-डॉ. शंकर सुवन सिंह-
हीनता दरिद्रता को जन्म देती है और दरिद्रता अपराध को। हीन भावनाओं से ग्रसित व्यक्ति कभी
आनंदित नहीं हो सकता। आत्मीयता आनंद की जननी है। आत्मीय सुख ही असली आनंद देता है।
अकेलापन ही आनंद देता है। भीड़ भ्रमित करती है। आनंद का सम्बन्ध भीड़ से नहीं है। अकेलापन
व्यक्ति के आत्म साक्षात्कार का स्रोत है। आत्म साक्षात्कार ही हमको प्रकृति से जोड़ती है। हवा पानी
आकाश पृथ्वी और अग्नि हमको जीवन देती हैं जो कि प्रकृति का हिस्सा हैं। इन्ही पांच तत्वों से
मिलकर शरीर भी बना है। यही जीवन दायनी तत्व हमको असली आंनद देते हैं। प्रकृति से प्रेम स्व
की अनुभूति कराता है। स्व की अनुभूति ही सुख प्रदान करती है। भौतिक वस्तुओं की अनुभूति दुःख
प्रदान करती है। अपराध में व्यक्ति स्वत: को भूल जाता है। नशा सारे अपराध की जड़ है। नशा
व्यक्ति को अनियंत्रित करता है। आनंद व्यक्ति को नियंत्रित करता है। हुक्का बार नशा को बढ़ावा
देने का केंद्र है। हुक्का बार हीन भावनाओं का केंद्र बिंदु बनता जा रहा है। हीन भावनाओं से ग्रसित
लोग हुक्का बार की शरण में जाते हैं। हुक्का बार व्यथित, चिंतित और भ्रमित लोगों का आरामगाह
बन गया है। ये भ्रमित लोग नए नए अपराध को जन्म देते हैं। तनाव ही हीनता की जननी है।
तनाव शब्द का निर्माण दो शब्दों से मिल कर हुआ है। तन + आव तन का तात्पर्य शरीर से है और
आव का तात्पर्य घाव से है। अर्थात वह शरीर जिसमे घाव हैं। कहने का तात्पर्य तनाव एक मानसिक
बीमारी है जो दिखाई नहीं देती है। शरीर का ऐसा घाव जो दिखाई न दे, तनाव कहलाता है। तनाव से
ग्रसित इंसान को सारा समाज पागल दिखाई देता है। तनाव वो बीमारी है जिसमे इंसान हीन भावना
से ग्रसित होता है। तनाव मूल रूप से विघर्षण है। घिसने की क्रिया ही विघर्षण कहलाती है। घिसना
अर्थात विचारों का नकारात्मक होना या मन का घिस जाना। अतएव तनाव मनोविकार है। तनाव
नकारात्मकता का पर्यायवाची है। एक कहावत है- “भूखे भजन न होए गोपाला। पहले अपनी कंठी
माला”। भूखे पेट तो ईश्वर का भजन भी नहीं होता है। कहने का तात्पर्य जब हम स्वयं का आदर व
सम्मान करते हैं तभी हम देश और समाज की सेवा कर सकते हैं। तनाव से ग्रसित इंसान जो खुद
बीमार है वो दूसरों को भी बीमार करता है। तनाव से ग्रसित इंसान दूसरों को भी तनाव में डालता है।
ऐसे नकारात्मक लोगों से दूर रहना चाहिए।
नकारात्मकता के विशेष लक्षण – 1. अपने स्वार्थ के लिए दूसरों पर आरोप लगाना। 2.अपने को सही
और दूसरों को गलत समझना। हमेशा नकारात्मक चीजों पर बात करना। 3.सकारात्मक विचार और
सकारात्मक लोगों से दूरी बनाना। 4. दूसरे की सफलता से ईर्ष्या करना। ऊपर दिए गए लक्षणों से
बचना ही तनाव से मुक्ति का कारण है। तनाव में ही मानव अपराध करता है। तनाव अंधकार का
कारक है। तनाव समाज की अवनति का कारण है। सकारात्मकता से तनाव पर विजय पाई जा सकती
