ड्रैगन को जवाब:श्रीलंका में चीन बना रहा था बंदरगाह, अब भारत बनाएगा एयरपोर्ट

asiakhabar.com | October 15, 2017 | 1:49 pm IST

श्रीलंका में चीन के बढ़ते प्रभाव का मुकाबला करने के लिए भारत हम्बनटोटा के निकट मट्टाला एयरपोर्ट को विकसित करने को तैयार हो गया है। इस सिलसिले में दोनों देशों के बीच बातचीत अंतिम दौर में है। यह जानकारी स्वयं श्रीलंका के नागरिक विमानन मंत्री निमल श्रीपाला ने हाल में दी। बता दें कि ‘बेल्ट एंड रोड पहल’ के तहत चीन ने इस इलाके में भारी निवेश किया है। श्रीपाला ने कहा, श्रीलंका हम्बनटोटा इलाके में निवेश के विकल्पों पर विचार कर रहा है। इस इलाके में चीन ने बंदरगाह का निर्माण किया है और निवेश क्षेत्र और तेल शोधन कारखाना लगाने पर चर्चा की जा रही है।
उन्होंने कहा, ‘भारत एक प्रस्ताव के साथ सामने आया है। नई दिल्ली हवाई अड्डे और एविएशन सर्विसेज लिमिटेड के साथ संयुक्त उपक्रम बनाने को तैयार है।’ बता दें कि श्रीलंका की सरकारी कंपनी एविएशन सर्विसेज कोलंबो और दक्षिण के मट्टाला हवाई अड्डे का परिचालन करती है। भारत सरकार के सूत्रों ने भी श्रीपाल के बयान की पुष्टि की है। उन्होंने कहा, भारत ने घाटे में चल रहे मट्टाला हवाई अड्डे के विस्तार और प्रबंधन के लिए संयुक्त उपक्रम बनाने का प्रस्ताव किया है। यह हवाई अड्डा हम्बनटोटा के करीब है। सूत्रों ने बताया कि नई दिल्ली श्रीलंका को हिस्सेदारी और निवेश के स्वरूप को तय करने की छूट देगा। हालांकि, भारतीय विदेश मंत्रालय नें फिलहाल इसपर कोई आधिकारिक टिप्पणी नहीं की है।
भारत की योजना
मीडिया में लीक श्रीलंकाई कैबिनेट नोट के मुताबिक शुरुआत में योजना के तहत 29.3 करोड़ डॉलर (करीब 1900 करोड़ रुपये)का निवेश होगा। इसमें भारत 70 फीसदी राशि 40 साल के लिए लीज पर देगा।
चीन ने किया था निर्माण
चीन ने मट्टाला हवाई अड्डे का निर्माण 25.3करोड़ डॉलर (करीब 1600 करोड़ रुपये) की लागत से किया है। इसके लिए चीन ने ही 23 करोड़ डॉलर का कोष उपलब्ध कराया है। हालांकि, इस हवाई अड्डे से रोजाना दुबई के लिए केवल एक विमान का परिचालन होता है और यह दुनिया के सबसे खाली अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डों के रूप में बदनाम है।
रणनीतिक महत्व
श्रीलंका की पिछली सरकार ने हम्बनटोटा बंदरगाह को 99 साल के लिए चीन को लीज पर दिया है। चीन की मंश इस इलाके में विस्तार करना है। वह यहां तेलशोधन कारखाना लगाना चाहता है। श्रीलंका भी इसे निवेश क्षेत्र के रूप में विकसित करना चाहता है। इसके लिए छह हजार हेक्टेयर जमीन आरक्षित की गई है। यह बंदरगाह दुनिया के सबसे व्यस्त जलमार्ग पर मौजूद है और यूरोप और एशिया के कारोबार के बीच इसका रणनीतिक महत्व है।
तीन साल पहले बजी खतरे की घंटी
भारत शुरू से ही चीन की पड़ोसी देशों में भारी-भरकम निवेश को शंका की नजर से देखता है। लेकिन 2014 में चीन ने नई दिल्ली की शंका को पुष्ट करते हुए कोलबों बंदरगाह पर अपनी पनडुब्बी खड़ी कर दी। इसके बाद प्रधानमंत्री कार्यालय स्वयं हरकत में आया और प्रभाव को बहाल करने की रणनीति बनाई।


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