‘बागेश्वर धाम’ के बाबा धीरेन्द्र शास्त्री आजकल एक महायज्ञ कर रहे हैं। महायज्ञ में अनेक साधु-संत
मंत्रोच्चारण कर हवन-कुंड में आहुति डाल रहे हैं। बागेश्वर बाबा अपने दरबार में नारे लगवा रहे हैं कि
भारत ‘हिंदू राष्ट्र’ बनकर रहेगा। उनके आह्वान पर उपस्थित भीड़ ‘हिंदू राष्ट्र’ पर अपनी सहमति देती
है। बाबा ने यह भी खुलासा किया है कि संसद में ‘हिंदू राष्ट्र’ पर जल्द ही कुछ होने वाला है। जहां
तक हमारी सूचना है, सरकार की कार्य-सूची में ऐसा कोई एजेंडा नहीं है। वैसे भी 13 मार्च तक संसद
अवकाश पर है। उसके बाद बजट के शेष सत्र के दौरान यह स्पष्ट हो जाएगा कि ‘हिंदू राष्ट्र’ पर क्या
होने वाला है? हमारा मानना है कि भोली और धर्मांध जनता को बरगलाया और उकसाया जा रहा है।
यह परोक्ष रूप से एक चुनावी एजेंडा भी साबित हो सकता है। बहरहाल साधु-संतों ने दिल्ली के जंतर-
मंतर पर भी प्रतीकात्मक ‘धर्म संसद’ का आयोजन किया था, ताकि ‘हिंदू राष्ट्र’ के मुद्दे को और
गरमाया जा सके। आश्चर्य तब हुआ, जब उप्र के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी कहा कि भारत
को ‘हिंदू राष्ट्र’ बनाने से परहेज नहीं होना चाहिए। वह मानते हैं कि भारत अपनी आत्मा और
संस्कृति से ‘हिंदू राष्ट्र’ ही है।
आरएसएस के सरसंघचालक मोहन भागवत विभिन्न मुद्दों के संदर्भ में मानते रहे हैं कि जिसका
जन्म हिंदुस्तान में हुआ है और इसी देश का नागरिक है, उसकी धार्मिक पूजा-पद्धति कुछ भी हो, वे
मूलत: ‘हिंदू’ ही हैं। संघ प्रमुख मुसलमानों को भी ‘हिंदू’ मानते रहे हैं, जबकि मुस्लिम नेता, मुल्ला-
मौलवी और औसत मुसलमान को भी ऐसी हिंदू-अवधारणा पर सख्त ऐतराज है। दरअसल भारत
संवैधानिक तौर पर ‘हिंदू राष्ट्र’ बन ही नहीं सकता, बेशक यहां की 83 फीसदी से अधिक आबादी हिंदू
है अथवा हिंदुओं के साथ अपना सहज और स्वाभाविक धर्म महसूस करती रही है। दूसरे, संविधान के
अनुच्छेदों 25 से 28 तक में धार्मिक स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार की स्पष्ट व्याख्या है। यानी कोई
भी नागरिक किसी भी धर्म का पालन कर सकता है। एक निश्चित पूजा-पद्धति में आस्था रख
सकता है। अपने आध्यात्मिक मूल्यों का प्रचार-प्रसार कर सकता है। बेशक बाद में जोड़ी गई, लेकिन
संविधान की प्रस्तावना में ही स्पष्ट है कि भारत एक ‘पंथनिरपेक्ष’ देश है। हालांकि संविधान के मूल
ग्रंथ में श्रीराम के दरबार का चित्र है। राजा विक्रमादित्य के दरबार, बौद्ध सम्राट अशोक, अर्जुन को
श्रीकृष्ण का गीता-उपदेश, महाभारत, भगवान महावीर स्वामी, भगीरथ और गंगा-अवतरण, छत्रपति
शिवाजी, महाबलीपुरम मंदिर और महात्मा गांधी की ‘दांडी यात्रा’ आदि की तस्वीरें भी प्रकाशित की
गई हैं। मुगल बादशाहों में अकबर की तस्वीर ही दिखाई देती है।
ज्यादातर तस्वीरें सनातन धर्म और उसकी घटनाओं से जुड़ी हैं। महाराजाओं और शासकों की भी
तस्वीरें ऐसी छापी गई हैं, जो हिंदू धर्म से जुड़े थे अथवा उसमें आस्था रखते थे। वे वैदिक संस्कृति
के भी पक्षधर थे, लिहाजा ‘वैदिक गुरुकुल’ की तस्वीर भी संविधान के ग्रंथ में छापी गई है।
प्रथमद्रष्ट्या सोच सनातनी ही लगती है। यह ग्रंथ भी प्राचीन नहीं है, 1950 के आसपास छापा गया
था। सिर्फ इन्हीं के आधार पर भारत को ‘हिंदू राष्ट्र’ घोषित नहीं किया जा सकता, क्योंकि देश
संविधान और संसद से चलता है। यदि फिर भी ‘हिंदू राष्ट्र’ बनाने की कोई कोशिश की जाती है, तो
वह भयंकर विघटनकारी होगी। बेशक संसद के दोनों सदनों में भाजपा और उसके समर्थक दलों का
पर्याप्त बहुमत है, लेकिन ऐसे मुद्दे बहुमत से तय नहीं किए जा सकते। ‘हिंदू राष्ट्र’ का शोर मचाने
के हासिल क्या होंगे? भारत विकास के पथ पर बढ़ रहा है, और भी गति से बढऩा होगा, ताकि विश्व
में हम और भी ऊंचा स्थान प्राप्त कर सकें। हमारे देश में अब भी आर्थिक और सामाजिक
विसंगतियां, विषमताएं भी हैं। कमोबेश उनसे लडक़र कम करने के प्रयास भी किए जाने चाहिए। हिंदू
धर्म यह नहीं सिखाता कि विसंगतियां बरकरार रहें और धार्मिक शोर बढ़ता जाए। पंथनिरपेक्षता हमारी
मार्गदर्शक है।