जनता दल-यू के अध्यक्ष ललन सिंह ने हुंकार भरी है कि 2024 में भारत को ‘भाजपा-मुक्त’ किया
जा सकता है। प्रधानमंत्री मोदी और भाजपा को चुनावों में पटखनी दी जा सकती है। बिहार में
लोकसभा की सभी 40 सीटें जद-यू गठबंधन जीतेगा। यह भी दावा किया गया है कि यदि नीतीश
कुमार को दिल्ली भेज दें, तो 6 महीने में ही सरकार गिर जाएगी। ललन सिंह कौन हैं, फिलहाल
बिहार के बाहर देश उन्हें नहीं जानता कि वह कैसे अफलातून हैं। वह जद-यू सरीखे क्षेत्रीय दल के
मनोनीत अध्यक्ष हैं, जिन पर नीतीश कुमार की ‘कृपा’ है। उन्होंने जद-यू की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की
बैठक में ‘राष्ट्रीय पार्टी’ बनने का लक्ष्य तय किया है। फिलहाल लालू-तेजस्वी यादव के राजद के सहारे
नीतीश कुमार और जद-यू बिहार में सत्तारूढ़ हैं। वे कब पलटू हो जाएं, कुछ कहा नहीं जा सकता।
अलबत्ता भाजपा ने अब गठबंधन करने से तौबा कर ली है। बहरहाल ललन सिंह का बयान महज
बड़बोलापन और अपरिपक्व सियासत का उदाहरण तो हो सकता है। इसके अलावा वह बेमानी है।
बेशक प्रधानमंत्री मोदी ‘अपराजेय’ नहीं हैं, यह विश्लेषण हम कर चुके हैं, लेकिन 300 से ज्यादा
लोकसभा सांसदों, करीब 100 राज्यसभा सदस्यों, देश के 17 राज्यों में सरकारें और विधायकों तथा
करीब 18 करोड़ के काडर वाली भाजपा से मुक्त भारत की कल्पना की जा सकती है? कभी भाजपा
और खासकर प्रधानमंत्री मोदी ने ‘कांग्रेस-मुक्त भारत’ का नारा दिया था।
बीते एक अरसे से भाजपा ने भी यह नारा छोड़ दिया है। अब तो हिमाचल में कांग्रेस सरकार बनने के
बाद तीन राज्यों में पार्टी सत्तारूढ़ है। 2019 के आम चुनाव में करीब 12 करोड़ मतदाताओं ने कांग्रेस
के पक्ष में वोट दिया था। गुजरात और दिल्ली नगर निगम के चुनावों में कांग्रेस हाशिए पर आ गई
है। उसके अलावा, आम आदमी पार्टी (आप) देश की सबसे छोटी और शैशवकालीन पार्टियों में एक है।
मात्र 10 साल की राजनीति के बाद ही वह ‘राष्ट्रीय पार्टी’ बन गई है। क्या ‘आप’ मुक्त भारत की
आवाज़ बुलंद की जा सकती है? दरअसल हमारा मानना है कि साझा विपक्ष लोकसभा की सभी 543
सीटों पर, भाजपा के रूबरू, साझा उम्मीदवार उतारे और सामूहिक तौर पर पूरा चुनाव लड़े, तो मोदी
और भाजपा को बेचैन किया जा सकता है। जीत-हार के दावे तब भी नहीं किए जा सकते। जद-यू की
राजनीतिक हैसियत तो बौनी-सी है। प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व और प्रचार के बावजूद विधानसभा और
स्थानीय स्तर के चुनाव विपक्ष जीत सकता है, लेकिन देश के आम चुनाव की बात शुरू होगी, तो
प्रधानमंत्री मोदी आज भी सबसे लोकप्रिय, स्वीकार्य और राष्ट्रीय नेता हैं। यह उनके धुर विरोधी और
वामपंथी चिंतक तक मानते हैं। आम चुनाव के संदर्भ, मुद्दे और सरोकार भी ‘राष्ट्रीय’ होते हैं।
राष्ट्रीय संदर्भ में जद-यू फिलहाल ‘भ्रूण की अवस्था’ में है। उसके शीर्ष नेता और गठबंधन की सातों
ताकतें बिहार के विधानसभा उपचुनाव तो भाजपा के मुकाबले जीत नहीं पाईं और ‘भाजपा-मुक्त
भारत’ की गालबजाई शुरू हो गई है।
अभी तो यह देखना शेष है कि प्रधानमंत्री मोदी और भाजपा के समर्थन, सहयोग के बिना जद-यू
कितनी लोकसभा सीटें जीत सकता है? नीतीश कुमार लगातार विपक्षी एकता की अपील करते रहे हैं,
विपक्ष के बड़े नेताओं से भी मुलाकातें की हैं, लेकिन सबसे प्रमुख विपक्षी पार्टी कांग्रेस और
शैशवकालीन ‘आप’ अलग-अलग ध्रुवों पर मौजूद हैं। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खडग़े ने कहा है कि
सभी विपक्षी दल कांग्रेस की छतरी के तले आ जाएं और विपक्षी महागठबंधन की शुरुआत की जाए,
लेकिन ‘आप’ के संयोजक केजरीवाल बार-बार यह व्यंजना देते रहे हैं कि कौन कांग्रेस…? वह खुद
विपक्षी एकता के चेहरे बनना चाहते हैं। अभी तक तो विपक्ष के किसी भी मंच पर यह शुरुआती
कोशिश दिखाई नहीं दी कि विपक्षी एकता के प्रति सभी गंभीर हैं। ‘आप’ सिर्फ मोदी-विरोध के नाम
पर विपक्षी गठबंधन के लिए तैयार नहीं है। सवाल यह भी किया जाता रहा है कि क्या क्षेत्रीय दलों
के हाथों में देश की बागडोर दी जा सकती है?