आधुनिकता और सांस्कृतिक धरोहर को अपने में समेटे पश्चिम बंगाल में जहां एक ओर प्राकृतिक
सौंदर्य का खजाना दार्जिलिंग है वहीं दूसरी ओर पूर्वोत्तर भारत का प्रवेशद्वार कोलकाता है, जो पर्यटकों
को अपनी ओर बरबस आकर्षित करते हैं।
पश्चिम बंगाल अपनी अलग संस्कृति एवं सभ्यता के कारण भारत के अन्य राज्यों से अलग
अहमियत रखता है। इस के उत्तर में विशाल हिमालय व दक्षिण में बंगाल की खाड़ी है। पश्चिम बंगाल
अनेक शासकीय परिवर्तनों का गवाह रहा है। ईस्ट इंडिया कंपनी की आड़ में अंगरेजों ने धीरेधीरे इसे
अपनी कर्मस्थली बना कर पूरे हिंदुस्तान पर कब्जा जमाना शुरू कर दिया था।
पश्चिम बंगाल जूट उद्योग के कारण व्यापारियों के आकर्षण का केंद्र रहा है। यहां जन्मे अनेक महान
साहित्यकारों द्वारा रचा साहित्य न सिर्फ साहित्य प्रेमियों को आकर्षित करता है बल्कि पर्यटकों के
लिए इस राज्य में घूमनेफिरने के लिए कई ऐसी जगह हैं जहां वे अनायास ही खिंचे चले आते हैं।
दार्जिलिंग
शिवालिक पर्वत शृंखला में समुद्रतल से लगभग 7 हजार फुट की ऊंचाई पर बसे दार्जिलिंग को पहाड़ों
की रानी कहा जाता है। दार्जिलिंग चाय और हिमालयन रेलवे के कारण दुनियाभर में प्रसिद्ध है।
दार्जिलिंग पर्वत क्षेत्र के इन तीनों महकमों (दार्जिलिंग, कर्सियांग और कालिंपोंग) में विभाजित है।
दार्जिलिंग जिले के नजदीक का महकमा खारसांग, आम लोगों के लिए कर्सियांग के नाम से जाना
जाता है। इस का अपना ऐतिहासिक महत्त्व है। यहां का सफेद और्किड विश्वविख्यात है, जो स्थानीय
भाषा में सुनखरी के नाम से जाना जाता है। यहां के गिद्ध पहाड़ के करीब सुभाषचंद्र बोस का पैतृक
मकान है जहां उन्होंने लंबे समय तक एकांतवास किया था।
दार्जिलिंग का तीसरा महकमा कलिंपोंग है, जिस का भूटानी भाषा में अर्थ है मंत्रियों का गढ़।
दार्जिलिंग और कर्सियांग को तिस्ता नदी कलिंपोंग से अलग करती है। नदी के किनारे हरेभरे जंगल
हैं। जंगलों के बीच पहाड़ी, झरने यहां की प्राकृतिक शोभा में चार चांद लगाते हैं। दार्जिलिंग विशेष रूप
से टौय ट्रेन के लिए जाना जाता है। शुरुआती तौर पर यह टौय ट्रेन हिमालयन रेलवे का हिस्सा थी,
जिस की स्थापना 1921 में हुई थी। यह रेलमार्ग 70 किलोमीटर लंबा है। यह बतासिया लूप तक जा
कर खत्म होता है। इस ट्रेन से मोनैस्ट्री तक के सफर के दौरान पर्यटक दार्जिलिंग के प्राकृतिक सौंदर्य
के नजारों का लुत्फ उठा सकते हैं।
दार्जिलिंग का दूसरा मुख्य आकर्षण टाइगर हिल है। इसे रोमांटिक माउंटेन के रूप में भी जाना जाता
है। इस टाइगर हिल से एवरेस्ट समेत विश्व की तीसरी सब से ऊंची चोटी कंचनजंघा का दृश्य देखना
पर्यटकों के लिए रोमांचकारी होता है। दार्जिलिंग अपने बौद्ध मोनैस्ट्री या मठों के लिए भी जाना
जाता है। दार्जिलिंग का विख्यात मठ घूम मोनैस्ट्री है। इस के अलावा यहां के दर्शनीय स्थलों में एक
जापानी पीस पैगोडा भी है, जिस की स्थापना विश्व शांति के मकसद से महात्मा गांधी के मित्र फूजी
गुरु ने की थी। गौरतलब है कि यह भारत में कुल 6 शांति स्तूपों में से एक है। पीस पैगोडा से पूरे
