चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग को तीसरा कार्यकाल मिलना लगभग तय है, लेकिन उनकी
महत्त्वाकांक्षा ‘दूसरा माओत्से तुंग’ बनने की है। वह ताउम्र राष्ट्रपति और चीन कम्युनिस्ट पार्टी
(सीसीपी) के चेयरमैन बने रहना चाहते हैं। अभी तक सिर्फ माओ को ही यह दर्जा और सम्मान
हासिल रहा है। शी भी चीन में नया इतिहास रचना चाहते हैं। यह सब कुछ सीसीपी कांग्रेस के
अधिवेशन में ही तय होगा, जो अभी एक सप्ताह तक और चलेगा। चीन में अभी तक प्रधानमंत्री
समेत जो चेहरे सत्ता में थे, उन्होंने इस्तीफे दे दिए हैं। शी के तीसरी बार राष्ट्रपति बनने के बाद वह
अपनी कैबिनेट के चेहरे चुनने को स्वतंत्र होंगे, हालांकि उन पर सीसीपी की अंतिम मुहर अनिवार्य
होगी। दरअसल सीसीपी के संस्थापक नेता माओ ही थे। वह ही देश थे, वह ही जनता और सरकार
थे। उनके फैसले सही या गलत साबित हुए, लेकिन कोई सवाल नहीं कर सका। वह आजीवन
राष्ट्रपति और सीसीपी के चेयरमैन रहे। शी भी वैसी ही हैसियत और माओ के समान अधिकार चाहते
हैं।
वह ‘तानाशाह’ बने रहना चाहते हैं। हालांकि उनके आजीवन राष्ट्रपति बने रहने की व्यवस्था का
प्रतिरोध पार्टी में भी है और खासकर चीन की युवा आबादी भी विरोध कर रही है। नतीजतन लाखों
विद्रोहियों को जेल की सलाखों के पीछे डाल दिया गया है। कितनों की हत्या करा दी गई है, उसका
कोई ब्योरा सार्वजनिक नहीं किया गया है। चीन के भीतर का यथार्थ शेष दुनिया से छिपा ही रहता
है। सीसीपी कांग्रेस का अधिवेशन रविवार 16 अक्तूबर से शुरू हुआ, तो पहली ख़बर शी के लगातार
तीसरी बार राष्ट्रपति बनने के पुख्ता आसार की बाहर आई। यकीनन अमरीका, ऑस्टे्रलिया, जापान
से ताइवान और हांगकांग तक कई राजनेता और सरकारें चिंतित हुई होंगी। भारत का चीन के साथ
टकराव और सैन्य आमना-सामना लंबे अरसे से जारी है। भारत की परेशानी भी बढ़ी होगी। कुछ देशों
ने घबराहट और थर्राहट तक महसूस की होगी। शी के कार्यकालों के दौरान चीन ने कई स्तरों पर
अपनी ‘दादागीरी’ बढ़ाई है। चीन के साथ 14 देशों की सीमाएं लगती हैं। उनमें से 6 देशों पर चीन
का कब्जा है। यह कब्जा 41 लाख वर्ग किलोमीटर से भी ज्यादा क्षेत्र पर है। सवाल है कि चीन ने
अपने भू-क्षेत्र में 43 फीसदी से अधिक विस्तार कैसे किया? इस कब्जेबाज प्रवृत्ति के कारण ही चीन
को ‘विस्तारवादी’ करार दिया जाता है। शी जिनपिंग का तानाशाही चीन उस तिब्बत का तेजी से
‘चीनीकरण’ कर रहा है, जहां भारतीय संस्कृति और खासकर बौद्ध दर्शन का खूब प्रभाव रहा है।
करीब 12 लाख वर्ग किलोमीटर का तिब्बत 1950 के दशक से चीन के कब्जे में है।
वहां के धर्मगुरु दलाईलामा और निर्वासित सरकार भारत के हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला क्षेत्र में
सक्रिय हैं। सीसीपी कांग्रेस को संबोधित करते हुए राष्ट्रपति जिनपिंग ने स्पष्ट कह दिया है कि
ताइवान और हांगकांग चीन के पुराने हिस्से हैं। उन्हें चीन में मिलाने के लिए सेना भी भेजनी पड़ी
और हमला करना पड़ा, तो चीन वह भी करेगा। विदेशी ताकतों का हस्तक्षेप बिल्कुल भी बर्दाश्त नहीं
किया जाएगा। ताइवान ने फिर आज़ादी, लोकतंत्र और संप्रभुता की पलटबात कही है। हांगकांग में
करीब 75 लाख की आबादी है। ब्रिटेन ने चीन से वह हिस्सा एक युद्ध के दौरान जीता था। ब्रिटेन ने
अब उसे लौटाने का निर्णय किया, तो दोनों देशों में करार हुआ। बुनियादी शर्त यह है कि 2046 तक
हांगकांग राजनीतिक तौर पर आज़ाद रहेगा। वह राष्ट्रीय सुरक्षा का कानून भी बना सकेगा। चीन ने
