प्रोफेसर (डॉ.) दिनेश चमोला ‘शैलेश’ का सृजन-मूल्यांकन’ विषय पर 12वां राष्ट्रीय पाक्षिक व्याख्यान संपन्न

asiakhabar.com | August 27, 2024 | 3:48 pm IST
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नई दिल्ली। दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा, मद्रास के संयोजन में प्रख्यात हिंदी साहित्यकार ‘प्रोफेसर (डॉ.) दिनेश चमोला ‘शैलेश’ का सृजन-मूल्यांकन’ विषय पर आयोजित पाक्षिक व्याख्यानमाला का बारहवां (12वां) ऑनलाइन राष्ट्रीय व्याख्यान प्रो. चमोला के हिंदी लघु कथा संग्रह ‘मिट्टी का संसार’ विषय पर केंद्रित रहा ।
समारोह के अध्यक्ष के रूप में माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय , भोपाल (मध्य प्रदेश) के कुलपति एवं प्रख्यात मिडिया विशेषज्ञ, प्रो. के जी सुरेश
रहे । प्रो. सुरेश ने प्रोफेसर चमोला की विगत साढ़े चार (4) दशकों से हिंदी साहित्य को दिए जा रहे राष्ट्रीय के योगदान की भूरि-भूरि प्रशंसा करते हुए कहा कि प्रो. चमोला व्यक्ति नहीं, स्वयं में एक संस्था हैं । साहित्य की क्षेत्र में इतनी पुस्तकों का सृजन करना किसी अश्वमेध यज्ञ से कम नहीं है । उन्होंने वैश्विक कल्याण और मानवोत्थान में प्रो. चमोला द्वारा रचित लघु कथा संग्रह की महत्ता एवं उपादेयता पर प्रकाश डालते हुए कहा कि ये लघु कथाएं राष्ट्र निर्माण और चरित्र निर्माण की आधारशिला हैं । पत्रकारिता और साहित्य में सामंजस्य बिठाते हुए उन्होंने पत्रकारिता जगत के आज के युवाओं व छात्रों का आह्वान किया की उन्हें प्रो. चमोला जैसी साहित्य सेवा का कार्य करना चाहिए जिसमें समर्पण, सेवा और मिशन का भाव कूट-कूट कर भरा हआ है । उन्होंने प्रो चमोला के लघु कथा संग्रह ‘ मिट्टी का संसार’ की प्रेरक लघु कथाओं को डिजिटल माध्यमों से जन-जन तक पहुंचाने की पहल करने तथा अधुनातन माध्यमों से इंस्टाग्राम आदि मंचों के माध्यम से प्रचारित – प्रसारित करने की बात कही ताकि इसे युवाओं में मूल्यों का सूत्रपात होकर जीवन की सार्थकता की शुरुआत हो ।
प्रोफेसर सुरेश ने कहा कि अत्यंत हर्ष का विषय है कि हिंदी के चर्चित साहित्यकार, प्रोफेसर (डॉ.) दिनेश चमोला ‘शैलेश’ के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा,चेन्नई जैसी देश की प्रतिष्ठित संस्था विगत कई माहों से एक सतत पाक्षिक व्याख्यानमाला का आयोजन कर रहा है । इस महत्त्वपूर्ण आयोजन में देश-विदेश की सुधी विद्वानों की उपस्थिति प्रोफेसर चमोला के विशद साहित्यिक व्यक्तित्व का परिचायक है । देश की अनेकानेक पत्र पत्रिकाओं के माध्यम से विगत कई दशकों से मैं प्रोफेसर चमोला की बहुमुखी प्रतिभा और लेखन से परिचित हूं । विभिन्न विधाओं में सात दर्जन से अधिक पुस्तकें लिख चुके हैं, जिन पर देश के अनेक विश्वविद्यालयों में पीएचडी स्तरीय अनेक शोध कार्य संपन्न हुए तथा कुछ चल रहे हैं, यह निश्चित रूप से गौरव का विषय है।
