ऐलीफेंटा गुफाएं भले ही शिव की अदभुत प्रतिमाओं के लिये दुनियाभर में जानी जाती हों लेकिन
भौगोलिक संरचना और बेमिसाल शिल्प के लिये भी इन गुफाओं को अवश्य देखा जाना चाहिये। यहां
साल में किसी भी वक्त जा सकते हैं। खजुराहो की ही तरह इन्हें भी यूनेस्को की तरफ से विश्व
विरासत का दर्जा मिला हुआ है। इन्हें यह दरजा 1987 में दिया गया था। एलीफेंटा द्वीप पर स्थित
ये गुफाएं शैव मतावलम्बियों का महत्त्वपूर्ण स्थान है क्योंकि शिव के विभिन्न रूपों वाली कई अदभुत
प्रतिमाएं यहां मौजूद हैं। ये प्रतिमाएं न केवल उस समय की मूर्तिकला के बारे में बल्कि धार्मिक
मान्यताओं के बारे में भी कई बातें कहती हैं।
ये गुफाएं कब गढी गईं, इस बारे में बिल्कुल पुष्ट तौर पर जानकारी कम ही मिलती है। कहा जाता है
कि सिल्हारा राजाओं ने नौवीं से लेकर तेरहवीं सदी ईस्वीं के बीच इन्हें बनवाया। मन्याखेटा (मौजूदा
कर्नाटक) के तत्कालीन राष्ट्रकूट राजाओं का शिल्प भी कई मूर्तियों में झलकता है। रोचक बात यह है
कि यह समय भारतीय शिल्प के लिहाज से स्वर्णिम दौर था जब उत्तर में चम्बा और मध्य भारत में
खजुराहो से लेकर पूर्व में कोणार्क तक के मन्दिर बनवाये गये। ये सभी शिल्प की दृष्टि से इतिहास
की अमूल्य धरोहर हैं। कोंकणी मौर्यों के समय तक इस द्वीप को घारापुरी कहा जाता था। बाद में
एक हाथी की प्रतिमा मिलने से इसे एलीफेंटा कहा जाने लगा।
एलीफेंटा गुफाओं को इस तरह से गढा गया था कि प्रतिमाओं समेत साठ हजार वर्ग फुट में फैला
समूचा परिसर ही अपने आप में एक शिल्प सरीखा प्रतीत होता है। चट्टानों को काट-काटकर अन्दर
की जगह, स्तम्भ और दीवारों पर दैवरूप तैयार किये गये। इस मायने में यह समूचा शिल्प बेजोड
लगता है। इसका दूर समुद्र में एक द्वीप पर होना तो इसे और भी हैरतअंगेज बनाता है। परिसर में
बने लम्बे गलियारों और कक्षों को देखकर हैरत होती है कि इन्हें पहाड के भीतर कैसे गढा गया
होगा। इनमें से कई जगह कोरी चट्टानें जस की तस हैं तो कई चट्टानों पर इतना बारीक काम है
कि दांतों तले उंगली दबानी पडे। यहां शिव की ज्यादातर प्रतिमाएं आदमकद या उससे भी बडी हैं।
परिसर में एक मुख्य कक्ष है। अलग-अलग कई और मन्दिर भी हैं। जबकि मुख्य मन्दिर के ऊपर का
हिस्सा कोरी चट्टानों का है। मन्दिर में प्रवेश के तीन द्वार हैं। पूर्वी व पश्चिमी द्वारों को जोडने
वाला गलियारा ही एक तरह से मन्दिर की धुरी है जिसमें बीस स्तम्भ गढे गये हैं।
एलीफेंटा में शिव की त्रिमूर्ति अपने आप में ऐसी प्रतिमा केवल जिसे देखने ही एलीफेंटा जाया जा
सकता है। कई इतिहासकार ईश्वर के भौतिक स्वरूप को दर्शाने वाली इस त्रिमूर्ति को पूरी दुनिया में
बेमिसाल बताते हैं। हिंदू मान्यता में त्रिमूर्ति में ब्रह्मा, विष्णु, महेश को दर्शाया जाता है। लेकिन यह
बीस फुट ऊंची त्रिमूर्ति महेश यानी शिव के ही तीन रूपों की है। एक चेहरे में शिव को उत्तेजक होठों
वाले युवा के रूप में दिखाया गया है। यह छवि सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा से मिलती-जुलती है। दूसरा
चेहरा मूंछधारी युवा का है जिसके चेहरे से गुस्सा झलक रहा है। यह छवि विनाशक रुद्र से मिलती
है। तीसरा चेहरा जो मध्य में है, वह पालक सरीखे शान्त और ध्यानमग्न व्यक्ति का है। यह
योगेश्वर की छवि देता है। यानी पारम्परिक रूप से जो छवियां ब्रह्मा, विष्णु और महेश की रही हैं, वे
तीनों छवियां शिव के ही रूपों में दिखाई गई हैं। कहा यह भी जाता है कि यह पंचमुखी शिव के ही
तीन चेहरे हैं जो चट्टान पर गढे गये हैं।
इसी तरह एलीफेंटा गुफाओं की दक्षिण दीवार पर कल्याणसुंदरा, गंगाधरा, अर्द्धनारीश्वर व उमा
महेश्वर के रूप में शिव की प्रतिमाएं हैं। उत्तरी प्रवेश द्वार के बाईं ओर नटराज और दायीं ओर
योगीश्वर के रूप में भी शिव की मूर्तियां हैं। यहां महेश शिवलिंग के रूप में भी हैं और विभिन्न रूपों
में भी। मुख्य मन्दिर के पूरब में एक अन्य मन्दिर के कक्ष में शिव पुराण से जुडी कहानियां दर्शाई
गई हैं।
मानसून को छोड कभी भी जायें:- एलीफेंटा गुफाएं बाम्बे हार्बर में एक द्वीप पर स्थित हैं। मुम्बई में
गेटवे ऑफ इंडिया के निकट स्थित अपोलो बंदर से यहां के लिये रोजाना दिन में कई बार मोटर लांच
चलते हैं जो लगभग घण्टे भर में नौ समुद्री मील दूर गुफाओं में पहुंचा देती है। मानसून के दौरान
यहां जाने में दिक्कत होती है और उस समय मोटरबोट सेवा स्थगित भी हो सकती है। लिहाजा यहां
जाने का सर्वश्रेष्ठ समय नवम्बर से मार्च तक है। टिकट व बोट के जाने के समय की जानकारी गेटवे
ऑफ इंडिया पर मिल जाती है। सोमवार को यहां प्रवेश बन्द होता है और शुक्रवार को प्रवेश मुफ्त
रहता है। द्वीप पर जहां नाव उतारती है वहां से सीढियां जाती हैं। यहां महाराष्ट्र पर्यटन का होटल व
रेस्तरां भी है लेकिन द्वीप पर रात में रुकने की इजाजत नहीं है। शाम पांच बजे सभी पर्यटकों को
द्वीप छोडना पडता है।