उत्तर प्रदेश की सांस्कृतिक पहचान को समृद्ध करते हैं यहां के विविध रंगों वाले शहर। इन्हीं में से एक
नाम है अलीगढ़ का। देश के सबसे बड़े जिलों में से एक है यह। चलते हैं इसके सफर पर..
यह भी देश के बाकी पुराने शहरों की तरह सारी विशेषताओं-सुविधाओं से लैस है। आप किस वजह से
अलीगढ़ को याद करते हैं यह आप पर निर्भर करता है, लेकिन यह शहर मुख्य रूप से दो वजहों से
मशहूर है। आप सही समझ रहे हैं। घर की सुरक्षा और अलीगढ़ का पुराना नाता है। बात हो रही है यहां
बनने वाले तालों की, जो अलीगढ़ में खास तकनीक के साथ पुराने समय से ही बनते आ रहे हैं। बातों-
बातों में लोग अलीगढ़ के ताले का नाम ले लेते हैं। वैसे, केवल ताले ही नहीं, तालीम के लिए भी यह
शहर देश के कुछ चुनिंदा व खास शिक्षण संस्थानों में बड़ा मशहूर रहा है। आप सही समझ रहे हैं
अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (एएमयू) आज भी इसकी शान है। एएमयू से ज्ञानपीठ पुरस्कार विजेता
अखलाक मोहम्मद खान उर्फ शहरयार, पद्मश्री काजी ब्दुल सत्तार, इतिहासकार इरफान हबीब जैसे देश के
तमाम रत्न निकले हैं। इन लोगों ने अपनी काबिलियत का लोहा दुनियाभर में मनवाया। केंद्रीय
विश्वविद्यालय एएमयू ने देश को राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, भारतरत्न, ज्ञानपीठ पुरस्कार विजेता और
न्यायाधीश समेत तमाम रत्न दिए हैं।
ताले की मजबूती का राज
अगर यहां का ताला इतना प्रसिद्ध है तो इसका राज क्या है? यदि आप भी ऐसा ही सोच रहे हैं तो बता
दें कि इसकी मजबूती का राज उसका मजबूत कुंदा है। बाजार में आने से पहले ही कई चरणों से गुजरकर
परखा जाता है। यह बड़ी दिलचस्प प्रक्रिया है। पहले लोहे के गाटर में ताले को लगाकर लोहे की रॉड कुंदे
में फंसाकर तोड़ा जाता है। ताले का कुंदा टूटे बगैर अगर रॉड मुड़ जाए, तो समझ लिया जाता है कि अब
इसे बाजार में उतारा जा सकता है। उल्लेखनीय है कि पहले पीतल के ताले मजबूती के लिए जाने जाते
थे। उस ताले की अंदर की फिटिंग भी पीतल की होती थीं, जिससे जो शहर समंदर के किनारे बसे हैं वहां
मौजूद हवा के साथ आने वाली नमी से ताले में जंग न लग जाए। अब ताले की बॉडी स्टील की बनाई
जाती है, जो पीतल से भी मजबूत होता है। वैसे, अलीगढ़ में हर तरह का ताला तैयार किया जा रहा है,
लेकिन इलेक्ट्रॉनिक ताला मजबूत नहीं होता, इसलिए इसे यहां नहीं बनाया जा रहा।
एएमयू में देवी-देवताओं की 23 मूर्तियां
एएमयू यानी अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी दर्शनीय है। यहां देखने के लिए बहुत कुछ है। जिधर नजर
दौड़ाएं, आपको कुछ नई और हैरान करने वाली चीजें मिलेंगी। यहां के मूसा डाकरी म्यूजियम में तमाम
दुर्लभ वस्तुओं का दीदार होगा। दिलचस्प यह है कि इनमें एएमयू संस्थापक सर सैयद अहमद खां द्वारा