विगत 43 वर्षों से उनकी यह अखंड साधना इस बात का प्रमाण है कि वह एक सुधी अध्येता के साथ-साथ एक भावप्रवण कवि, जीवंत कथाकार, स्तंभ लेखक, साक्षात्कारकर्ता एवं चर्चित संपादक भी हैं । यही नहीं, उन्होंने देश के प्रख्यात पत्रकारों, लेखकों, साहित्यकारों, वैज्ञानिकों तथा अनेक विभूतियों के अनेक साक्षात्कार भी लिए हैं जो आज से तीन-चार दशक पूर्व देश की असंख्य पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहे हैं । वह देश के कई राष्ट्रीय समाचार पत्रों में प्रखर परिचर्चाएं संयोजित करने के लिए भी विख्यात रहे हैं ।
प्रसन्नता है कि उन्हें ‘ गाएं गीत ज्ञान विज्ञान के’ नामक विज्ञान कविता संग्रह पर भारत सरकार, साहित्य अकादमी का ‘बाल साहित्य पुरस्कार’ प्राप्त हुआ है । उनका लेखन बहुआयामी है । वह देवभूमि उत्तराखंड से आते हैं इसलिए अपनी परंपरा के अनुरूप उनके लेखन में; चिंतन में; अनुभूति और अभिव्यक्ति में दर्शनिकता व आध्यात्मिकता का पुट सहज रूप में ही दिखाई देता है ।
आज का यह कार्यक्रम उनकी द्वितीय चर्चित आध्यात्मिक लघु कथा संग्रह ‘मिट्टी का संसार ‘ जिसमें उनकी मौलिक आध्यात्मिक लघु कथाएं हैं, जो देश के चर्चित समाचार पत्र ‘दैनिक हिंदुस्तान’, ‘नई दुनिया’, दैनिक ट्रिब्यून, ‘ इंदौर समाचार’, राष्ट्रीय सहारा आदि में प्रकाशित होती रही हैं । कलेवर में लघुत्तम दिखाई देने वाली इन लघु कथाओं में मूल्य, आदर्श, सत्याचरण, शिक्षा, संदेश की गहनता व व्यापकता दिखाई देती है । ये लघु कथाएं आकार में भले ही छोटी हैं, लेकिन इनका मंतव्य अथवा प्रतिपाद्य अत्यंत सूक्ष्म, गहन एवं विचारोत्तेजक है । मूल्यों के ह्रास के इस युग में ये लघु कथाएं जिज्ञासु पाठकों के लिए उनके। अपने मूल अस्तित्व का परिचय करातीं हुईं ये लघुकथाएं आत्मबोध जगाती हुईं कर्तव्यबोध के प्रति सजग कर मानव के अंतर्मन को भौतिक नश्वरता के प्रति चेतातीं हैं । जीवन की निसारता, यथार्थता व वैचारिक दर्शन से उपजी हुई इन लघु कथाओं में सत्संकल्प के साथ मूल्य-स्थापना, गहन शिक्षण, चरित्र निर्माण एवं वैश्विक कल्याण के भाव सन्निहित हैं । वे जितने अच्छे कवि, व्यंग्य लेखक व उपन्यासकार हैं, उससे अधिक प्रभावी लघु कथाकार भी हैं जो बहुत सीमित विषयवस्तु में उस असीम के सार्थक संदेश एवं जीवन यथार्थ को प्रकट करने में कदाचित हिचकिचाते नहीं । निश्चित रूप से यह लघु कथा संग्रह, भारतीय जीवन मूल्यों एवं आध्यात्मिक परंपरा को पुष्ट कर एक विवेकशील व सुसंस्कृत समाज के निर्माण की एक महत्वपूर्ण एवं सार्थक पहल है । मैं इसके लिए लेखक को बधाई देता हूं एवं आश्वस्त हूं कि भविष्य में भी प्रो.चमोला अपनी उत्कृष्ट रचनाधर्मिता से हिंदी साहित्य को समृद्ध करने में अपना अपूर्व योगदान पूर्ववत देते रहेंगे । इस आयोजन के लिए मैं पुनः दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा,चेन्नई को हार्दिक बधाई देता हूं ।