है। अतएव असतो मा सद्गमय। तमसो मा ज्योतिर्गमय। मृत्योर्मामृतं गमय॥ –बृहदारण्यकोपनिषद्
1.3.28। अर्थ- मुझे असत्य से सत्य की ओर ले चलो। मुझे अन्धकार से प्रकाश की ओर ले चलो।
मुझे मृत्यु से अमरता की ओर ले चलो॥ यही अवधारणा समाज को चिंतामुक्त और तनाव मुक्त
बनाती है। हिंदुस्तान की संस्कृति ऋग्वेद जितनी पुरानी है। ऋग्वेद की रचना ईसा मसीह के जन्म
लेने के 2500 वर्ष पूर्व की है। सफल जीवन के चार सूत्र हैं- जिज्ञासा, धैर्य, नेतृत्व की क्षमता और
एकाग्रता। जिज्ञासा का मतलब जानने की इक्षा। धैर्य का मतलब विषम परिस्थितयों में अपने को
सम्हाले रहना।
नेतृत्व की क्षमता का मतलब जनसमूह को अपने कार्यों से आकर्षित करना। एकाग्रता (एक+अग्रता)
का अर्थ है एक ही चीज पर ध्यान केन्द्रित करना। यही चारो सूत्र आपके ज्ञान को विशेष स्वरूप
प्रदान करता है। ज्ञान, शान्ति का प्रतीक है। अज्ञानता, अशांति का प्रतीक है। विश्व में शान्ति वही
कायम कर सकता है,जो ज्ञानी है। अज्ञानी तो अशांति का कारक होता है। ज्ञान संस्कारों की जननी
है। किसी भी देश की संस्कृति व संस्कार,उस देश में शान्ति को स्थापित करने में अहम् भूमिका
निभाती है। भारत जैसे देश को अपनी वैदिक संस्कृति व सभ्यता में लौटना होगा तभी इस देश में
अपराध पर लगाम लगाया जा सकता है। सत्य, अहिंसा विरोधी रथ पर सवार हो सत्ता के चरम शिखर
पर पहुँचने वाले सुधारकों की मनोदशा ठीक नहीं है। सुधारकों की प्रवृत्ति ठीक होती तो देश में सत्य,
अहिंसा का प्रवाह होता। प्रयागराज के नैनी स्थित पी डी ए कॉलोनी के हुक्का बार में 14 फरवरी
2023 को एक बालू कारोबारी की हत्या कर दी जाती है। देश के हर राज्य से ऐसी घटनाएं आए दिन
हो रही हैं।
इस प्रकार की घटनाएं समाज के बदलते स्वरुप,नेताओं के कोरे वादे और इंसानियत के साथ खिलवाड़
का वीभत्स रूप दर्शाती है। सरकार को हुक्का बार पर पूर्णतः प्रतिबन्ध लगा देना चाहिए। भारत
सरकार को प्रत्येक जिले के बस स्टैंड, रेलवे स्टेशन, टैक्सी स्टैंड, टोल प्लाजा, हाई वे आदि मुख्य
जगहों पर नैतिक मूल्यों से सम्बंधित कोटेशन के बैनर और पोस्टर लगवाने चाहिए। समाज वहशीपन
का शिकार हो रहा है। समाज में असहिष्णुता का विकास हो रहा है। समाज में बढ़ती बेरोजगारी,
अशिक्षा, नैतिक मूल्यों का पतन आदि बुराइयां ही दरिंदगी और वहशीपन का कारण हैं। पुलिस भी
समाज का हिस्सा है। पुलिस तंत्र का अव्यवस्थित होना भी बढ़ते अपराध का कारण है। थानेदार
क़ानून का पालन नहीं कर रहे हैं। ऐसा लगता है थानेदार क़ानून के मालिक बन गए हैं। ज्यादातर
थानों में थानेदार अपनी मन मर्जी चलाते है। परिणाम स्वरुप थानेदारों की मर्जी के चलते उत्तर प्रदेश
में हुक्काबार फल फूल रहे हैं। हुक्का बार नशा करने और कराने का अड्डा बन चुका है। अतएव उत्तर
प्रदेश की सरकार को हुक्काबार पर पूर्णतः प्रतिबन्ध लगा देना चाहिए।