भारत की आज़ादी के 75 सालों में सिर्फ आठ बार संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) का गठन करना
पड़ा है। वैसे विभिन्न मंत्रालयों की संसदीय स्थायी समितियों की व्यवस्था भी है। उनमें भी कई
राजनीतिक दलों के सांसद होते हैं और सबसे वरिष्ठ सांसद को समिति का अध्यक्ष तय किया जाता
है। स्थायी समितियां भी मंत्रालयों के भीतर की गतिविधियों और मंत्रालय से जुड़े विषयों का अध्ययन
करती हैं और सरकार को सचेत करते हुए सुझाव भी देती हैं। संयुक्त संसदीय समिति किसी अपराध
या घोटाले की साझा जांच करती है। जांच के दौरान वह देश के प्रधानमंत्री को भी तलब कर सकती
है। यह एक अदालत का भी विशेषाधिकार है। प्रधानमंत्री रहते हुए पीवी नरसिंह राव को एक कथित
आपराधिक मामले में अदालत ने ‘अभियुक्त’ घोषित किया था। बहरहाल ताज़ातरीन संदर्भ अडानी
समूह की कंपनियों के बही-खातों में कथित हेराफेरी, फर्जी और बेनामी कंपनियों के निवेश और
प्रधानमंत्री मोदी की भूमिका से जुड़ा है। अभी तक कोई आपराधिक केस दर्ज नहीं किया गया है। देश
की स्वायत्त नियामक एजेंसियों ने भी किसी तरह के घोटाले की ओर संकेत नहीं किया है, लेकिन
कांग्रेस समेत विपक्ष का एक तबका लगातार जेपीसी की मांग कर रहा है। क्या एक विदेशी,
जालसाज, सटोरिया कंपनी की रपट पर जेपीसी का गठन करना मुनासिब है? यह यक्ष-प्रश्न हमारी
व्यवस्था और देश के सामने मौजूद है। दिवंगत प्रधानमंत्री राजीव गांधी के कार्यकाल के दौरान बोफोर्स
तोप घोटाले और कथित दलाली के आरोप लगे थे।
हालांकि एक विदेशी रेडियो ने अपनी ख़बर में यह खुलासा किया था, लेकिन तत्कालीन वित्त मंत्री
विश्वनाथ प्रताप सिंह और कुछ अन्य नेताओं ने प्रधानमंत्री के खिलाफ बग़ावत की थी और यह मुद्दा
उठाया था। ‘इंडियन एक्सप्रेस’ और ‘हिंदू’ सरीखे प्रतिष्ठित अख़बारों ने भी रपटें छापी थीं, नतीजतन
पहली बार अगस्त, 1987 में जेपीसी का गठन किया गया। दूसरी बार 1992 में हर्षद मेहता, केतन
पारिख वाले बैंकिंग लेन-देन की अनियमितताओं पर जेपीसी गठित की गई। 2001 में स्टॉक मार्केट
घोटाले के मद्देनजर जेपीसी की जांच कराई गई। एक निजी संगठन के अनुसंधान पर आधारित
सॉफ्ट ड्रिंक्स और अन्य पेय पदार्थों में कीटनाशक के मामले में 2003 में जेपीसी का गठन करना
पड़ा। कांग्रेस नेतृत्व की यूपीए सरकार के दौरान 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले और 12 वीवीआईपी हेलीकॉप्टर
खरीद मामले में 2011 में जेपीसी बिठाई गई। यह दीगर है कि अदालत ने 2जी का मामला ही
खारिज कर दिया। अगस्ता वेेस्टलैंड कंपनी के साथ हेलीकॉप्टर करार की जांच अब भी जारी है। उसके
बाद मोदी सरकार के दौरान 2015 में भूमि अधिग्रहण पुनर्वास बिल और 2016 में राष्ट्रीय नागरिक
रजिस्टर के मामलों में जेपीसी का गठन किया गया। सभी जेपीसी जांचों के बावजूद ऐसा कोई ठोस
और प्रत्यक्ष फैसला या निष्कर्ष सामने नहीं आया, जो भारत सरकार के खिलाफ हो अथवा हमारी
स्थापित व्यवस्था को बदल सके। अधिकांश जांचें बेनतीजा ही रहीं। दरअसल जेपीसी ‘राजनीतिक’
ज्यादा होती है। जिस तरह बोफोर्स घोटाले का दुष्प्रचार किया गया और चुनाव में राजीव गांधी सरकार
और कांग्रेस पराजित हो गईं, लेकिन बाद में अदालत का फैसला आया कि कोई घोटाला नहीं हुआ।
इसी तरह पेगासस जासूसी कांड पर कांग्रेस ने संसद की कार्यवाही को लगातार बाधित किया।