापित किया। कार्यक्रम के दूसरे सत्र में महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा के पूर्व कुलपति प्रो. कपिल कपूर ने बतौर मुख्य वक्ता अपने विचार प्रस्तुत किए। राष्ट्रीय सिंधी भाषा संवर्धन परिषद (एनसीपीएसएल) और इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केन्द्र (आईजीएनसीए) के सहयोग से आयोजित इस कार्यक्रम में राष्ट्रीय कॉन्फ्रेंस के उद्घाटन से पहले इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र (IGNCA) के सहयोग से आयोजित एक फोटोग्राफी प्रदर्शनी का उद्घाटन भी किया गया।