नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने मंगलवार को कहा कि लोथल में
राष्ट्रीय समुद्री विरासत परिसर भारत के समृद्ध समुद्री इतिहास का जश्न मनाने का हमारा संकल्प
है। उन्होंने कहा कि यह परिसर भारत के विविध समुद्री इतिहास के बारे में सीखने के लिए एक केंद्र
के रूप में कार्य करेगा।
प्रधानमंत्री ने आज वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से गुजरात के लोथल में राष्ट्रीय समुद्री विरासत
परिसर की साइट कार्य प्रगति की समीक्षा की। उन्होंने कहा कि नेशनल मैरीटाइम हेरिटेज कॉम्प्लेक्स
पर काम इसी साल मार्च में शुरू किया गया था। इसे करीब 3500 करोड़ रुपये की लागत से
विकसित किया जा रहा है।
उन्होंने कहा कि इतिहास की अनेक गाथाओं को भुला दिया गया है, उन्हें सुरक्षित करने और अगली
पीढ़ी तक पहुंचाने के रास्ते नहीं खोजे गए। इतिहास की उन घटनाओं से हम कितना कुछ सीख
सकते थे। भारत की समुंद्री विरासत भी एक ऐसा ही विषय है, जिनके बारे में बहुत कम चर्चा की
गई। प्रधानमंत्री ने कहा कि छत्रपति शिवाजी महाराज ने भी एक सशक्त नौसेना का गठन किया और
विदेशी आक्रांताओं को चुनौती दी। ये सब कुछ भारत के इतिहास का ऐसा गौरवपूर्ण अध्याय है, जिसे
नजरअंदाज ही कर दिया गया।
प्रधानमंत्री ने कहा कि इस वर्ष लाल किले से पंच प्राणों की चर्चा करते मैंने अपनी विरासत पर गर्व
की बात कही थी। हमारी समुद्री विरासत हमारे पूर्वजों की सौंपी गई ऐसी ही धरोहर है। हमारे इतिहास
की ऐसी अनेक गाथाएं हैं, जिन्हें भुला दिया गया, उन्हें सुरक्षित करने और अगली पीढ़ी तक पहुंचाने
के रास्ते नहीं खोजे गए। इतिहास की उन घटनाओं से हम कितना कुछ सीख सकते थे। भारत की
समुद्री विरासत भी ऐसा विषय है, जिसके बारे में बहुत कम चर्चा की गई है।
उन्होंने कहा कि सदियों पहले के भारत का व्यापार-कारोबार दुनिया के एक बड़े हिस्से में छाया हुआ
था। हमारे रिश्ते दुनिया की हर सभ्यता के साथ रहे, तो इसके पीछे भारत की समुद्री शक्ति की बहुत
बड़ी भूमिका थी। हमारे दक्षिण में चोल साम्राज्य, चेर राजवंश, पांड्य राजवंश भी हुए जिन्होंने समुद्री
संसाधनों की शक्ति को समझा और उसे एक अभूतपूर्व ऊंचाई दी। छत्रपति शिवाजी महाराज ने भी
एक सशक्त नौ सेना का गठन किया और विदेशी आक्रांता ओं को चुनौती दी। यह सब कुछ भारत के
इतिहास का ऐसा गौरव पूर्ण अध्याय है जिसे नजरअंदाज ही कर दिया गया।
प्रधानमंत्री ने कहा कि हजारों वर्ष पहले कच्छ में बड़े-बड़े समुद्री जहाजों के निर्माण का पूरा उद्योग
चला करता था। भारत में बने पानी के बड़े बड़े जहाज दुनिया भर में बेचे जाते थे। विरासत के प्रति
इस उदासीनता ने देश का बहुत नुकसान किया। ये स्थिति बदली जानी जरूरी है। हमने तय किया
कि धोलावीरा और लोथल को, भारत के गौरव के इन केंद्रों को हम उसी रूप में लौटाएंगे, जिसके
लिए कभी ये मशहूर थे।
उन्होंने कहा कि हाल ही में वडनगर के पास भी खुदाई के दौरान सिकोतर माता के मंदिर का पता
चला है। कुछ ऐसे साक्ष्य भी मिले हैं जिनसे प्राचीन काल में यहां से समुद्री व्यापार होने की जानकारी
मिलती है। इसी तरह सुरेंद्रनगर के झिंझुवाडा गांव में लाइट हाउस होने के साक्ष्य मिले हैं।
प्रधानमंत्री ने कहा कि लोथल सिर्फ सिंधु घाटी सभ्यता का एक बड़ा व्यापारिक केंद्र ही नहीं था,
बल्कि ये भारत के सामुद्रिक सामर्थ्य और समृद्धि का भी प्रतीक था। लोथल की खुदाई में मिले
शहर, बाजार और बंदरगाह के अवशेष, उस दौर में हुई अर्बन प्लानिंग और आर्किटेक्चर के अद्भुत
दर्शन कराते हैं। प्राकृतिक चुनौतियों से निपटने के लिए जिस प्रकार की व्यवस्था यहां थी, उसमें आज
की प्लानिंग के लिए भी बहुत कुछ सीखने को है।
उन्होंने कहा कि लोथल में ये जो हैरीटेज कॉम्प्लेक्स बन रहा है, उसको ऐसे बनाया जा रहा है कि
भारत का सामान्य से सामान्य व्यक्ति भी इस इतिहास को आसानी से जान सके, समझ सके। इसमें
अति आधुनिक तकनीक का प्रयोग करके, बिल्कुल उसी युग को फिर से सजीव करने का प्रयास
किया जा रहा है।