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गाजियाबाद। उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद स्थित मुरादनगर में मुस्लिम महिला द्वारा मांग में सिंदूर भरने और पति के भगवा रंग का कुर्ता-पायजामा पहनकर ईद की नमाज पढ़ने पर इस्लाम धर्म से खारिज होने का दंश झेल रहे दंपती को देवबंद के दारूल उलूम से राहत मिल गई है।
दारूल उलूम ने फतवा जारी कर बताया है कि मांग में सिंदूर भरने से कोई भी मुस्लिम महिला इस्लाम धर्म से खारिज नहीं हो सकती। हालांकि, परंपरा के मुताबिक मुस्लिम महिलाओं को मांग में सिंदूर भरने से परहेज करना चाहिए। यदि भगवा रंग के कपड़े पाक-साफ हैं तो उन्हें पहनकर नमाज अदा करने की गुंजाइश है। यह फतवा नौ अक्टूबर को दारूल उलूम के मुफ्ती फखरूल इस्लाम ने जारी किया है।
ईदगाह कॉलोनी निवासी आसिफ अली को भगवा रंग बहुत पसंद है। लिहाजा वह हर साल ईद की नमाज भगवा रंग का कुर्ता पायजामा पहनकर पढ़ते हैं। ईद के अलावा वह शादी समारोह व अन्य कार्यक्रमों में भी भगवा रंग के कपड़े पहनकर जाते हैं।
भगवा रंग को गैर इस्लामिक बताते हुए समाज के लोग विरोध करते हैं। वहीं, आसिफ की पत्नी मांग में सिंदूर भरती हैं। अन्य मुस्लिम महिलाएं मांग में सिंदूर लगाने का विरोध करती थीं। दो माह पहले आसिफ पत्नी को लेकर एक धार्मिक कार्यक्रम में पहुंचे थे। वहां मौजूद समाज के लोगों ने मांग में सिंदूर भरने और भगवा कपड़े पहनने की शिकायत उलेमा से कर दी।
इस दौरान एक उलेमा ने दंपती को इस्लाम विरोधी बताते हुए उन्हें इस्लाम धर्म से खारिज कर दिया। तभी से दंपती को इस्लाम धर्म से खारिज होने का दंश झेलना पड़ रहा है। यहां तक कि परिजनों ने भी उनसे किनारा कर लिया।
इसके बाद दंपती ने सहारनपुर के देवबंद स्थित देश के प्रमुख इस्लामी शिक्षण संस्थान दारूल उलूम से इस संबंध में फतवा पूछा। दारूल उलूम ने फतवा जारी किया है। आसिफ ने बताया कि उसके अधिकांश मित्र हिंदू समाज से हैं। वह एक दूसरे से धार्मिक भेदभाव नहीं रखते।