दार्जिलिंग और कंचनजंघा की शृंखला का नजारा दिखाई देता है।
दार्जिलिंग गोरखा पर्वतीय परिषद और गोरखा टेरिटोरियल औटोनौमस बौडी द्वारा नवनिर्मित
गंगामाया पार्क, रौक गार्डन, राजभवन, वर्धमान महाराजा की कोठी आदि यहां के दर्शनीय स्थलों में
से है। इस के अलावा मिरिक झील, सिंजल झील, जोर पोखरी, सिंगला बाजार, संदाकफू, फालुट भी
पर्यटन के दृष्टिकोण से काफी लोकप्रिय हैं। माउंटेनियरिंग संस्थान के करीब पद्मजा नायडू जैविक
उद्यान है, जो न सिर्फ बच्चों के लिए बल्कि बड़ों के लिए भी आकर्षण का केंद्र है। इस उद्यान में
हिमालयन तेंदुआ और लाल पांडा को भी देखा जा सकता है। यह उद्यान तेंदुआ और पांडा के प्रजनन
केंद्र के लिए भी जाना जाता है।
इस के अलावा यहां साइबेरियन बाघ और तिब्बती भेड़िए भी हैं। भारत में इन वन्य जीवों को एकसाथ
एक ही जगह देखने का मौका पर्यटकों को कहीं और नहीं मिल सकता। लियोर्डस वनस्पति उद्यान भी
यहां है। इस उद्यान में और्किड की 50 किस्म की प्रजातियां देखने को मिल जाती हैं। इस के अलावा
यहां कई तरह के दुर्लभ पेड़पौधे और जड़ीबूटियां भी पाई जाती हैं। दार्जिलिंग चायबागानों के लिए
विश्वविख्यात है। यह एक रोचक तथ्य है कि चाय के पौधे का पहला बीज कुमाऊं से लाया गया था
और यही चाय आगे चल कर दार्जिलिंग चाय के नाम से दुनियाभर में जानी जाने लगी। चायबागान
में पत्तियों को तोड़ते हुए देख पर्यटकों के लिए अच्छा शगल है। पर्यटक यहां पत्तियों को प्रोसैस होते
हुए भी देख सकते हैं। हालांकि इस के लिए चायबागान के अधिकारियों से विशेष अनुमति लेनी होगी।
कैसे पहुंचें
दार्जिलिंग का नजदीकी एअरपोर्ट बागडोगरा है, जो सिलीगुड़ी में है। कोलकाता, गुवाहाटी, दिल्ली और
पटना से प्रतिदिन उड़ानें हैं। बहरहाल, बागडोगरा से दार्जिलिंग पहुंचने के लिए यहां से 90 किलोमीटर
की यात्रा किराए की कार या जीप से की जा सकती है। रेलवे से यात्रा करनी हो तो सब से करीबी
स्टेशन जलपाईगुड़ी है। कोलकाता से दार्जिलिंग मेल व कामरूप ऐक्सप्रैस ट्रेन जलपाईगुड़ी तक पहुंचती
हैं। जलपाईगुड़ी से टौय ट्रेन द्वारा लगभग 8 घंटे की यात्रा कर दार्जिलिंग पहुंचा जा सकता है।
दिल्ली से गुवाहाटी तक राजधानी ऐक्सप्रैस से पहुंचा जा सकता है। यहां से हवाई या सड़क के रास्ते
दार्जिलिंग पहुंचा जा सकता है। सड़क मार्ग से कोलकाता से सरकारी और निजी बसें भी जाती हैं।
क्या खरीदें
जहां तक दार्जिलिंग में खरीदारी का सवाल है तो चाय पत्तियों के अलावा सेमी प्रेसियस स्टोन से ले
कर हस्तशिल्प के सामान और ऊनी कपड़े खरीदे जा सकते हैं। साथ ही यहां अच्छे किस्म की पेंटिंग्स
भी मिल जाती हैं। यहां की पेंटिंग्स को पर्यटक दार्जिलिंग सफर की यादगार के रूप में जरूर ले कर
जाते हैं।
कोलकाता
कोलकाता ऐसा शहर है जहां प्राचीन मान्यता और आधुनिक विचार, अंधविश्वास व प्रगतिशीलता
साथसाथ चलती है। कोलकाता शहर का एक बड़ा महत्त्व इसलिए भी है क्योंकि यह देश की
सांस्कृतिक राजधानी होने के साथ ही साथ यह पूर्वोत्तर भारत का प्रवेशद्वार भी है। अब यह शहर
काफी बदल चुका है। एक समय था जब कोलकाता पहुंचने के लिए पहले इस के उपनगर हावड़ा से हो
