वैश्विक बिरादरी में किरकिरी

asiakhabar.com | October 7, 2022 | 3:49 pm IST
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भारत में बनी सर्दी-जुकाम की दवा का संबंध अफ्रीकी देश गाम्बिया में 66 बच्चों की मौत से जोड़ा
जा रहा है। इससे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर देश के लिए शर्मनाक स्थिति बन गई है। बताया जा रहा है
कि ये दवाएं हरियाणा के सोनीपत में स्थित एक फार्मास्यूटिकल्स कंपनी की बनाई हुई हैं। 66 बच्चों
की मौत के बाद विश्व स्वास्थ्य संगठन यानी डब्ल्यूएचओ को कंपनी को खांसी और जुकाम की 4
पीने वाली दवाओं को लेकर चेतावनी जारी की है। बुधवार को वैश्विक स्वास्थ्य पर प्रेस को जानकारी
देने के दौरान विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कहा कि गाम्बिया में पाई गईं चार दवाइयों को लेकर एक
चिकित्सा उत्पाद चेतावनी जारी की है जिसके एक्यूट किडनी इंजरी और 66 बच्चों की मौत से जुड़े
होने की संभावना है। ये चार दवाएं कफ़ और कोल्ड सिरप हैं जो भारत में बने हैं।
डब्ल्यूएचओ दवा निर्माता कंपनी और भारत में नियामक प्राधिकरणों के साथ आगे जांच कर रहा है।
ये दूषित उत्पाद अभी तक गाम्बिया में ही पाए गए हैं लेकिन ये अन्य देशों में भी वितरित की गई
होंगी। डब्ल्यूएचओ ने मरीजों को नुक़सान पहुंचने से रोकने के लिए सभी देशों को इन उत्पादों की
जांच करने और उन्हें हटाने की सलाह दी है। सामानों की गुणवत्ता को लेकर भारत की छवि कुछ
खास अच्छी नहीं है। कभी सामान सस्ता बेचने के लिए, कभी अधिक मुनाफे के लिए तो कभी
साधारण मध्यमवर्गीय या निम्न वर्ग के लोगों के लिए अक्सर उत्पाद की गुणवत्ता को नजरंदाज कर
दिया जाता है। कपड़ों से लेकर खाद्य पदार्थों तक अलग-अलग स्तर के उत्पाद मिलते हैं। निर्यात
वाला सामान और घरेलू बाजार में बिकने वाला सामान भी गुणवत्ता के मामले में एक-दूसरे से काफी
अलग होता है।
गरीब लोग अक्सर खराब चीजों से समझौता कर लेते हैं। घरेलू बाजार में दवाओं का गैरकानूनी काम
भी होता है और कई बार प्रतिबंधित दवाओं की बिक्री की खबरें भी आती हैं। ये सब भ्रष्टाचार के ही
अलग-अलग रूप हैं। और अब भारत में बनी दवा की गुणवत्ता पर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सवाल उठ
गए हैं। डब्ल्यू एच ओ के मुताबिक इन दवाओं की जांच के बाद इनमें डाइथिलीन ग्लाइकोल और
एथिलीन ग्लाइकोल की अनुचित मात्रा पाई गई है। जानकारों के मुताबिक ये दोनों तत्व बिना खुशबू
और रंग के होते हैं, लेकिन ये दवा में मिलकर उसे मीठी बना देते हैं।

लेकिन दवा में इन तत्वों को अधिक मिलाने पर ये सेहत के लिए खतरनाक साबित होते हैं।
अमेरिका, आस्ट्रेलिया और कई यूरोपीय देशों में डाइथिलीन ग्लाइकोल और एथिलीन ग्लाइकोल का
दवाओं में उपयोग प्रतिबंधित है। भारत में भी दो साल पहले जम्मू-कश्मीर के उधमपुर में एक कफ
सिरप के इस्तेमाल के बाद 12 बच्चों की मौत हो गई थी और इसमें डाइथिलीन ग्लाइकोल पाया गया
था। वैसे बच्चों की दवाओं में प्रॉपीलीन ग्लाइकोल का इस्तेमाल मुख्यत: किया जाता है, लेकिन
डाइथिलीन ग्लाइकोल अपेक्षाकृत सस्ता पड़ता है, इसलिए दवा निर्माता कं पनियां इसका इस्तेमाल
अधिक करती हैं।
गाम्बिया प्रकरण में डब्ल्यू एच ओ ने दवाओं के 23 नमूनों की जांच की और इनमें से 4 में
डाइथिलीन ग्लाइकोल और एथिलीन ग्लाइकोल होने की बात सामने आई है। दवाओं के स्वाद और
कीमत के फेर में क्या कोई जानलेवा लापरवाही हुई है, यह समुचित जांच के बाद ही पता चलेगा।
लेकिन इतना तय है कि किसी न किसी स्तर पर ऐसी चूक अवश्य हुई है, जिसे रोका जा सकता था।
66 बच्चों की मौत कोई मामूली घटना नहीं है। लेकिन अपने ही देश में हर साल मलेरिया, दस्त
और मामूली बुखार से ही हम रोजाना इतने बच्चों को मरते देखते हैं कि हमारी संवेदनाएं ही शायद
मर चुकी हैं।
दुनिया के दूसरे कोने में अबोध बच्चों की मौत से शायद देश के बहुत से लोगों को फर्क न पड़े। मगर
याद रखना होगा कि फर्क न पड़ने वाली यह प्रवृत्ति कभी हम पर भी भारी पड़ सकती है। कोरोना
काल में देश इस बात का भुक्तभोगी भी हो चुका है, जब इलाज के लिए गरीबों के साथ-साथ सक्षम,
संपन्न लोगों को भी अस्पतालों में लंबी कतारों में लगना पड़ा था। इससे पहले देश की लचर स्वास्थ्य
व्यवस्था पर संपन्न लोगों का ध्यान कम ही जाता था। वैसे इस दौरान भी योग व्यवसायी रामदेव ने
कोरोनिल दवा बना कर कोरोना के इलाज का दावा किया था और हद तो ये थी कि केन्द्रीय मंत्री इस
दवा को लॉन्च करने मंच पर उपस्थित थे। जिस महामारी के इलाज के लिए दुनिया भर के वैज्ञानिक
दिन-रात शोध में लगे थे, उसकी दवा बनाने का दावा रामदेव ने किया था। गनीमत ये है कि इस
दावे को अदालत में चुनौती दी गई।
कोरोनिल दवा बनाने और उसे बाजार में उतारने का यह प्रकरण साबित करता है कि सेहत जैसे
अनमोल वरदान को देश में कितना सस्ता बना दिया गया है। झाड़-फूंक करने से लेकर नीम-हकीमों
की परंपरा भी भारत में अब तक कायम है। तर्कशीलता और वैज्ञानिक सोच को अक्सर दरकिनार कर
दिया जाता है। इसके बाद अगर मरीज की जान चली जाए, तो उसे किस्मत की खराबी बता दिया
जाता है। इस मानसिकता का फायदा कम लागत में अधिक मुनाफा कमाने को लालायित उद्यमी
आसानी से उठा लेते हैं। खेद की बात है कि मुनाफा कमाने की इस प्रवृत्ति के कारण अब विश्व
बिरादरी के सामने देश को शर्मिंदा होना पड़ा है।


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