-डा. वरिंदर भाटिया-
भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए खुशनुमा खबर है। देश के सकल घरेलू उत्पाद में 13.5 फीसदी की
वृद्धि देखी जा रही है। सकल घरेलू उत्पाद देश के भीतर एक निश्चित समय के भीतर उत्पादित हुए
सभी वस्तुओं और सेवाओं का मूल्य होता है। यह वास्तव में किसी भी देश की अर्थव्यवस्था का
आइना होता है। इसमें देश की सीमा के अंदर रहकर जो विदेशी कंपनियां प्रोडक्शन करती हैं, उन्हें भी
शामिल किया जाता है। इस समय भारत दुनिया की छठी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है और मार्च 2023
में समाप्त होने वाले चालू वित्त वर्ष में इसके सात प्रतिशत से अधिक बढऩे की उम्मीद है जो इसे
तेजी से बढ़ रही अर्थव्यवस्थाओं में प्रमुखता से खड़ा करती है। कई विशेषज्ञों का मानना है कि 2050
तक संयुक्त राज्य अमेरिका और चीन के बाद भारत दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन
सकता है। हालांकि इसकी प्रति व्यक्ति आय कम रह सकती है। भारत की प्रति व्यक्ति आय 2000
के बाद से चौगुनी से अधिक हो गई है। तब यह आंकड़ा 500 डॉलर प्रति व्यक्ति प्रति वर्ष का था।
1947 के बाद से हमारे सकल घरेलू उत्पाद में 30 गुना की, तो प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद में
8 गुना वृद्धि हुई है। लेकिन विकास के ये आंकड़े इतने प्रभावशाली नहीं हैं कि हमें विकासशील से
विकसित देश की श्रेणी में तेजी से आगे ले जा सकें। 1950-51 में भारत की जीडीपी 2.79 लाख
करोड़ रुपए से बढक़र 2021-22 में अनुमानित रूप से 147.36 लाख करोड़ रुपए हो गई है। भारत
की अर्थव्यवस्था वर्तमान में 3.17 ट्रिलियन पर है, जिसके 2022 में दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी
अर्थव्यवस्था बनने की उम्मीद है। भारत की प्रति व्यक्ति शुद्ध राष्ट्रीय आय (सकल घरेलू उत्पाद से
घटाया गया मूल्यह्रास, विदेशी स्रोतों से आय) 1950-51 में 12493 रुपए थी। 2021-22 में यह
बढक़र 91481 रुपए हो गई है। 1947-48 में जहां सरकार की कुल राजस्व प्राप्तियां 171.15 करोड़
रुपए थीं जो अब 2021-22 में बढक़र 2078936 करोड़ रुपए हो गई हैं। भारत का विदेशी मुद्रा भंडार
1950-51 में 911 करोड़ रुपए से बढक़र 2022 में 4542615 करोड़ रुपए हो गया है। इन आंकड़ों के
आधार अब भारत के पास दुनिया का पांचवां सबसे बड़ा विदेशी मुद्रा भंडार है।
भारत का खाद्यान्न उत्पादन जो 1950-51 में 50.8 मिलियन टन था, वह बढक़र अब 316.06
मिलियन टन हो गया है। देश में साक्षरता दर भी बढ़ी है। 1951 में यह 18.3 प्रतिशत थी जो अब
बढक़र 78 प्रतिशत हो गई है। महिलाओं में भी साक्षरता दर 8.9 प्रतिशत से बढक़र 70 प्रतिशत से
अधिक हो गई है। देश की प्रगति के ये आंकड़े भले ही अपने आप में कितने प्रभावशाली दिखें, फिर
भी एक विकसित राष्ट्र का लेबल मिलने की आकांक्षा को पूरा करने के लिए पर्याप्त नहीं हैं। आज
विकसित देशों में, आबादी के एक बड़े हिस्से के पास गुणवत्तापूर्ण शिक्षा, स्वास्थ्य सेवाओं और
परिवहन जैसी बुनियादी आवश्यकताओं की पहुंच है। उन देशों में समृद्धि स्पष्ट रूप से नजर आती है
जिसके प्रतीक बड़ी कारों और उच्च आवासीय और वाणिज्यिक टावरों के अलावा मजबूत पर्यावरण
संरक्षण और नागरिक मानदंडों का पालन भी है। इसके ठीक विपरीत हमारे गांवों में लाखों लोग अब
भी भूखे सोते हैं और स्कूलों, अस्पतालों, सडक़ों जैसी तमाम बुनियादी सुविधाओं से वंचित हैं।
शहरों की स्थिति भी बेहतर नहीं है जहां कचरे के पहाड़ खड़े रहते हैं तो अपर्याप्त पाइप्ड सीवरेज
नेटवर्क के अलावा पानी और बिजली की कमी का संकट भी आए दिन रहता है। हमें इस पर ध्यान
देना होगा। कुल मिला कर भारतीय अर्थव्यवस्था इस समय रिकवरी के मोड पर है। आर्थिक सेहत से