उस करार को अब ‘कागजी’ बना दिया है। बहरहाल चीन में शी की ही सरकार रहती है, तो विश्व के
लिए चिंताजनक होगा। वैसे अमरीका, ऑस्टे्रलिया, जापान, भारत ने मिलकर ‘क्वाड’ संगठन बनाया
था, ताकि चीन की विस्तारवादी और निरंकुश हरकतों पर निगरानी रखी जा सके।
भारत विरोधी दुष्प्रचार के चलते कई देशों में बढ़ी है हिंदुओं के खिलाफ हिंसा
-राकेश सैन-
इस महीने भारत सहित पूरी दुनिया में इस तरह की घटनाएं देखने व सुनने को मिलीं जिससे लगा है
कि भारत विरोध, विशेषकर हिन्दूफोबिया अपने दूसरे चरण में प्रवेश कर रहा है। अन्तर केवल इतना
आया है कि विरोध की इस लड़ाई का रणक्षेत्र जो पहले भारत था आज वह विदेशी भूमि बनता दिख
रहा है। अमेरिकी संस्था नेटवर्क कंटेजियन रिसर्च इंस्टीट्यूट के शोध में खुलासा हुआ है कि हिन्दुओं
के खिलाफ नफरत और हिंसा के मामलों में रिकॉर्ड 1000 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। इंस्टीट्यूट के
सह-संस्थापक जोएल फिंकेलस्टाइन ने कहा कि हिन्दू विरोधी मीम्स, नफरत और हिंसक एजेण्डा गढ़ा
जा रहा है। इन हमलों और नफरत का माहौल बनाने में श्वेत वर्चस्ववादी और कट्टरपन्थी इस्लामिक
लोगों का हाथ है। अमेरिका, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया जैसे बड़े देशों में हिन्दुओं पर हिंसा बढ़ी है।
हिन्दूफोबिया को एक साजिश के तहत बढ़ाया जा रहा है।
अमेरिकी जांच एजेंसी एफबीआई के अनुसार अमेरिका में 2020 में भारतवंशी अमेरिकियों पर हमले
500 प्रतिशत बढ़े हैं। इनमें से ज्यादातर हिन्दू धर्मावलम्बी हैं। ब्रिटेन के लिस्टर और बर्मिंघम के
स्मैडेक में हाल में मन्दिरों पर हुए हमलों में पाकिस्तानी जिहादी गैंग के गुर्गों का हाथ सामने आया
है। ब्रिटिश खुफिया एजेंसियों के अनुसार पाकिस्तान का जिहादी आतंकी नेटवर्क ब्रिटेन और यूरोप में
जिहाद फैलाने में जुटा है। पाकिस्तान से आतंकियों को लाकर ब्रिटेन के मदरसों में रखा जाता है।
ब्रिटेन में 30 साल पहले पाक आतंकी मसूद अजहर ने जिहादी नेटवर्क बनाया। 2005 में लंदन में
बम धमाकों में अल कायदा नेटवर्क का हाथ था जिसमें 56 लोग मारे गए थे। ब्रिटेन की संसद में
पेश रिपोर्ट के अनुसार ब्रिटेन की लगभग 7 करोड़ की आबादी में 4 प्रतिशत मुस्लिम हैं लेकिन ब्रिटेन
की जेलों में कैदियों में वे 18 प्रतिशत हैं। इंग्लैंड और वेल्स की कुल आबादी में दो प्रतिशत हिन्दू हैं,
लेकिन कोई भी हिन्दू जघन्य अपराध के आरोप में जेल में नहीं है।
आज पूरी दुनिया में भारत व खास कर हिन्दू समाज के खिलाफ झूठा विमर्श स्थापित करने का
प्रयास हो रहा है। हिन्दुओं को अल्पसंख्यकों व दलितों पर उत्पीड़न करने वाले के रूप में दिखाने का
प्रयास हो रहा है। यह उस समय हो रहा है जब देश की राष्ट्रपति एक वनवासी महिला हैं। सरकार,
न्यायपालिका और प्रशासन में मुस्लिम, ईसाई, अन्य अल्पसंख्यक उच्च पदों पर हैं। पंजाब में सिख
मुख्यमन्त्री हैं। नगालैण्ड, मिजोरम, मेघालय जैसे ईसाई बहुसंख्या वाले राज्यों में ईसाई मुख्यमन्त्री
हैं। अल्पसंख्यक कल्याण मंत्रालय की कमान मुस्लिम मन्त्रियों के हाथों में रही है। केन्द्र-राज्य की
सरकारों के द्वारा प्रणालीगत रूप से मुस्लिम समुदाय के गरीब-पिछड़े तबके की मदद के प्रयास किए
गए हैं। मुस्लिम महिलाओं के हक में निर्णय लिए गए हैं। छिटपुट घटनाओं को छोड़ दें तो बीते आठ
सालों से भारत साम्प्रदायिक टकरावों से लगभग मुक्त रहा है। मॉब लिंचिंग की निन्दनीय घटनाएं भी
