
टूट रहे परिवार हैं, बदल रहे मनभाव। प्रेम जताते ग़ैर से, अपनों से अलगाव।। (भौतिकवादी युग में एक-दूसरे की सुख-सुविधाओं की प्रतिस्पर्धा ने मन के रिश्तों को झुलसा दिया है। कच्चे से पक्के होते घरों की ऊँची दीवारों ने आपसी वार्तालाप को लुप्त कर दिया ...आगे पढ़ें asiakhabar.com | May 14, 2022 | 4:02 pm IST