जुड़े ताजा आंकड़े इकोनॉमी में वापसी की गवाही भी दे रहे हैं। राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय द्वारा
जारी आंकड़ों के अनुसार देश की अर्थव्यवस्था में चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही (अप्रैल-जून) में
13.5 प्रतिशत की दर से वृद्धि हुई है। भारतीय अर्थव्यवस्था के मोर्चे पर एक और अच्छी खबर है
कि वैश्विक वित्तीय सेवा फर्म मॉर्गन स्टेनली ने अनुमान लगाया कि भारतीय अर्थव्यवस्था साल 2023
में पूरी दुनिया में सबसे तेज गति से आगे बढ़ेगी, यानि भारत का विकास अन्य देशों की तुलना में
कहीं अधिक तेज गति से होगा।
केवल इतना ही नहीं विश्लेषकों ने इसे सबसे मजबूत और सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में से एक
बताया है जो एशियाई और वैश्विक विकास में क्रमश: 28 और 22 प्रतिशत का योगदान देती है।
हालांकि आर्थिक समीक्षा 2021-22 के सारांश में केंद्र सरकार ने 2022-23 में भारत की आर्थिक
विकास दर 8.0-8.5 फीसदी होने का अनुमान लगाया था। इसके अलावा विश्व बैंक, एशियाई विकास
बैंक और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के अनुमानों के अनुसार भी भारत 2021-24 के दौरान विश्व की
प्रमुख तीव्रगामी अर्थव्यवस्था बना रहेगा। विश्लेषकों ने यह भी कहा है कि भारतीय अर्थव्यवस्था एक
दशक से अधिक समय में अपने सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन के लिए तैयार है, क्योंकि इसके जरिए पूरी दुनिया
की रुकी हुई मांगों को पूरा किया जा रहा है।
एक रिपोर्ट के मुताबिक, कमोडिटी की कीमतों में कमी और कोविड के बाद अर्थव्यवस्था फिर से
खुलने से मांग बढ़ रही है। इससे भारत में तेजी से आर्थिक रिकवरी हो रही है। इसी आधार पर भारत
की इकोनॉमी दुनिया में सबसे तेजी से आगे बढ़ सकती है। हाल ही में जारी हुई वल्र्ड इकोनॉमिक
आउटलुक की रिपोर्ट के मुताबिक भारत की जीडीपी वित्त वर्ष 2022 में 7.4 और 2023 में 6.1 रहने
की उम्मीद है जो अन्य बड़ी अर्थव्यवस्थाओं जैसे अमेरिका, यूरो एरिया, जर्मनी, फ्रांस, इटली, स्पेन,
जापान व यूनाइटेड किंगडम की तुलना में कहीं बेहतर है। वहीं वर्ष 2021 में बड़ी अर्थव्यवस्थाओं की
तुलना में भारत की जीडीपी सबसे ऊपर 8.7 रही, जिससे पता चलता है कि भारत की स्थिति अन्य
विकसित देशों की तुलना में बेहतर रही है। लेटेस्ट वल्र्ड इकोनॉमिक आउटलुक ग्रोथ प्रोजेक्शन की
रिपोर्ट बताती है कि 2021 में भारत एक बड़ी अर्थव्यवस्था के रूप में उभरकर सामने आया है।
भारतीय अर्थव्यवस्था की रफ्तार को लेकर सरकार भी पॉजिटिव नजर आ रही है। केंद्र सरकार की
एक रिपोर्ट बतलाती है कि भारतीय अर्थव्यवस्था में विदेशी निवेशकों का भरोसा बढऩे लगा है।
वित्त मंत्रालय की रिपोर्ट के मुताबिक भारतीय अर्थव्यवस्था में विदेशी निवेशकों का भरोसा फिर से
बढऩे लगा है और अगस्त महीने की 12 तारीख तक विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (एफपीआई) की
तरफ से 2.9 अरब डालर का निवेश किया जा चुका है। रिपोर्ट के मुताबिक चालू वित्त वर्ष 2022-23
की पहली तिमाही में 13.6 अरब डालर का प्रत्यक्ष विदेशी निवेश रहा जबकि पिछले वित्त वर्ष की
समान अवधि में 11.6 अरब डालर का विदेशी निवेश किया गया था। याद रहे कि हाल ही में ब्रिक्स
सम्मेलन में प्रधानमंत्री जी ने कहा था कि भारत का सकल घरेलू उत्पाद चालू वित्त वर्ष में 7.5
फीसदी बढऩे के लिए तैयार है और यह इसे दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती प्रमुख अर्थव्यवस्था बना
देगा। इन सभी पहलुओं पर गौर करने के बाद साफ होता है कि कोरोना महामारी, रूस-यूक्रेन युद्ध
और आपूर्ति शृंखला में अवरोधों के बावजूद रिकवरी मोड में आ चुकी भारतीय आर्थिकी अब सबसे
तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था बन रही है, जो प्रसन्नता का विषय है।