संरक्षित की गई देवी-देवताओं की 23 मूर्तियां भी हैं। दरअसल, वर्ष 1863 में राजा जयकिशन अलीगढ़
के डिप्टी कलेक्टर थे। उन्होंने सर सैयद को ये देव प्रतिमाएं भेंट की थीं। इनमें महावीर जैन के स्तूप का
वजन करीब एक टन है। स्तूप के चारों ओर आदिनाथ की 23 मूर्तियां हैं। इसके अलावा, यहां सुनहरे
पत्थर का बना पिलर, कंकरीट से बनीं सात देव प्रतिमाएं, शेष-शैय्या पर लेटे भगवान विष्णु, कंकरीट के
बने सूर्य भगवान आदि भी हैं। संग्रहालय के मुख्य गेट पर मशहूर चित्रकार मकबूल फिदा हुसैन द्वारा
टाइल्स पर बनाई गई पेंटिंग्स आकर्षण का केंद्र हैं। यहां एटा के अतरंजीखेड़ा और बुलंदशहर आदि जिलों
में खोदाई में निकले लोहे, तांबे व मिट्टी के बने बर्तन, पशुओं के शिकार में इस्तेमाल किए जाने वाले
हथियार और श्रृंगार के सामान आदि भी रखे हुए हैं। यह धरोहर 3000-3200 साल पुरानी मानी जाती
है।
दुर्लभ प्रजाति के काले हिरण भी हैं यहां
दुनिया भर में विख्यात काले हिरण को अलीगढ़ का भूभाग खूब भाया। दुर्लभ प्रजाति के इस जीव को
यहां कुलांचे मारते देख सरकार भी प्रभावित हुई। राज्य में विलुप्त प्रजाति के काले हिरणों के दो केंद्र
बनाए गए। इनमें एक इलाहाबाद में है, दूसरा डेढ़ दशक पहले अलीगढ़ जिला मुख्यालय से 18 किमी दूर
गभाना के पला सल्लू में स्थापित किया गया। वन विभाग के अनुसार, यहां करीब 350 काले हिरण हैं।
यदि आप जीटी रोड से गुजरते हैं तो अलीगढ़ में गभाना के पास पल्ला सल्लू पर थोड़ी देर ठहर जाइए।
हो सकता है कि आपको कुलांचे मारते हुए इन मृगों का दीदार भी हो जाए।
इकलौता राइडिंग क्लब
देश के केंद्रीय विश्वविद्यालयों का इकलौता राइडिंग क्लब एएमयू में है। क्लब की स्थापना 1889 में सर
सैयद अहमद के समय में ही हुई थी, जहां बेटियां भी घोड़े पर बैठकर दौड़ लगाती हैं। वर्तमान में इस
राइडिंग क्लब में 20 से अधिक घोड़े हैं।
कभी साबितगढ़ था तो कभी बना श्रामगढ़
दिल्ली के दक्षिण-पूर्व व पश्चिमी उत्तर प्रदेश में स्थित अलीगढ़ नाम नजफ खां का दिया हुआ है। सन्
1717 में साबित खान ने इसका नाम साबितगढ़ और 1757 में जाटवंश के शासकों ने श्रामगढ़ रखा था।
उत्तर मुगल काल में यहां सिंधिया का कब्जा था। फ्रांसीसी सेनापति पेरन का किला आज भी खंडहर के
रूप में है। इसे 1802 में लॉर्ड लेक ने जीता था। अलीगढ़ का प्राचीन नाम हरिगढ़, कोइल या कोल भी
है। कोल नाम की तहसील अब भी है।
मौलाना आजाद लाइब्ररी
आप अलीगढ़ आएं तो आपको एएमयू की मौलाना आजाद लाइब्रेरी जाने का कार्यक्रम जरूर बनाना
चाहिए। यह एशिया की दूसरी सबसे बड़ी लाइब्रेरी में से है, जहां ज्ञान का अद्भुत खजाना छुपा है। आप
यहां कर सकते हैं 15,500 पांडुलिपियों और एक लाख पुस्तकों के अलावा तमिल भाषा में लिखे भोज-पत्र
के दर्शन। हिरन की खाल की झिल्ली पर लिखी गई कुरान मजीद भी आपको खूब लुभाएगी। 1400 साल
