-डॉ. वेदप्रताप वैदिक-
आजादी के 75वें साल को मनाने के लिए हर घर में तिरंगा फहर रहा है, यह तो बहुत अच्छी बात है। भारत
सरकार का यह अभियान इसलिए भी सफल हो गया है कि इसे सभी दलों का समर्थन मिल गया है। यहां तक की
कांग्रेस का भी! हालांकि कांग्रेस पार्टी के तिरंगे और भारत के तिरंगे में बड़ा बारीक फर्क है, जिसे लोग प्रायः अनदेखा
ही कर देते हैं। कांग्रेस के तिरंगे के बीच में चरखा है और राष्ट्रीय तिरंगे के बीच में चक्र है। अशोक का धर्म-चक्र !
अब तो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ भी तिरंगा फहरा रहा है। इस तिरंगे का सूत्रपात सबसे पहले मदाम भीकायजी कामा
और वीर सावरकर ने किया था। लेकिन असली सवाल यह है कि आजादी का जश्न सिर्फ तिरंगा फहराने से पूरा हो
जाएगा क्या? यह तो वैसा ही हुआ, जैसा कि हमारे मंदिरों में होता है। देवताओं की मूर्ति पर भक्त लोग माला
चढ़ाते हैं, भजन गाते हैं और फिर रोजमर्रा की जिंदगी जस की तस गुजारने लगते हैं। जो नेता झूठे वादों पर जिंदा
हैं, जो अफसर रिश्वतजीवी हैं और जो व्यापारी मिलावटखोर हैं, उनके आचरण में जरा भी परिवर्तन नहीं आता है।
जिसे विद्वान लोग मूर्तिपूजा या प्रतीक पूजा या जड़-पूजा कहते हैं, मुझे डर है कि वही हाल इस तिरंगा-पूजा का भी
हो रहा है।
असली तिरंगा-पूजा तो तब होगी जबकि हम इस रंग-बिरंगे भारत को सारी दुनिया के सामने फहराकर कह सकें कि
भारत जैसा देश दुनिया में कोई और नहीं? भारत के बारे में यह सोच कोई हवाई सपना भर नहीं है। भारत दुनिया
का सबसे बड़ा लोकतंत्र है। भारत के साथ-साथ और बाद में भी दर्जनों देश आजाद हुए लेकिन लोकतंत्र कहां-कहां
कायम रहा? भारत का जो मूल संविधान बना था, वह आज भी चल रहा है। लेकिन हमारे लगभग सभी पड़ौसी देशों
के संविधान एक बार नहीं, कई बार बदल चुके हैं। आजादी के बाद भारत को कई देशों के सामने झोली फैलानी
पड़ती थी लेकिन वैसा करना तो अब दूर रहा लेकिन ज़रा नजर डालें तो मालूम पड़ेगा कि आज भारत कई अन्य
देशों की झोलियां भर रहा है। भारत के नागरिक इस समय दुनिया भर के लगभग दर्जन भर देशों में उनके शीर्षस्थ
पदों पर विराजमान हैं। ये लोग जिस देश में भी जाकर बसे हैं, उस देश के सबसे समृद्ध सुशिक्षित और संस्कारित
वर्ग के लोगों के रूप में जाने जाते हैं। भारत का यह मयूर-नृत्य है। मोरपंखों की सुंदरता अत्यंत मनमोहक है
लेकिन उसके पांवों का हाल क्या है? आज भी करोड़ों लोग गरीबी-रेखा के आस-पास अपनी जिंदगी ढो रहे हैं। देश
के करोड़ों लोगों को आज भी शिक्षा और चिकित्सा की समुचित सुविधाएं उपलब्ध नहीं हैं। आज आजादी के 75 वर्ष
तो हम मना रहे हैं लेकिन अंग्रेजी भाषा और संस्कृति की गुलामी ज्यों की त्यों जारी है। उससे मुक्त होने के लिए
सिर्फ तिरंगा फहराना काफी नहीं है।