राजनीति और धर्म के घालमेल में इस्तेमाल होती आस्थावानों की भीड़

asiakhabar.com | February 22, 2023 | 6:16 pm IST
View Details

-निर्मल रानी-
मध्य प्रदेश के कुबेरेश्वर धाम में पिछले दिनों आयोजित हुये ‘रुद्राक्ष महोत्सव’ में भगदड़ मच गयी।
परिणाम स्वरूप कई लोग अपनी जान गंवा बैठे,सैकड़ों घायल हुये तो अनेक लापता हो गये। कुबेरेश्वर
धाम में 7 दिन तक चलने वाले इसी रुद्राक्ष महोत्सव में भगदड़ के ही समय प्रसिद्ध कथावाचक
पंडित प्रदीप मिश्रा की कथा भी चल रही थी जिसमें लाखों लोग शिरकत कर रहे थे। बताया जा रहा
है कि पांच दिन में 30 लाख श्रद्धालुओं को रुद्राक्ष बांटने का लक्ष्य निर्धारित किया गया था। अर्थात
प्रतिदिन 6 लाख लोगों को रुद्राक्ष वितरित किया जाना तय था। उसके बावजूद आयोजकों का यह
कहना कि उम्मीद से अधिक भीड़ आ गयी,यह समझ से परे है। जिस ‘चमत्कारी रुद्राक्ष’ के लिये
प्रत्येक वर्ष लाखों लोग इकठ्ठा होते हैं,इस के बारे में आश्रम की ओर से यह प्रचार किया जाता है कि
इस चमत्कारी रुद्राक्ष को पानी में डालने के बाद उस पानी को पी जाने से लोगों की हर परेशानी दूर
हो जाती है। कहा जाता है कि इससे सारे कष्ट का निवारण होता है।
कुबेरेश्वर धाम में ‘रुद्राक्ष महोत्सव’ के अंतर्गत चलने वाली इसी कथा के छठवें दिन भक्तों का गोया
सैलाब उमड़ पड़ा था। हज़ारों वाहन एक साथ कुबेरेश्वर धाम पहुंच गए थे। इन वाहनों के लिए 70
एकड़ में में पांच अलग अलग स्थानों पर पार्किंग बनाई गई थी जोकि पहले ही दिन भर चुकी थी।
पूरे सीहोर शहर में कथा में शामिल होने आये भक्त ही भक्त नज़र आ रहे थे। पचास किलोमीटर के
क्षेत्र में जाम की स्थिति थी। जाम में फंसे होने के कारण हज़ारों रेल व विमान यात्रियों की यात्रायें
छूट गयीं तो कई एम्बुलेंस भी जाम में फँसी रहीं। बच्चों की परीक्षायें छूटीं तो हज़ारों लोग जीवन
यापन हेतु अपने गंतव्य तक नहीं पहुँच सके। भगदड़ के समय अनियंत्रित भीड़ रेलिंग कूद कूद कर
अपनी जानें बचाती नज़र आयी। जबकि स्वयं पुलिस एसपी रैलिंग कूद कर भागते व स्थिति को
नियंत्रित करने की कोशिश करते दिखाई दिये। भूखे प्यासे लोग अपना पेट भरने के लिये कथास्थल
के आस पास के चने के खेतों में घुसकर चने के पौधे तोड़ उन्हें खाने को मजबूर थे। कुल मिलाकर
कथास्थल के आस पास के बड़े इलाक़े में चारों ओर घोर दुर्व्यवस्था का दृश्य दिखाई दे रहा था। ठीक
इसी समय जब कि लोग भगदड़ से परेशान रोते बिलखते और घायलावस्था में इधर उधर भाग रहे थे
उसी समय पंडित प्रदीप मिश्रा का प्रवचन निरंतर जारी थी। चश्मदीद भक्तों व श्रद्धालुओं के ही
अनुसार पंडित जी ने इतनी भयानक भगदड़ शोर शराबा और चीख़ पुकार के बावजूद न ही अपना
कथा सिंहासन छोड़ा न ही पीड़ितों के लिये सान्तवना के कुछ शब्द कहे। बल्कि कथा जारी रखते हुये
पीड़ित श्रद्धालुओं के घावों पर यह कहते हुये नमक ज़रूर छिड़का कि-‘मौत आनी है तो आयेगी ही’।
प्रदीप मिश्रा सत्ता के प्रिय कथावाचक हैं और न केवल इन्हें सुनने के लिये मध्य प्रदेश के मुख्य मंत्री
शिवराज सिंह चौहान जाते रहे हैं बल्कि राज्य के अनेक मंत्री इनकी कथा भी सुनते हैं। यहां तक कि

