-सनत जैन-
युद्ध की विभीषिका से बचाने के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर शांति और सुरक्षा कायम करने के लिए
78 वर्ष पूर्व 24 अक्टूबर 1945 को संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना हुई थी। प्रारंभ में अमेरिका, इंग्लैंड
और सोवियत संघ सहित 50 देश इसके प्रमुख गठनकर्ता बने थे। द्वितीय विश्व युद्ध के विनाशकारी
परिणामों के बाद संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना हुई थी। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर राष्ट्रों के बीच सम्मान
और आत्म निर्णय के आधार, मैत्रीपूर्ण, संबंध, सहयोग, सामाजिक सांस्कृतिक एवं शैक्षिक समस्याओं
को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सुलझाने के लिए, संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना हुई। सुरक्षा परिषद का भी
गठन हुआ। संयुक्त राष्ट्र के सदस्य देशों की संख्या वर्तमान में 193 गई है।
सुरक्षा परिषद विश्व शांति और सुरक्षा के दायित्व को पूरा करने वाली आदेशात्मक संस्था है। इसके 5
स्थाई सदस्य हैं। जिनमें अमेरिका, ब्रिटेन, चीन, फ्रांस तथा रूस है। यही 5 सदस्य आज शांति को
अशांति में परिवर्तित कर रहे हैं। सारी दुनिया इनकी ओर टकटकी लगाकर देख रही है। सुरक्षा परिषद
का दायित्व है, कि दोषी राष्ट्रों के विरुद्ध कूटनीतिक, आर्थिक और वित्तीय दंड निर्धारित कर विश्व में
शांति व्यवस्था को हर हाल में बनाए रखें। गठन के समय सुरक्षा परिषद को जिन 5 देशों को, वीटो
के अधिकार दिए गए। उनके ऊपर सबसे ज्यादा जिम्मेदारी बनती है, लेकिन वर्तमान में यही 5 देश
सबसे ज्यादा गैर जिम्मेदार साबित हो रहे हैं। जिसके कारण एक बार फिर तीसरे विश्व युद्ध की
आशंका बनने लगी है। जिसके कारण सारी दुनिया के देश चिंतित हैं। वैश्विक व्यापार संधि के बाद
दुनिया के देशों में एक दूसरे के खिलाफ आर्थिक जंग बढ़ गई है। प्रथम एवं द्वितीय विश्व युद्ध के
समय विभिन्न देशों के बीच सीमा विस्तार युद्ध का प्रमुख कारण होता था। लेकिन अब इसमें
आर्थिक कारण सबसे बड़ा कारण बनकर सामने आ रहा है।
अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाईडन अचानक यूक्रेन की राजधानी की पहुंचे। 24 फरवरी से रूस और यूक्रेन
के बीच जंग चल रही है। जंग के दौरान बाईडन का अचानक यूक्रेन दौरा रूस-यूक्रेन युद्ध की आग में
घी डालने का काम जैसा है। यूक्रेन पहुंचकर जो बाईडन ने जता दिया है कि अमेरिका अंतिम क्षण
तक यूक्रेन को हथियारों की सप्लाई और आर्थिक मदद देता रहेगा। यूक्रेन और अमेरिका दोनों ही उस
समय भयभीत है। रूस एक बार फिर जंग में मजबूत स्थिति में आ गया है। रूस और चीन के बीच
में इस जंग को लेकर कहीं ना कहीं सहमति बनी हुई है। रूस और चीन दोनों मिलकर अमेरिका और
नाटो देशों के खिलाफ एकजुट हो गए हैं। जिसके कारण अब रूस, चीन और अमेरिका के बीच वर्चस्व
की लड़ाई शुरू हो गई है। इसमें चीन भी पूरी तरह से सक्रिय है। जो बाईडन के यूक्रेन पहुंचने के बाद
से विश्व शांति को लेकर एक बड़ी चिंता सारी दुनिया के देशों में देखने को मिल रही है। अमेरिकी
जनरल ने इसका इशारा भी कर दिया है। उसने कहा कि अब अंतरिक्ष भी सुरक्षित नहीं रहा रूस के
बाद चीन विश्व शांति के लिए सबसे बड़ा खतरा बनकर सामने आ रहा है। रूस और चीन की ओर से
खतरनाक हथियारों का प्रदर्शन और टेस्ट यूक्रेन के युद्ध मैदान हो रहा है। वहीं नाटो देश और
अमेरिका भी यूक्रेन के माध्यम से अपने आधुनिक हथियारों को टेस्ट करने की कोई कोर कसर नहीं
छोड़ रहे हैं।
संयुक्त राष्ट्र संघ की सुरक्षा परिषद में अमेरिका, रूस और चीन वीटो के माध्यम से पिछले कई
दशकों से अपनी दादागिरी और मनमानी करते आ रहे हैं। सुरक्षा परिषद कि अब विश्व शांति की
दिशा में विशेष भूमिका देखने को नहीं मिल रही है सारी दुनिया के देश सुरक्षा परिषद के पांचों देशों
के पिछलग्गू बनकर आपस में बंटे हुए हैं। जिसके कारण सारी दुनिया के देश तीसरे विश्व युद्ध की
आशंका से भयभीत हैं। पिछले दशकों में विनाशकारी हथियारों का बड़ा जखीरा दुनिया के सभी देशों
के पास है। ऐसी स्थिति में वर्तमान यदि तीसरा विश्व युद्ध हुआ, तो मानव जाति को बहुत बड़ा
नुकसान होगा, जिसकी कल्पना करना संभव नहीं है। जिस तरह की स्थिति में देखने को मिल रही
है। उसमें युद्ध की स्थिति में प्रकृति और मानव जाति को भारी नुकसान तय है। उस नुकसान की
भरपाई कई सदियों तक होना संभव नहीं होगी। आज जरूरत इस बात की है, कि दुनिया के सारे देश,
जो संयुक्त राष्ट्र संघ के सदस्य हैं। वैश्विक व्यापार संधि के बाद सभी देशों के संबंध और दबाव कहीं
ना कहीं इन पांचों महाशक्तियों के ऊपर बनाना होगा। अब जरूरत इस बात की है, समय रहते विश्व
के सभी 193 देश जिसमें विकासशील और विकसित राष्ट्र है। वह अपनी सुरक्षा और शांति व्यवस्था
को बहाल रखने को लेकर महाशक्तियों के सामने खुलकर आयें। तभी इन महाशक्तियों को नियंत्रित
किया जा सकता है।