पहले लिखी इस कुरान की खास बात यह है कि इसमें जेर, जबर, पेश व नुक्ता नहीं है। कुरान पढ़ने
वाला ही इसे समझ सकता है। वहीं, 1829 में अकबर के दरबारी अब्दुल फैज फैजी के हाथों फारसी में
अनुवादित भगवद्गीता और तकरीबन 400 साल पहले नकीब खां द्वारा फारसी में किए गए महाभारत
के अनुवाद की पांडुलिपि भी यहां मौजूद है। इस लाइब्रेरी में आपको मुगल शासकों द्वारा युद्ध में सुरक्षा
की खातिर पहने जाने वाला कुरान शरीफ लिखा कुर्ता भी देखने को मिलेगा। मुगल बादशाह जहांगीर के
पेंटर मंसूर नक्काश द्वारा 1621 में बनाई ट्यूलिप की अद्भुत पेंटिंग आप देखकर दांतों तले अंगुली
दबाए बिना नहीं रह सकेंगे। दरअसल, इसे देखकर ऐसा लगता है, जैसे उसे कंप्यूटर से बनाया गया हो।
सोने से जड़ी जामा मस्जिद
लोकप्रिय शो ‘कौन बनेगा करोड़पति’ (केबीसी) में अमिताभ बच्चन ने एक सवाल पूछा था कि एशिया में
ऐसी कौन-सी मस्जिद है, जिसमें सबसे अधिक सोना लगा हुआ है? दरअसल, वह मस्जिद यहीं है। पुराने
शहर के ऊपरकोट क्षेत्र में बनी जामा मस्जिद आपको शहर के किसी भी ओवरब्रिज से नजर आ जाएगी।
यह सबसे ज्यादा सोना जड़ी हुई मस्जिद के रूप में विख्यात है। इसके गुंबदों (कुल 17) पर सीप व खास
तरह के रंगीन पत्थरों का लेप किया गया है। मुगल शासक मुहम्मद शाह (1719-1728) के समय कोल
के नवाब साबित खान ने इसे बनवाया था। मुगलकाल में बनी इस मस्जिद में एक साथ पांच हजार लोग
नमाज अदा कर सकते हैं। औरतों के लिए नमाज पढऩे का अलग से इंतजाम है। इसे शहदरी (तीन दरी)
कहते हैं। देश की शायद यह पहली मस्जिद होगी, जहां शहीदों की कब्रें भी हैं। इसे गंज-ए-शहीदान
(शहीदों कीबस्ती) भी कहते हैं। इसमें 1857 के गदर के 73 शहीदों की कब्र भी हैं।
एशिया का सबसे सुशिक्षित गांव
जिले की 902 ग्राम पंचायतों में 1165 गांव हैं, लेकिन एएमयू से सटा गांव धौर्रामाफी सबसे जुदा है।
यह एशिया का सबसे शिक्षित गांव माना जाता है। करीब 30 हजार की आबादी है, जिसकी साक्षरता दर
75 फीसद है। 2002 ही में लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में इसका नाम दर्ज हुआ था। अब गिनीज बुक
ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में रजिस्ट्रेशन के लिए प्रयास किए जा रहे हैं। गांव के अधिकतर लोग आइएएस,
पीसीएस, डॉक्टर, प्रोफेसर व एनआरआइ हैं। एएमयू के ज्यादातर प्रोफेसर यहीं रहते हैं।
कैसे पहुंचें?
आप सड़क व रेलमार्ग दोनों से यहां आ सकते हैं। दिल्ली से अलीगढ़ की दूरी 126 किमी. है। यह दूरी
करीब 2 घंटे में तय की जा सकती है। सड़क मार्ग से यमुना एक्सप्रेस वे व जीटी रोड होते हुए करीब
चार घंटे का समय लगता है। अलीगढ़ में धनीपुर हवाई पट्टी का विस्तार हो रहा है। निकट भविष्य में
हवाई मार्ग से भी आयाजा सकेगा।