दिल्ली। दिल्ली उच्च न्यायालय की न्यायाधीश जस्टिस स्वर्ण कांता शर्मा ने कहा कि जज समाज के लिए कुछ अच्छा करना चाहते हैं, लेकिन अगर उन्हें अच्छे कानून देंगे तभी वो अच्छा कर पाएंगे। जस्टिस स्वर्ण कांता शर्मा दिल्ली विश्वविद्यायल द्वारा तीन नए आपराधिक कानूनों को लेकर आयोजित जागरूकता अभियान के शुभारंभ अवसर पर बतौर मुख्य अतिथि संबोधित कर रही थी। इस दौरान उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय से जुड़े अपने पढ़ाई के दिनों के संस्मरण याद करते हुए कहा कि वह आज जो भी हैं, वो इसी विश्वविद्यालय की बदौलत हैं। डीयू ऐसी जगह है जहां आप जब भी आते हैं तो ये आपको कुछ देती ही है।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए दिल्ली विश्वविद्यायल के कुलपति प्रो. योगेश सिंह ने कहा कि 2047 तक भारत को विकसित राष्ट्र बनाने के लिए ये तीन नए कानून परिवर्तनकारी साबित होंगे। उन्होंने कहा कि भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतन्त्र है और लोकतन्त्र की नींव कानून के शासन पर टिकी होती है। इस अवसर पर विशिष्ट अतिथि के तौर पर पहुंची सर्वोच्च न्यायालय की वरिष्ठ अधिवक्ता श्रीमति मोनिका अरोड़ा ने तीनों नए क़ानूनों की पुराने क़ानूनों से तुलनात्मक व्याख्या प्रस्तुत की। कार्यक्रम के दौरान डीन ऑफ कॉलेजेज़ प्रो. बलराम पाणी, रजिस्ट्रार डॉ विकास गुप्ता, प्रोकटर प्रो. रजनी अब्बी और डीन अकादमिक प्रो. के रत्नाबली सहित अनेकों शिक्षक और विद्यार्थी उपस्थित रहे।
मुख्य अतिथि जस्टिस स्वर्ण कांता शर्मा ने अपने विस्तृत व्याख्यान में तीन नए आपराधिक कानूनों, अर्थात् भारतीय न्याय संहिता 2023, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता 2023 और भारतीय साक्ष्य अधिनियम 2023 के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि इनके लिए 32 हजार लोगों ने अपने-अपने बहुमूल्य सुझाव भेजे थे, जिनके आधार पर इन क़ानूनों को बनाया गया है। यह तीनों कानून एक जुलाई, 2024 से ब्रिटिश युग के औपनिवेशिक कानूनों क्रमशः भारतीय दंड संहिता 1860, आपराधिक प्रक्रिया संहिता 1973 और भारतीय साक्ष्य अधिनियम की जगह लेने जा रहे हैं। उन्होंने कहा कि ब्रिटिश युग के कानूनों में दंड (पिनल) शब्द का इस्तेमाल किया गया था जबकि इन क़ानूनों में दंड की जगह अब न्याय शब्द प्रयोग किया गया है। इन शब्दों में बहुत बड़ा अंतर है। अंग्रेजों द्वारा दिया गया कानून उनके नजरिए से था जिसमें दंड पर ज़ोर था लेकिन अब न्याय की बात की गई है।
जस्टिस स्वर्ण कांता शर्मा ने कहा कि हमें अंग्रेजों द्वारा दिये गए क़ानूनों और उनकी भाषा से भी स्वतंत्र होना है। उन्होंने कहा कि मैं भारतीय पहले हूँ और जज बाद में। नए क़ानूनों की आवश्यकता को रेखांकित करते हुए उन्होंने कहा कि बदलते दौर में हमें नई तकनीक की जरूरत है। नई तकनीक के आगमन के साथ नए अपराध भी सामने आएंगे। ऐसे में नए क़ानूनों की भी जरूरत होती है। इसलिए हमें इन क़ानूनों का साकारात्मकता से स्वागत करना चाहिए। जस्टिस शर्मा ने दिल्ली विश्वविद्यालय से आह्वान किया कि जो नए कानून आए हैं, उन के कार्यान्वयन पर भी स्टडी करनी चाहिए।