
मुंबई : साल 2024 में सभी घरेलू डिजिटल पेमेंट ट्रांजेक्शन में से करीब एक तिहाई लेन-देन क्रेडिट-संचालित थे, जो क्रेडिट कार्ड या ईएमआई (EMI) के जरिए किए गए। यह जानकारी 20,000 से अधिक व्यापारियों के लेनदेन के डेटा का एनालिसिस करने वाली एक रिपोर्ट से मिली है। ये निष्कर्ष बढ़ रहे कंज्यूमर क्रेडिट और घरेलू स्तर पर बढ़ रहे लोन पर अंकुश लगाने के उद्देश्य से सख्त रेगुलेटरी उपायों के बीच आए हैं, जो एसेट निर्माण की बजाय कंजम्पशन यानी खपत को बढ़ावा दे रहा है।
डिजिटल पेमेंट फिनटेक फाय कॉमर्स की रिपोर्ट – “हाउ इंडिया पे” (भारत कैसे भुगतान करता है”) – ने यह भी उल्लेख किया कि कैसे यूपीआई डिजिटल पेमेंट में एक परिवर्तनकारी माध्यम बन गया है, जो कुल लेनदेन के 65 फीसदी के लिए जिम्मेदार है। रिपोर्ट में कहा गया है कि यूपीआई छोटे और मिड वैल्यू के लेन-देन पर हावी है, जबकि क्रेडिट कार्ड और ईएमआई का उपयोग बड़ी खरीदारी के लिए तेजी से किया जा रहा है। शिक्षा, हेल्थकेयर और ऑटो एंसीलरी जैसे सेक्टर में डिजिटल क्रेडिट अपनाने में मजबूत ग्रोथ देखी जा रही है। त्योहारी सीजन में खरीदारी, स्कूल में एडमिशन और सीजनल ट्रेंड क्रेडिट के इस्तेमाल में तेजी लाते हैं, जो यह दिखाता है कि कंज्यूमर उस अवधि के लिए शॉर्ट टर्म क्रेडिट पर भरोसा करते हैं, जब खर्च ज्यादा होता है।
फाय कॉमर्स के को-फाउंडर एंड हेड ऑफ पेमेंट, राजेश लोंधे ने कहा कि भारत में डिजिटल पेमेंट का विकास वित्तीय संभावनाओं को नया आकार दे रहा है। यह उपभोक्ताओं को बेहतर तरीके से खर्च करने, बेहतर योजना बनाने और बड़े सपने देखने में सक्षम बना रहा है। जैसे-जैसे यूपीआई और लचीले क्रेडिट विकल्प प्रमुख विकल्प बन रहे हैं, भविष्य उन लोगों का है जो समावेशी विकास और फाइनेंशियल फ्लेक्सीबिलिटी को आगे बढ़ाने के लिए इन विकल्पों का जिम्मेदारी से लाभ उठाते हैं।
रिपोर्ट के अनुसार, पेमेंट में इस व्यवहारिक बदलाव के मूल में यूपीआई (UPI) है, जो रोजाना के लेनदेन के लिए डिफॉल्ट पेमेंट मोड बन गया है। इसका व्यापक रूप से अपनाया जाना कंज्यूमर्स की गति, आसानी और तुरंत सेटलमेंट के लिए प्राथमिकता को दिखाता है, जिससे यह रिटेल खरीदारी, फूड सर्विसेज और सरकारी लेनदेन के लिए पहला विकल्प बन गया है। हालांकि, डेली खर्च से हटकर, क्रेडिट कार्ड और ईएमआई (EMI) के माध्यम से क्रेडिट-आधारित डिजिटल पेमेंट में महत्वपूर्ण बढ़ोतरी यह संकेत देती है कि कंज्यूमर्स में एक बार में ही बड़े खर्च को टालने और कैश फ्लो को रणनीतिक रूप से मैनेज करने की इच्छा बढ़ रही है।
आज उपभोक्ता वन टाइम पेमेंट करने की बजाय अपने पास मौजूद कैश का एक हिस्सा सही जगह निवेश करने पर ज्यादा फोकस कर रहे हैं। यह विशेष रूप से शिक्षा (10%), हेल्थकेयर सर्विसेज (15%) और ऑटो एंसीलरी (15%) में साफ तौर पर दिख रहा है, जहां हाई वैल्यू की खरीदारी तेजी से ईएमआई (EMI) और स्ट्रक्चर्ड क्रेडिट विकल्पों के माध्यम से की जाती है। स्कूल की फीस, मेडिकल पर आने वाला खर्च और बड़ी ऑनलाइन खरीदारी के लिए ईएमआई (EMI) प्लान पर निर्भरता वित्तीय व्यवहार में बदलाव को दिखाती है – पूरी तरह से अफोर्डेबिलिटी से लेकर मैनेज करने योग्य, फेजवाइज खर्च तक।
कंज्यूमर्स के खर्च के पैटर्न को आकार देने में सीजनल यानी मौसमी फैक्टर भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। रिटेल, शिक्षा और हेल्थकेयर ट्रांजेक्शन कुछ विशेष महीनों के दौरान पीक पर होते हैं, जो कंज्यूमर्स द्वारा समय-समय पर वित्तीय योजना बनाने पर प्रकाश डालते हैं। उदाहरण के लिए, त्योहारी सीजन में खरीदारी, स्कूल में एडमिशन का समय और इंश्योरेंस का रिन्यू के दौरान खर्च में उछाल आता है, जो यह दिखाता है कि कंज्यूमर आवश्यकता के आधार पर रणनीतिक रूप से संसाधनों का आवंटन करते हैं।
एक और महत्वपूर्ण ट्रेंड यह है कि सरकारी / यूटिलिटीज (उपयोगिताओं) को किए जाने वाले अधिकांश रेकरिंग पेमेंट (75%) यूपीआई (UPI) ऑटोपे मोड में चले गए हैं। यह बदलाव डिजिटल सिस्टम में अधिक वित्तीय अनुशासन और बढ़ रहे भरोसे को दर्शाता है, जिससे पेमेंट के मिस हो जाने का जोखिम कम होता है। कुल मिलाकर, भारतीय कंज्यूमर्स खर्च करने के लिए अच्छी तरह से स्ट्रक्चर्ड, प्लांड और डिजिटल-फर्स्ट अप्रोच की ओर बढ़ रहे हैं। जबकि यूपीआई (UPI) रोजाना के लेन-देन पर हावी है, क्रेडिट और किस्त-आधारित भुगतान के साथ बढ़ती सहजता एक मजबूत वित्तीय विकास का संकेत देती है।- जहां सामर्थ्य अब इस बात पर निर्भर नहीं करता कि हाथ में कितना कैश है, बल्कि इस बात पर निर्भर करता है कि खर्च का प्रबंधन कितनी अच्छी तरह किया जाता है।
रिपोर्ट में चुनिंदा क्षेत्रों – शिक्षा, रिटेल, हेल्थकेयर, फूड और रेस्तरां, ई-कॉमर्स और ऑटोमोटिव में प्रमुख डिजिटल पेमेंट ट्रेंड को भी रेखांकित किया गया है। विस्तृत विवरण के लिए कृपया संलग्न रिपोर्ट देखें।