-सनत जैन-
भारत में चुनाव आयोग को संवैधानिक दर्जा प्राप्त है। निष्पक्ष चुनाव कराने की जिम्मेदारी चुनाव
आयोग को संविधान ने सौंपी है. 70 साल से भारत में लोकसभा और विधानसभा के चुनाव हो रहे हैं।
कई दशकों का अनुभव और चुनाव कराने की परंपराएं चुनाव आयोग के पास मौजूद हैं। उसके बाद
भी निष्पक्ष और निर्भीक चुनाव नहीं हो पा रहे हैं। चुनाव लड़ रहे उम्मीदवारों को यदि समान अवसर
प्राप्त नहीं हो पा रहे हैं। ऐसी स्थिति में कैसे निष्पक्ष चुनाव होंगे। कैसे लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं को
कायम रखा जा सकेगा। संवैधानिक संस्थाओं की जिम्मेदारी क्या सरकारों के भरोसे उनकी मनमर्जी
पर चलेंगी। इसको लेकर अब चर्चाएं होने लगी हैं।
2018 से सरकार ने चुनावी चंदा के लिए इलेक्ट्रोल बांड की व्यवस्था शुरू की है। 2000 रूपये से
अधिक का नगद चंदा लेने पर राजनैतिक दलों पर रोक लगा दी गई। उसके बाद से चुनाव में सभी
उम्मीदवारों को समान अवसर प्राप्त नहीं हो रहे हैं। सत्तारूढ़ राजनीतिक दल को 80 से 95 फ़ीसदी
तक चंदा प्राप्त हो रहा है। अन्य राजनीतिक दलों को चंदा ही नहीं मिल पा रहा है। जिससे विपक्षी
राजनीतिक दल और उनके उम्मीदवार आर्थिक संकट से जूझ रहे हैं। प्रत्याशियों के चुनाव खर्च की जो
सीमा चुनाव आयोग से निर्धारित की गई है। उतना पैसा भी निर्दलीय और विपक्षी दलों के उम्मीदवारों
के पास खर्च करने को नहीं होता है। वहीं सत्तारूढ़ दल के उम्मीदवार और उनका दल सैकड़ों गुना
ज्यादा पैसा प्रचार में खर्च करते हैं। उसके बाद निष्पक्ष चुनाव और समान अवसर सभी उम्मीदवारों
को मिले। यह भारत में संभव ही नहीं रहा।
टी एन सेशन जब चुनाव आयुक्त थे। तब उन्हें जो अधिकार प्राप्त थे! वर्तमान चुनाव आयोग के
पास भी वहीं अधिकार हैं। शेषन जिस निष्पक्ष तरीके से चुनाव कराए। उसकी यादें आज भी ताजा
होती हैं। चुनाव आयोग का सत्तारूढ़ दल पर अब जैसे कोई नियंत्रण ही नहीं रह गया है। सत्तारूढ़ दल
जैसा चाहते हैं चुनाव आयोग से वैसा शिकायतो पर निर्णय कर रहे हैं जिसके कारण अब चुनाव
आयोग की भूमिका और निष्पक्ष चुनाव को लेकर एक नई कसमकस सारे देश में मतदाताओं के बीच
देखने को मिल रही है।
गुजरात राज्य में दो चरणों में चुनाव हो रहे हैं। पहले चरण के मतदान का प्रचार बंद हो चुका था।
जब गुजरात में पहले चरण का मतदान हो रहा था। उसी समय दूसरे चरण के चुनाव प्रचार को लेकर
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 54 किलोमीटर की रैली कर चुनाव प्रचार किया। मतदान के दौरान सभी
राष्ट्रीय टीवी चैनल और प्रांतीय चैनल मोदी की रैली और सभाओं का लाइव कवरेज करते रहे। यह
पूरे प्रदेश और देश में देखा जा रहा था। चुनाव आयोग ने इस शिकायत पर कोई भी संज्ञान नहीं
लिया। इसके पहले भी गुजरात विधानसभा चुनाव और लोकसभा चुनाव के दौरान प्रधानमंत्री ने इसी
तरीके की रैलियां उस समय की थी। जिसकी शिकायत विपक्षी दलों द्वारा की गई थी। चुनाव आयोग
ने कोई कार्यवाही नहीं की। कुछ इसी तरीके की स्थिति चुनावी चंदे सीबीआई ईडी आयकर विभाग के
छापे इत्यादि से भी विपक्षी दलों को चुनाव के दौरान चुनाव प्रचार और चुनाव की रणनीति को
प्रभावित करने के लिए पिछले कई वर्षों से हो रहा है। मतदाताओं के भी दिमाग में यह बात अब
प्रभावित कर रही है। यही कारण है कि मतदाताओं का चुनाव और मतदान से अब विश्वास कम होता
जा रहा है। गुजरात विधानसभा के वर्तमान चुनाव में पिछले चुनावों की तुलना में कम मतदान हुआ
है। इससे स्पष्ट है कि मतदाताओं का वर्तमान चुनाव प्रक्रिया से विश्वास कम हो रहा है। मतदाताओं
के बीच में भी अब यह कहा जाने लगा है। चुनाव आयोग के दांत हाथी के दांत की तरह हैं। चुनाव
आयोग के दांत विपक्षी दलों को डराने के लिए हैं।