
अशोक कुमार यादव मुंगेली आकाश से आग बरसा रहा है सूरज। गुस्सा शांत करो,सुन लो मेरी अरज।। झुलस रहे हैं निरीह सभी जीव-जंतु। राहगीर हुए मूर्छित,तड़प रहे आगन्तु।। तेजपुंज से पीघल रहा है हाड़-मांस। भूगर्भिक प्राणी की रुक रही है साँस।। सूख चुकी है नदी,चिलचिलाती ...आगे पढ़ें asiakhabar.com | June 17, 2023 | 4:18 pm IST