कर जाना पड़ता था। कारण, ज्यादातर लंबी दूरी की ट्रेनें हावड़ा ही आती थीं। लेकिन अब कोलकाता
का अपना टर्मिनस भी बन गया है। कोलकाता टर्मिनस। अब यहां पहुंचना वाया हावड़ा जरूरी नहीं है।
फिर भी हावड़ा ब्रिज का महत्त्व किसी भी तरह से कम नहीं हुआ है।
लगभग पौने दो सौ साल पुराना बिन खंभे का यह झूलता हुआ पुल आज भी आकर्षण का केंद्र है,
फिर वह चाहे पर्यटन के लिहाज से हो या कोलकाता को हावड़ा समेत अन्य उपनगरों से जोड़ने का
मामला हो। हावड़ा ब्रिज के अलावा पूर्वी भारत के इस सब से बड़े महानगर कोलकाता के दर्शनीय
स्थलों में विक्टोरिया मैमोरियल, अजायबघर और बिड़ला प्लेनेटोरियम समेत बहुत सारे स्थल हैं।
विक्टोरिया मैमोरियल
विक्टोरिया मैमोरियल भारत में ब्रिटिश राज का एक स्मारक स्थल है। 228×338 वर्ग मीटर क्षेत्र में
फैले इस स्मारक में ब्रिटेन की महारानी विक्टोरिया के साथ अन्य ब्रिटिश प्रशासकों का अभिलेखागार
भी है। महारानी विक्टोरिया की मृत्यु के बाद 1901 में इसे तत्कालीन वायसराय ने बनवाया था।
1921 में पहली बार इसे आम लोगों के दर्शन के लिए खोल दिया गया। संग्रहालय के ऊंचेऊंचे खंभे,
रंगीन कांच और राजकीय सजावट बरतानिया राज और महारानी विक्टोरिया की उपस्थिति की कहानी
सुनाते हैं।
बोटैनिकल गार्डन
यह भी गंगा के किनारे कोलकाता के उस पार स्थित है। यह भारत का सब से बड़ा बोटैनिकल पार्क
है। 213 एकड़ में फैले इस पार्क में 1,400 प्रजातियों के लगभग 12 हजार दुर्लभ किस्म के पेड़ पाए
जाते हैं, इसी कारण यह विश्वविख्यात है। 25 हिस्सों में बंटे इस उद्यान के अलगअलग भाग में
विभिन्न किस्म के पेड़पौधे हैं।
अलीपुर चिड़ियाघर
यह एक ऐतिहासिक चिड़ियाघर है। जिस के मछलीघर में विभिन्न प्रजातियों की रंगबिरंगी मछलियां
हैं। चिड़ियाघर में एक तरफ रेपटाइल्स हाउस है जहां किस्मकिस्म के सांपों के अलावा मगरमच्छ और
घड़ियाल भी हैं। यहां बंगाल के मशहूर रौयल बंगाल टाइगर के अलावा सफेद बाघ, जलहस्ती, गैंडा,
अफ्रीकी जिराफ, जेब्रा, नीलगाय, बारहसिंगा आदि भी हैं।
इंडियन म्यूजियम
यह एशिया के वृहत्तम संग्रहालयों में से एक है। यहां हजारों वर्ष पुराने, शिवालिक काल के जीवाश्म
रखे गए हैं। शिवालिक की पहाड़ियों पर पाए जाने वाले 20 फुट दांतों वाले विशाल हाथी से ले कर
न्यूजीलैंड के एक प्राचीन पक्षी और 1891 में अमेरिका के अरिजोना में हुए उल्कापात के अवशेष और
बहुत सारे अजीब और अनोखे संग्रह यहां देखने को मिलते हैं।
राष्ट्रीय पुस्तकालय
अलीपुर में चिड़ियाघर के सामने ही राष्ट्रीय पुस्तकालय है। यह देश का सब से बड़ा पुस्तकालय है।
मिलेनियम पार्क
गंगा किनारे बसा मिलेनियम पार्क महानगर के सौंदर्यीकरण का हिस्सा है। यहां से हावड़ा ब्रिज और
हुगली सेतु का नजारा बहुत ही लुभावना नजर आता है। गंगा के किनारे से लगे पूरे इलाके को पार्क
में तबदील कर दिया गया है। यहां तैरता हुआ चारसितारा होटल भी है। गंगा नदी में तैरते हुए होने
के कारण यह फ्लोटेल कहलाता है।
शहीद मीनार
यह मीनार तुर्की, मिस्र और सीरियाई स्थापत्य कला का मिलाजुला स्वरूप है। भारतीय स्वतंत्रता