चन्द ही हुईं और वे किसी एक समुदाय तक सीमित नहीं थीं। कानून-व्यवस्था सभी दोषियों पर
समान रूप से कार्रवाई करती है। इसके बावजूद अमेरिका के एक प्रतिष्ठित अखबार में एक पेड-
विज्ञापन छपवाकर यह कहा गया है कि भारत में लाखों नागरिक धार्मिक भेदभाव और मॉब लिंचिंग
के शिकार हो रहे हैं। यह झूठा कथन है, जिसमें कोई तथ्य या आंकड़े प्रस्तुत नहीं किए गए। अगर
समाचार-पत्र ने एक साधारण-सा फैक्ट-चेक किया होता तो वह इस दुष्प्रचार को प्रकाशित करने से
कतरा जाता।
वैश्विक जनमत को निरन्तर इस तरह की भ्रामक सूचनाएं भारतीय हितों के विरोधी समूहों द्वारा
परोसी जा रही हैं। पाकिस्तान या खालिस्तान से प्रेरित समूहों की मंशा तो समझी जा सकती है,
लेकिन उनके झूठ को पश्चिम के लेफ्ट-लिबरल वर्ग द्वारा मान्यता दे दी जाती है।
ऑस्ट्रेलिया के राजनीतिक समाज शास्त्री साल्वातोरे बैबोन्स ने इस तरह के पश्चिमी थिंक टैंकों को
‘वास्तविक बर्बर’ की संज्ञा दी है। मुख्यधारा के भारतीयों द्वारा उनके आग्रहों को अस्वीकृत किए जाने
के बाद ये समूह अब अपने दुष्प्रचार के लिए पश्चिमी-जगत को इस्तेमाल कर रहे हैं। अल्पसंख्यक
खतरे में हैं- इस विमर्श के निर्माण के पीछे हमेशा से न्यस्त स्वार्थ रहा है। विभाजन से पहले
मोहम्मद अली जिन्ना यह करते थे, अब यह उदारवादियों की दुकानदारी बन चुका है।
इतिहास पर दृष्टिपात करें तो पाएंगे कि साम्प्रदायिक तनाव का सदियों पुराना इतिहास है। मजहब के
आधार पर हुए भारत के बंटवारे ने दो समुदायों के बीच अविश्वास की खाई को गहरा कर दिया था,
इसके बावजूद भारतीय समाज विविधता में एकता की भावना से संचालित होता रहा है। यही कारण है
कि भारत दूसरा पाकिस्तान नहीं बना है। इस देश को पहले विदेशी शासकों ने खण्डित करने का
प्रयास किया और आज आतंकी संगठन एवं विदेशी ताकतें भारत को अस्थिर करना चाहती हैं, वे इसी
परिकल्पना पर समाज के विभिन्न वर्गों को आपस में लड़ाने का प्रयास करते नजर आते हैं।
वास्तव में भारतीय सनातन संस्कृति एकात्म दर्शन पर आधारित सर्वसमावेशी है। इसमें ईश्वरीय भाव
जाहिर होता है। जो मेरे अन्दर है वही आपके अन्दर भी है। इस प्रकार प्रत्येक भारतीय, चाहे वह
किसी भी जाति का हो, किसी भी मत, पंथ को मानने वाला हो, अपने आप को भारत माता का
सपूत कहने में गर्व का अनुभव करता है। सनातन संस्कृति अन्य संस्कृतियों को भी अपने आप में
आत्मसात करने की क्षमता रखती है। जैसे पारसी आज अपने मूल देश में नहीं बच पाए हैं लेकिन
भारत में वे रच बस गए। इस्लाम को मानने वाले सभी फिरके भारत में निवास करते हैं जबकि विश्व
के कई इस्लामी देशों में भी केवल एक-दो विशेष प्रकार के फिरके मिलते हैं। विभिन्न मतों, पन्थों को
मानने वाले भारतीय 26 विभिन्न राष्ट्रीय भाषाओं के साथ सफलतापूर्वक एक दूसरे के साथ तालमेल
बिठाकर आनन्द में रह रहे हैं। भारतीय लोकतन्त्र विश्व में सबसे बड़े व मजबूत लोकतन्त्र के रूप में
स्थान बना चुका है। यह केवल सनातन हिन्दू संस्कृति के कारण ही सम्भव हो सका है। वर्तमान में
आतंकवादियों एवं अन्य कई देशों द्वारा भारत में अस्थिरता फैलाने के जो प्रयास किए जा रहे हैं
उनका सनातन संस्कृति के दर्शन से ही मुकाबला किया जा सकता है। हमें आशा ही नहीं बल्कि पूर्ण
विश्वास है कि जो हिन्दू द्वेषी व भारत विरोधी शक्तियां पहले भारत भूमि पर परास्त हुई हैं और
अब वे विदेशी धरती पर भी पराजित होंगी। जरूरत है सनातन हिन्दू संस्कृति व लोकतान्त्रिक मूल्यों
पर चल कर इनसे संघर्ष करने की है।