नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने निर्वाचन आयुक्त के तौर पर अरुण गोयल
की नियुक्ति में ‘‘जल्दबाजी’’ पर बृहस्पतिवार को सवाल उठाए।
वहीं, केंद्र ने न्यायालय की टिप्पणियों का विरोध किया और अटॉर्नी जनरल ने कहा कि गोयल की
नियुक्ति से जुड़े पूरे मामले पर विस्तारपूर्वक गौर किया जाना चाहिए।
मामले की सुनवाई शुरू होने पर न्यायमूर्ति के एम जोसेफ की अगुवाई वाली पांच सदस्यीय संविधान
पीठ ने निर्वाचन आयुक्त के तौर पर गोयल की नियुक्ति से जुड़ी मूल फाइल पर गौर किया और
कहा, ‘‘यह किस तरह का मूल्यांकन है? हम अरुण गोयल की योग्यता पर नहीं बल्कि प्रक्रिया पर
सवाल उठा रहे हैं।’’
पीठ ने सवाल किया कि गोयल की चुनाव आयुक्त के तौर पर नियुक्ति में ‘‘बहुत तेजी’’ दिखायी गयी
और उनकी फाइल 24 घंटे भी विभागों के पास नहीं रही।
केंद्र ने अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमानी के जरिए इसका प्रतिवाद करते हुए पीठ से नियुक्ति प्रक्रिया
से जुड़े पूरे मुद्दे पर विचार किए बगैर टिप्पणी न करने का पुरजोर अनुरोध किया।
सुनवाई के दौरान जब अटॉर्नी जनरल दलीलें दे रहे थे तो वकील प्रशांत भूषण ने पीठ के समक्ष
दलीलें रखने की कोशिश की।
इस पर शीर्ष विधि अधिकारी ने भूषण से कहा,‘‘ कृपया थोड़ी देर के लिए चुप रहिए।’’
शीर्ष अदालत ने निर्वाचन आयुक्त और मुख्य निर्वाचन आयुक्त की नियुक्ति के लिए कॉलेजियम
जैसी व्यवस्था बनाने का अनुरोध करने वाली याचिकाओं पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया और
संबधित पक्षों से पांच दिन में लिखित जवाब देने को कहा।
पीठ में शामिल न्यायमूर्ति अजय रस्तोगी ने वेंकटरमानी से कहा, ‘‘आपको अदालत को सावधानीपूर्वक
सुनना होगा और सवालों का जवाब देना होगा। हम किसी उम्मीदवार पर नहीं बल्कि प्रक्रिया पर
सवाल कर रहे हैं।’’
इस पर अटॉर्नी जनरल ने कहा कि अदालत के सवालों का जवाब देना उनका दायित्व है।
पीठ ने कहा कि 1985 बैच के भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी गोयल ने एक ही दिन में सेवा
से स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ले ली, एक ही दिन में कानून मंत्रालय ने उनकी फाइल को मंजूरी दे दी,
चार नामों की सूची प्रधानमंत्री के समक्ष पेश की गयी तथा गोयल के नाम को 24 घंटे के भीतर
राष्ट्रपति से मंजूरी भी मिल गयी।
पीठ में न्यायमूर्ति अनिरुद्ध बोस, न्यायमूर्ति ऋषिकेश रॉय और न्यायमूर्ति सीटी रविकुमार भी
शामिल रहे। पीठ ने कहा कि कानून मंत्री ने सूची में शामिल चार नामों में से किसी को भी
‘‘सावधानीपूर्वक नहीं चुना’’ जिससे कि वे छह साल का कार्यकाल पूरा कर पाते।
वेंकटरमानी ने कहा कि चयन की एक प्रक्रिया तथा मापदंड है और ऐसा नहीं हो सकता कि सरकार
हर अधिकारी का पिछला रिकॉर्ड देखे और यह सुनिश्चित करें कि वह छह साल का कार्यकाल पूरा
करें।
निर्वाचन आयोग (चुनाव आयुक्त की सेवा और कारोबार का संव्यवहार शर्तों) अधिनियम, 1991 के
तहत चुनाव आयुक्त का छह साल या 65 वर्ष की आयु तक का कार्यकाल हो सकता है।
गोयल की नियुक्ति का हवाला देते हुए अटॉर्नी जनरल ने कहा कि उनका प्रोफाइल महत्वपूर्ण है न
कि स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति, जिसे मुद्दा बनाया जा रहा है।
पीठ ने कहा कि 1991 का कानून कहता है कि चुनाव आयुक्त का कार्यकाल छह साल का है और
सरकार को यह सुनिश्चित करना होता है कि इस पद पर आसीन व्यक्ति निर्धारित कार्यकाल पूरा
करें।
शीर्ष न्यायालय ने कहा कि वह उन वजहों का पता ‘‘नहीं लगा पा रहा है’’ कि कानून मंत्री ने कैसे
उन चार नामों का चयन किया जो निर्धारित छह साल का कार्यकाल पूरा नहीं करने वाले थे।
मामले में सुनवाई चल रही है और पीठ ने कहा कि गोयल की नियुक्ति से जुड़ी मूल फाइल लौटायी
जाए।
केंद्र ने उच्च न्यायालय के बुधवार को दिए निर्देश के अनुसार पीठ के समक्ष निर्वाचन आयुक्त के
तौर पर गोयल की नियुक्ति की मूल फाइल पेश की जिस पर न्यायालय ने गौर किया।
पीठ निर्वाचन आयुक्त और मुख्य निर्वाचन आयुक्त की नियुक्ति के लिए कॉलेजियम जैसी व्यवस्था
बनाने का अनुरोध करने वाली याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है।
निवार्चन आयुक्त के रूप में अरुण गोयल की नियुक्ति बुधवार को उच्चतम न्यायालय की पड़ताल के
दायरे में आ गई, जिसने इस सिलसिले में केंद्र से मूल रिकार्ड तलब करते हुए कहा था कि वह (शीर्ष
न्यायालय) जानना चाहता है कि कहीं कुछ अनुचित तो नहीं किया गया है।
पंजाब कैडर के आईएएस अधिकारी गोयल को 19 नवंबर को निर्वाचन आयुक्त नियुक्त किया गया।
वह 60 वर्ष के होने पर 31 दिसंबर को सेवानिवृत्त होने वाले थे। अपनी नई भूमिका संभालने के बाद,
गोयल मौजूदा सीईसी राजीव कुमार के फरवरी 2025 में सेवानिवृत्त होने के बाद अगले मुख्य
निर्वाचन आयुक्त होंगे।
मई में, पूर्ववर्ती सीईसी सुशील चंद्रा के सेवानिवृत्त होने के बाद निर्वाचन आयोग में एक पद रिक्त
हुआ था।