सेनानियों के नाम पर इस का नाम शहीद मीनार रखा गया। 48 मीटर ऊंची इस मीनार से पूरे
कोलकाता का नजारा देखा जा सकता है। लेकिन यहां से हुई आत्महत्याओं की घटना के बाद इस में
प्रवेश के लिए कोलकाता पुलिस मुख्यालय से विशेष अनुमति लेनी पड़ती है। इन प्रमुख पर्यटक स्थलों
के अलावा कालीघाट, दक्षिणेश्वर, बेलूर मठ और फोर्ट विलियम भी दर्शनीय स्थल हैं। इन पर्यटन
स्थलों को देखने का सब से अच्छा समय सितंबर से मार्च तक होता है।
कैसे पहुंचें
कोलकाता अपने दमदम एअरपोर्ट से राष्ट्रीय स्तर पर भारत के लगभग सभी हिस्सों से और
अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर दक्षिणपूर्व एशियाई देशों से जुड़ा हुआ है। हावड़ा, सियालदह और कोलकाता रेलवे
टर्मिनस में देश के विभिन्न हिस्सों से ट्रेनें आती हैं। कोलकाता के विभिन्न स्थलों को बस, मिनी
बस, ट्राम, लांच, मैट्रो ट्रेन, लोकल ट्रेन, लक्जरी एसी बस द्वारा देखा जा सकता है।
दीघा
यह कोलकाता से 187 किलोमीटर दूर स्थित है। भारतीय समुद्रतटों में दीघा ऐसा पर्यटन स्थल है
जहां बीच पर अठखेलियां करती लहरों का लुत्फ उठाने देशविदेश से पर्यटक बड़ी तादाद में आते हैं।
दीघा में पर्यटन का सब से अनुकूल समय नवंबर से मार्च तक है। वैसे पर्यटकों का पूरे साल यहां
आना लगा रहता है। इस का पुराना नाम बारीकूल है। पर अब यह दीघा के ही नाम से जाना जाता
है। यहां सूर्योदय और सूर्यास्त के नजारे मनमोहक होते हैं।
दीघा का साफसुथरा समुद्र तट ऐसा है कि इस तट पर दूरदूर तक पैदल चला जा सकता है। गौरतलब
है कि दीघा का समुद्र तट ओडिशा के समुद्रतट से जा कर मिलता है। इसीलिए कहा जाता है कि
अगर कोई दीघा के समुद्रतट के किनारेकिनारे चलता जाए तो वह ओडिशा पहुंच जाएगा। अगर
ओडिशा की ओर न जाना हो तो दीघा के करीब और भी बहुत सारे पर्यटन स्थल हैं। इन्हीं में से एक
है न्यू दीघा। हाल के दिनों में न्यू दीघा को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किया गया है। यहां
समुद्रतट के अलावा झील और पार्क भी हैं।
दीघा से 14 किलोमीटर की दूरी पर है शंकरपुर। इस की ख्याति फिशिंग प्रोजैक्ट के रूप में अधिक
है। हाल के दिनों में इसे बीच रिजोर्ट के रूप में विकसित किया गया है। इस के अलावा लोगों के लिए
पिकनिक स्थल है चंदनेश्वर। दीघा में नहाने, तैरने की सुविधा है। लेकिन यहां पर तट के कुछ ऐसे
भी स्थल हैं जहां तैरने की सख्त मनाही है, विशेष रूप से ज्वार के दौरान जब समुद्रतट का पानी
उफान पर होता है। दीघा में समुद्रतट के अलावा तटीय वृक्षों का एक जंगल भी है जो स्थानीय रूप से
झाऊवन के नाम से जाना जाता है। समुद्र की लहरों में तैरनेखेलने के बाद अकसर लोग झाऊवन में
आराम करते हैं।
दीघा पहुंचने का रास्ता
कोलकाता से दीघा रेल और सड़क दोनों रास्तों से पहुंचा जा सकता है। कोलकाता से दीघा की दूरी
मात्र 4 घंटे में तय हो जाती है। कोलकाता के एस्प्लानेड, उल्टाडांगा से दीघा के लिए सीधी बसें जाती
हैं। हावड़ा से दीघा के लिए ट्रेनसेवा भी है। ट्रेन से दीघा पहुंचने में महज 2 घंटे का समय लगता है।