आमंत्रित विद्वान के रूप में विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन के कला संकाय के डीन व हिंदी विभाग के अध्यक्ष, प्रो शैलेंद्र कुमार शर्मा ने कहा जिस लघु कथा का बीजारोपण पौराणिक आख्यानों, धर्म ग्रंथों में मिलता है तथा जिसे प्रखर पत्रकार साहित्यकार माधवराव सप्रे निति की ‘एक टोकरी मिट्टी’ से प्रारंभ होकर बहुमुखी प्रतिभा के धनी विभिन्न विधाओं में अनवरत लिखने वाले प्रो.चमोला के लघुकथा संग्रह ‘मिट्टी का संसार’ में इसके विकास को बखूबी देखा जा सकता है । शैलेंद्र शर्मा ने कहा कि प्रो चमोला राजभाषा, अनुवाद, शब्दकोश आदि के मूर्धन्य विद्वान तो हैं ही, इसके साथ-साथ हिंदी की विभिन्न विधाओं में लिखने वाले साहित्यकार हैं जिनकी साहित्यिक साधना से लगभग साढ़े तीन दशकों से परिचित हूं । उनकी मेरे पास अनेक पुस्तकें हैं जिनको मैंने पढ़ा है किंतु उनके इस नए रूप लघुकथाकार के विवेचन समारोह में उपस्थित होकर मुझे गर्व का अनुभव हो रहा है । इस संग्रह की अधिकांश लघु कथाएं जहां युवाओं में चरित्र, मूल्यबोध, भविष्य दृष्टि एवं संस्कारों के निर्माण की क्षमता रखती हैं । भौतिकता को आगाह करती ये रचनाएं मूल्यों से ओतप्रोत हैं ।
विशिष्ट अतिथि के रूप में विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन के कुलपति, प्रो. अखिलेश कुमार पांडे ने कहा कि शिक्षा नीति व मानवता के कल्याण में प्रो चमोला का साहित्य का अपूर्व सिद्ध होगा । उन्होंने अपने अध्ययन एवं विशिष्ट रचना-कर्म से हिंदी साहित्य न केवल मूल्यों की निधि संचित की है बल्कि उत्तम जीवन जीने के उनके समक्ष अनुकरणीय आदर्श भी प्रस्तुत किए हैं । युवाओं में पठन पाठन के प्रति उपज रही उदासीनता को जिज्ञासा व ज्ञान में बदलने में इस प्रकार की पुस्तकें उत्प्रेरक की भूमिका निभा सकती हैं । इसके लिए लेखक को बधाई देता हूं एवं आश्वस्त हूं कि भविष्य में भी प्रो.चमोला अपनी उत्कृष्ट रचनाधर्मिता से हिंदी साहित्य के भंडार को समृद्ध करने में अपना पूर्ववत देते रहेंगे
अपने आशीर्वचन में प्रो. दिनेश चमोला ‘शैलेश’ ने इस व्याख्यान श्रृंखला में देश के स्वनामधन्य विद्वानों द्वारा अपने साहित्य का मूल्यांकन को अपनी बड़ी उपलब्धि बताया ।
विशिष्ट अतिथि के रूप में शिवाजी विश्वविद्यालय, कोल्हापुर (महाराष्ट्र) के प्रोफेसर एवं हिंदी के पूर्व अध्यक्ष, प्रो. अर्जुन चव्हाण ने कहा कि प्रोफेसर चमोला के साहित्यिक योगदान मैं विगत कई दशकों से परिचित हूं। क्रिकेट की शब्दावली में कहूं तो वे साहित्य के ऑलराउंडर हैं । वे राजभाषा प्रयोजनमूलक हिंदी एवं शब्दकोश आदि विधाओं के मूर्धन्य विद्वान रहे हैं । संग्रह की लघु कथाओं के साथ साथ मुझे उनकी भूमिका ने विशेष रूप से प्रभावित किया है। महान साहित्यकार जयशंकर प्रसाद के बाद मुझे प्रो. चमोला का साहित्य बहु उद्देशीय लग रहा है । वे आज देश में जमीनी साहित्यकार हैं । उनकी रचनाएं कल्पना के लोक से नहीं आती बल्कि जीवन के धरातल पर पग पग पr जीवन दर्शन व ज्ञानार्जन करातीं हैं । उनका मिट्टी का संसार सोने का संदेश देता पग-पग शिक्षा देता प्रतीत होता है । इस संग्रह की लघु कथाओं को मैं 5 भागों में विभाजित करता हूं ….सुख केंद्रित, आनंद केंद्रित, सच्चाई केंद्रित, जीवन दर्शन केंद्रित और व्यावहारिक ज्ञान केंद्रित । इसकी विराट व्यक्तित्व पर राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया जाना चाहिए जहां इनके साहित्य के अनेक पहलुओं पर व्यापक रूप से विमर्श संभव हो ।


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