कथा शुरू होने से पूर्व मंत्रीगण कथास्थल का निरीक्षण भी करते रहे हैं। पं प्रदीप मिश्रा केवल प्रवचन
ही नहीं करते बल्कि प्रवचन के साथ साथ विवाह, नौकरी, संतान और परीक्षा में सफल होने संबंधी
अनेक टोटके भी बताते हैं। यहाँ तक कि वे क़र्ज़ से मुक्ति पाने और धनवान बनने तक के भी टोटके
बताते हैं। उनके अनुसार इन टोटकों का ज़िक्र पुराणों में किया गया है। इतना ही नहीं बल्कि अपनी
कथा में वे सास-बहू, देवरानी-जेठानी, ननद-भौजाई और अन्य रिश्तों के तमाम खट्टे मीठे क़िस्से भी
सुनाते हैं। इसी प्रकार मध्य प्रदेश में ही सत्ता के एक और चहेते युवा ‘कथावाचक’ हैं पंडित धीरेन्द्र
शास्त्री। अपने मसख़रे अंदाज़ में कथा कर ये भी लोगों का दिल जीतने की कला में माहिर हैं।
भूख,बेरोज़गारी और मंहगाई के इस युग में इस तरह के कथावाचक भक्तों की हर तरह की
समस्याओं का समाधान करने का दावा करते हैं। परन्तु वास्तव में इन और इन जैसे अनेक प्रवचन
कर्ताओं के समागम में आने वाली भक्तजनों की भीड़ ही राजनेताओं के लिये ‘वोट बैंक’ का काम
करती है इसलिये भक्तों की इसी भीड़ से अपना ‘रिश्ता साधने’ के लिये राजनेता भी कथावाचकों के
समागम में जाते हैं और बाक़ायदा स्टेज पर जाकर श्रद्धालुओं को प्रभावित करते रहते हैं। कथावाचकों
द्वारा की गयी सम्पूर्ण व्यवस्था पर इनकी पकड़ बनी रहे इसीलिये राजनैतिक दलों व इनसे
सम्बंधित संगठनों के कार्यकर्त्ता कथा पंडाल की व्यवस्था में भी सक्रियता से भाग लेते हैं।
इस समय देश के कई प्रमुख तथाकथित संत अपने दुष्कर्मों व जघन्य अपराधों की सज़ा काट रहे हैं।
ऐसे कई सज़ायाफ़्ता ‘धर्मगुरुओं’ को भी सत्ता संरक्षण प्राप्त रहा है और अभी भी है। भले ही वे
अपराधी क्यों न हों परन्तु इनके समर्थकों का एक बड़ा वोटबैंक इनके साथ है। इसी वोट बैंक की
लालच दिखाकर इसतरह के शातिर ‘धर्मगुरु’ इसका लाभ किसी न किसी रूप में उठाते रहते हैं। ऐसे
में सवाल यह उठता है कि क्या श्रद्धालुओं और आस्थावानों की भक्ति भावना व उनकी आस्था व
विश्वास का लाभ उठाकर उन्हें वोट बैंक के रूप में किसी भी राजनैतिक दल विशेष या किसी राजनेता
को ‘परोसना’ या सीधे तौर पर किसी दल के पक्ष में वोट देने के लिये बाक़ायदा अपील जारी करना
आख़िर कितना मुनासिब है? क्या प्रवचनकर्ता, मौलवी, इमाम, मौलाना, पादरी या किसी भी धर्म के
धर्मगुरुओं का अब यही काम रह गया है वे अपने भोले भले अनुयायियों को आध्यात्मिक ज्ञान देने के
बजाये इसी बहाने उनका राजनैतिक लाभ उठायें? भक्तों की समस्याओं का समाधान इन जैसों के
प्रवचन व तक़रीर से किसी को होता हो या न होता हो परन्तु उन्हीं भक्तों की भीड़ दिखाकर ये
शातिर ‘धर्माधिकारी’ सत्ता से अपना उल्लू साधने में ज़रूर कामयाब हो जाते हैं। इसलिये यह कहना
ग़लत नहीं होगा कि राजनीति और धर्म के इसी घालमेल में आस्थावानों को महज़ एक ‘भीड़’ की
शक्ल में इस्तेमाल किया जाता है। जोकि उनके अपने भक्तों व अनुयायियों के साथ किये जा रहे
धोखे के सिवा और कुछ नहीं।


Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *