-मुकेश तिवारी-
सरदार वल्लभभाई पटेल का व्यक्तित्व अन्य भारतीय नेताओं से भिन्न है। उनमें निहित
दूरदर्शिता,भारतीयता के प्रति सच्ची लगन कठिनाईओं से जूझने की शत्ति तथा सहनशीलता,निडरता
अपने आप में एक उदाहरण है। यह पटेल की निरंतर चेष्टा का ही परिणाम है कि बिखरे हुए भारत
को एक जुटकर एक राष्ट्र के रूप में परिवर्तित कर दिया। वे एक अच्छे वक्ता भी थे। सरदार
वल्लभभाई पटेल का जन्म 31 अक्टूबर 1875 को गुजरात के नाडियाद गांव में उनकी ननिहाल में
हुआ था, उनके पिता का नाम झवेर भाई था वह स्वयं खेती करते थे पटेल की मां का नाम लाडबाई
था। झवेर भाई मूलतः वोरसद क्षेत्र के करमसद गांव के रहने वाले थे। इनके छः सन्ताने थी जिनमें
पांच पुत्र और एक पुत्री थी।
वल्लभभाई का वाल्यकाल माता पिता के साथ गांव में बीता तथा यही पर इनकी प्रारंभिक शिक्षा हुई
इसके पश्चात माध्यमिक स्तर की शिक्षा उन्होने नडियाद और बडौदा से पूर्ण की। वल्लभभाई के पिता
बडे साहसी,संयमी और देश भक्त पुरूष थे। वे 1857 की क्रांति के दौरान घर वालो को बिना बताए
तीन साल तक घर से नदारद रहे। उन्होने उत्तरी भारत का भ्रमण किया। झांसी की रानी लक्ष्मीबाई
सहित नाना साहिब घोडोपंत की सेना में विधिवत भर्ती होकर ब्रिटिश सेना से अनेक मर्तवा युद्व
किया। वाल्यकाल से ही संयम,साहस,वीरता और देश भक्ति के गुण उन्हें पिता ने प्रदान किए थे। वे
बालअवस्था से ही समय के अधिकतम उपयोग तथा अपने दायित्व के प्रति हर वक्त समर्पित रहते
थे। राजनीति में प्रवेश करने के पश्चात इन गुणो ने वल्लभ भाई को हिन्दुस्तान के विखरे हुए स्वरूप
को एक सूत्र में पिरोने के लिए प्रेरित किया। वल्लभभाई अपने जीवन में नैतिक गुणों पर ज्यादा बल
देते थे कोई भी प्रलोभन उन्हें सहीं मार्ग से विचलित नहीं कर सका। उनकी दृढ निर्णय की प्रवृति ने
ही उन्हें लौह पुरूष कहलाने का सम्मान प्रदान किया तथा योग्य नेतृत्व के गुणों ने सरदार की पदवी
से विभूषित करवाया। वल्लभभाई की यह विशेषता थी कि वह प्रत्येक कार्य समय पर करते थे।
वल्लभभाई नैतिकता के पक्षधर थे। पटेल जिस वक्त नाडियाद में तालीम ले रहे थे उसी दौरान
उन्होने बिना किसी खौफ के विघालय की अव्यवस्थाओं को लेकर आंदोलन किया यहां स्कूल का एक
शिक्षक पुस्तकों को बेचने का कारोबार करता था अतः शिक्षक उससे ही पुस्तक खरीदने के लिए छात्रो
पर दबाव डालते थे। वल्लभभाई को यह बात नागवार लगी,उन्होने इसे नैतिकता का हनन मानकर
विरोध स्वरूप आंदोलन प्रारंभ कर दिया। अंततः शिक्षकों को झुकना पडा।
वल्लभभाई का अडिग व्यक्तित्व अनुचित बातों को कभी भी स्वीकार नहीं कर सका। अल्प समय के
बाद ही एक अन्य शिक्षक से उनका विवाद हो गया,अतः उन्हें स्कूल से निकाल दिया गया। पटेल
फिर से नाडियाद आ गए। सच पर कायम रहने और अन्याय का हर हाल में विरोध करने की उनकी
बालअवस्था की प्रवृति ही भविष्य में बिखरे हिन्दुस्तान को एकजुट करने का पूर्वाभ्यास सिद्व हुई।
वल्लभभाई के व्यक्तित्व में दब्बूपन व दूसरों पर आश्रित रहने के भाव का समावेश कभी नहीं था। वे
हमेशा स्वतंत्र भाव का समावेश कभी नहीं था। अपनी कवलियत,कार्यकुशलता,व्यवहार व वाकूचातुर्य
पर उन्हें पूरा भरोसा था,इन्ही गुणों कि वजह से गोधरा में वकालत करते समय उन्होंने काफी ख्याति
अर्जित की। पटेल हत्या जैसे संगीन मामलों में भी अपने तर्को से हमेशा प्रभावी बने रहते और हरेक
मामले को जीतते थे।
वल्लभभाई जुलाई 1917 में गुजरात क्लब के सचिव चुने गए इन दिनों गांधी जी बिहार के चंपारन
जिले में नील की खेती के अग्रेज ठेकेदारों द्वारा शोषित कृषको के लिए गांव-गांव घूमकर उनके
अधिकारों के लिए लड रहे थे। जिसका देशव्यापी प्रभाव पड रहा था वल्लभभाई के जहन में गांधी जी
के प्रति आदर भाव बढा,जो उनके भावी राजनीतिक जीवन का सूत्रधार सिद्व हुआ। पटेलजी गुजरात
सभा के सदस्य थे। इस सभा ने सन् 1917 में गोधरा में गांधीजी की अध्यक्षता में एक सम्मेलन का
आयोजन किया जिसमें अनेक ख्यति प्राप्त नेता शामिल हुए जिसमें सभी नेताओं ने हिन्दी व
गुजराती में भाषण दिया। यहां तक कि जिन्ना ने भी गुजराती में भाषण दिया किसी भी नेता ने
अग्रेजी में भाषण नहीं दिया। ब्रिटिश ताज के प्रति वफदारी का प्रस्ताव पारित किया जाना समाप्त
करवाया गया तथा इसे अनावश्यक करार दिया गया। अंग्रेजों और अंग्रेजी शासन का ऐसा विरोध
पहली बार हुआ था। इस दौरान एक कार्य समिति का गठन किया गया जो परिषद का अधिवेशन होने
तक कार्य करती रही।
इस समिति के गांधीजी स्वयं अध्यक्ष रहे तथा वल्लभभाई को मंत्री नियुक्त किया गया। इस दौरान
देश में होमरूल की स्थापना हो चुकी थी और सारे देश में बेगार विरोधी आंदोलन जोर पकड रहा था।
परिषद का मंत्री होने के कारण उक्त कार्यक्रम को साकार करने का दायित्व वल्लभभाई पर था।
वल्लभभाई ने अत्यंत उत्साह से कार्य प्रांरभ किया उन्होने कमिश्नर के साथ पत्र व्यवहार किया।
शुरूआत में कमिश्नर ने ना-नुकुर की लेकिन पटेल ने सात दिन का नोटिस देकर स्पष्ट कर दिया कि
यदि समय से उत्तर नही दिया तो वे हाईकोट के फैसले के आधार पर बेगार प्रथा को गैर कानूनी
ठहराकर लोगो को बेगार देना बंद करने की सूचना दे देगें इस पर कमिश्नर ने नोटिस की समयसीमा
समाप्त होने से पूर्व ही वल्लभभाई को बुलाकर उनकी इच्छा के अनुसार निर्णय दे दिया। उधर गांधी
जी को वल्लभभाई की इस सफलता के बारे में जानकारी मिली वे काफी प्रसन्न हुए। इसके पश्चात
इनका संपर्क गाधीजी के साथ बढा वे राजनैतिक क्षेत्र में उनके विश्वासपात्र बन गए। घर की माली
हालत ठीक न होने की वजह से उन्होने वकालत करनी प्रांरभ कर दी। वकालत के पेशे से तीन वर्ष
के अल्पसमय में वल्लभभाई ने इतना धन अर्जित कर लिया थाकवह आसानी से विदेश जाकर
वकालत का और अधिक अध्ययनकर सकते थे। अतः उन्होंने 1905 में टामस कुक एंड कंपनी के
साथ पत्र-व्यवहार किया तथा विदेश यात्रा के लिए जहाज का प्रबंध किया। इसी बीज टामस कुक एंड
कंपनी का पत्र पटेल के बडे भाई विट्ठल को मिल गया। पत्र पढते ही उनके जहन में विदेश जाकर
वैरिस्टरी पास करने की इच्छा जागृत हो गयी। उन्होने वल्लभभाई से इच्छा व्यक्त कि मै वैरिस्टरी
पास करने के लिए विदेश जाना चाहता हूं मेरे लौटकर आने के पश्चात तुम विदेश चले जाना। यधपि
यह बात वल्लभभाई को अच्छी नहीं लगी लेकिन मान-मर्यादा के प्रति समर्पित भाव रखने वाले
वल्लभभाई ने छोटा भाई होने के कारण बडे भाई की आज्ञा का पालन किया और उन्हें विदेश जाने
दिया। वल्लभभाई में परिेस्थतियों को अनुकूल बना लेने की विशेष क्षमता थी। बडे भाई के विदेश से
लौटने के पश्चात अगस्त 1910 में वल्लभभाई भी बैरिस्टरी की पढाई करने के लिए विदेश गएं। वहां
पहुचकर बैरिस्टरी की पढाई के लिए वे मिडिल टेम्पल में भरती हुए। यहां उन्होने रोमन लाॅ की
परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की। इतना ही काफी नही। बैरिस्टरी की परीक्षा में भी उन्होने प्रथम
स्थान प्राप्त किया उस साल का पुरस्कार वल्लभभाई तथा डेविस के बीच बांटा गया।
पटेल पुस्तकालय में पूरी तन्मयता से तब तक अध्ययन करते रहते जब तक पुस्तकालय बंद नहीं हो
जाता था। वल्लभभाई ने अपनी अंतिम परीक्षा जून 1912 में उत्तीर्ण की जिसमें उन्हें प्रथम स्थान
प्राप्त हुआ। उन्हें 50 पौण्ड का नकद पुरस्कार मिला वल्लभभाई अपने वाक् चातुर्य से कर्म क्षेत्र में
सदैव ही अपना प्रभाव छोडने में सफल रहे। लौह पुरूष के नाम से विश्व में ख्याति अर्जित करने वाले
सरदार वल्लभभाई पटेल सदैव से ही धैर्यवान व आत्मसंयमी रहे है, बडी से बडी कठिनाई को भी
हंसते हुए सहन कर लेना उनके व्यकितत्व का अंग बन गया था। उन्होने प्रत्येक विपरीत परिस्थिति
में अपना धैर्य बनाए रखा तथा मजबूती से कर्तव्य पथ पर अडिग रहें। वल्लभभाई की पत्नी झबेर
बीमार चल रही थी जिस स्थान पर वे वकालत करते थे वहां स्वास्थ्य लाभ की उचित व्यवस्था न
होने पर उन्होने झबेर को मुबई भेज दिया। झबेर बा को अंतडियों का रोग था, अतः डाक्टरों ने जांच
के बाद बताया कि आपरेशन करना पडेगा। आपरेशन के लिए झवेर बा को अस्पताल में भरती करवा
दिया गया पटेल भी मुबई आ गए लेकिन डाॅक्टर ने बताया कि 15-20 दिन तक दवाई आदि से ठीक
होने पर ही आगे का उपचार किया जा सकेगा परिजनों से आॅपरेशन के वक्त बुला लेने के लिए
कहकर वह एक महत्वपूर्ण मुकदमें की पैरवी के लिए आनंद चले गए।
इसी दौरान डाॅक्टरों ने झबेर बा की दवाइयां जारी रखी और उनकी स्थिति में सुधार होते ही उनका
आपरेशन कर दिया। आॅपरेशन सफल होने के पश्चात तार से सूचना भेज दी। यह अजीब दुर्योग ही
था कि सूचना भेजने के दूसरे दिन ही झबेर बा की हालत अचानक बिगड गई और वे,चल बसी। झवेर
बा के निधन का दुखद समाचार तत्काल ही तार द्वारा वल्लभभाई को भेज दिया गया जिस वक्त
उन्हें यह दुखद समाचार मिला उस वक्त वे हत्या के मुकदमें की पैरवी कर रहे थे, जोकि अत्यंत
संगीन मामला था। वे धर्मसंकट में फस गए कि क्या करे ?एक और हत्या का संगीन मुकदमा
जिसमें महत्वपूर्ण गवाह से जिरह की जा रही थी जिसमें कोताही बरतने पर उसे फांसी की सजा भी
हो सकती थी। दूसरी ओर जीवन -संगिनी के अंतिम दर्शन का प्रश्न था। ऐसी विषम परिस्थिति में
लौह पुरूष ने अपने धैर्य का परिचय देते हुए बहस जारी रखी। इस तरह की विषम परिस्थिति में भी
पूरे मनोयोग व सावधानी से अदालत का कार्य पूर्ण करने पश्चातही तार का दुखःद सन्देश दूसरे लोगो
को बताया। जीवन संगिनी के वियोग तथा अंतिम वक्त में भी भेंट न कर पाने के आघात को सीने
में सदैव के लिए दफन कर उन्होने पहले अपना कर्तव्य निभाया। जिस वक्त जीवन -संगिनी का
निधन हुआ उस समय वल्लभभाई की उम्र सिर्फ 33 वर्ष थी। रिश्तेदार,मित्र पुनर्विवाह के लिए दबाव
देने लगे, लेकिन वल्लभभाई इसके विपरीत अपनी बात पर अडिग रहे वे लेशमात्र भी नहीं डगमगाए।
वल्लभभाई के लिए कठिनाई का दौर यहीं तक सीमित नहीं रहा जीवन -संगिनी के न रहने से
वल्लभभाई पर अनेक तरह की पारिवारिक जिम्मेदारियां अचानक ही आ गई इन जिम्मेदारियों को
पूर्ण मनोयोग से सभांलते हुए वे अपने कार्य में जुटे रहे। तभी एक और अनहोनी घट गई वल्लभभाई
के बडें भा्रता विट्ठल कि जीवन -संगिनी का भी निधन हो गया। इस तरह एक वर्ष के भीतर ही यह
दूसरा आघात था जिसे वल्लभभाई ने चुपचाप सह लिया और अपने मिशन को प्रभावित नहीं होने
दिया।
वल्लभभाई पटेल मानसिक पीडाओं को जितनी सहजता से सहन कर लेते उसी तरह ही बडी से बडी
शारीरिक पीडा सहन करने में भी कभी पीछे नहीं हटे। सन्1911में जब वे विदेश में रहकर बैरिस्टरी
की पढाई कर रहे थे तभी उनके पैर में नाहरूआ निकल आया इसे पैर से निकलने के लिए नर्सिग
होम में दो बार आॅपरेशन हुए लेकिन नाहरूआ पूर्णतौर पर नहीं निकल पाया अतः डाॅक्टर की सलाह
पर पुनः आॅपरेशन करवाया वह भी बिना क्लोरोफार्म के यह देखकर डाॅक्टर को बहुत आश्चर्य हुआ
उसने कहा ऐसा साहसी रोगी पहले कभी नहीं देखा इस आॅपरेशन के बाद नाहरूआ निकल गया और
वल्लभ भाई स्वस्थ हो गए।
वल्लभभाई का संवेदनशील,तार्किक मस्तिष्क देश प्रेम के मान-मर्यादा को बनाए रखने के लिए सदैव
तत्पर रहता था अगस्त 1922 में सविनय अवज्ञा समिति जबलपुर गई तब वहां की नगरपालिका ने
एक प्रस्ताव पारित किया हकीम अजमल खां को मानपत्र भेंट किया गया और नगरपालिका कि
इमारत पर राष्ट्रीय घ्वज फहराया गया। इसे ब्रिटिश शासन ने अपना अपमान माना। इसके बाद यहां
गाधीजी के कारावास की वर्षगांठ पर राष्ट्रीय ध्वज के साथ एक बडा जुलूस निकला गया। पुलिस ने
जुलूस में शामिल 10-12 लोगों को हिरासत में ले लिया और घ्वज को जब्त कर लिया। यधपि दूसरे
दिन सभी को छोड दिया गया,लेकिन ध्वज नही लौटाया गया इस घटना की जानकारी मिलते ही
नागपुर में एक बडा जुलूस निकाला गया। पुलिस ने जुलूस को रोकने का जतन किया लेकिन जब
लोग नहीं रूके तो उन पर लाठियां चलाई गई इसके बाद म प्र की तात्कालिक राजधानी नागपुर में
पुनः जुलूस निकाला गया। नागपुर पुलिस ने जुलूस को रोकने का प्रयास किया जब लोग नही रूके तो
पुलिस उन पर टूट पडी।
इसके पश्चात नागपुर की प्रांतीय समिति की कार्यकारिणी की बैठक में इस पर चर्चा हुई जिसमें सघर्ष
करने का निश्चय किया गया जमनालाल बजाज के नेतृत्व में यह कार्य सौप दिया गया। उधर जिला
कलेक्टर ने आदेश जारी कर राष्ट्रीय ध्वज के साथ निकलने वाले प्रत्येक जुलूस पर रोक लगा दी।
इस तरह उक्त घटना नागपुर तक ही सीमित न रहकर समूचे राष्ट्र की प्रतिष्ठा का सवाल बन गई।
ऐसी स्थिति में वल्लभभाई कैसे मौन रहते,उन्होने तत्काल ही गुजरात से नागपुर जानेके लिए खेडा
जिले में 75 लोगो की एक टोली खाना कर दी इसके साथ ही अन्य स्थानों से भी टोलियां रवाना
करना प्रांरभ कर दिया। सरकार ने झंडा सत्याग्रह को असफल करने के अनेक प्रयास किए इसी क्रम
में जमनालाल जी को गिरफतार कर लिया गया। ऐसी स्थिति में वल्लभभाई को झंडा सत्यागृह का
नेतृत्व प्रदानकर कार्यक्रम को गतिशील किया गया। पटेल की मेहनत रंग लाई तथा सरकार की सारी
कोशिशों के बावजूद मातृभूमि की लाज को दांव पर लगने से बचाने के लिए तमाम सारी टोलियां
महात्मा गांधी की जय-जयकार के साथ राष्ट्र-ध्वज लेकर निरंतर आगे बढने लगी। इस तरह पटेल ने
झंडा सत्याग्रह को सफल किया।
वल्लभभाई के भाषणों का प्रभाव सिर्फबारडोली की जनता पर ही नहीं पडा बल्कि वहां काम कर रहा
सरकारीतंत्र भी प्रभावित हुआ अनेक अधिकारी व शासकीय पद धारकों ने अपने पद से त्यागपत्र दे
दिया यह तक कि वगावत कि स्थिति वन गई। इसी श्रृंखला में 12 जून को समूचे हिन्दुस्तान में
बारडोली दिवस मनाया गया अहिेसक आन्दोलन से जूझ रही जनता की मदद के लिए एक दिन का
उपवास रखकार चंदा एकत्रित करके बारडोली भेजा गया।
बारडोली सत्याग्रह के समय मुबई की एक सभा में इस सफलता से प्रभावित होकर एक नेता ने
वल्लभ भाई को सरदार के नाम से सबोधित किया,जोकि गांधीजी को बहुत पंसद आया तभी से सभी
लोग सरदार पल्लभ भाई कहने लगे। ये सब सम्मान वल्लभभाई की दृढ संयम प्रवृति के कारण ही
था जिससे उन्हें लौहा पुरूष कहा जाने लगा वल्लभभाई के हद्वय में शोषित सामान्य जन के भावों
को समझने जानने व उनकी सेवा में समर्पित होने की अद्भुत क्षमता थी सन्1895 में गोधरा में
प्लेग फेल गया। इस महामारी कि चपेट में अदालत के नाजिर का बेटा आ गया वल्लभ भाई के
अपने परम मित्र नाजिर के बेटे की सेवा सुश्रषा की लेकिन दुयोग से उसका बेटा चल बसा। बेटे के
शव को श्मशान में पहुंचाकर घर लौटने पर स्वयं वल्लभभाई भी प्लेग के शिकार हो गए। वे इसी
अवस्था में नाडियाद चले गए,जहां कुछ समय रहने के बाद वे ठीक हो गए।
भारत की स्वतंत्रता प्राप्ति के वक्त अंग्रेज हुकूमत ने छिन्न -भिन्न व विखंडित भारत का मानचित्र
हमारे हाथों में सौप दिया था, देश् में कश्मीर को छोडकर 562 स्वतंत्र रियासते मौजूद थी जिनमें से
प्रायःप्रत्येक ने अपना पृथक अधिकार जताने का पूरा प्रयास किया। लौहा पुरूष सरदार वल्लभभाई ने
देशी राजाओं को एक सूत्र में जोडने के लिए तीन बातों को आधार बनाया। सबसे पहले कुछ रियासतों
को समीप के प्रांत में मिला दिया। दूसरे कुछ को भारत सरकार के सीधे नियंत्रण में रख दिया तथा
तीसरे कुछ को परस्पर मिला कर एक संघ का रूप दे दिया। इस प्रकार एक वृहत् भारत का निर्माण
किया। इस वजह से उन्हें आधुनिक भारत का चाणक्य माना जाता हैं।