-सनत जैन-
विजयादशमी के पावन पर्व पर संघ प्रमुख मोहन भागवत ने कुछ जरूरी विषयों पर सारे देश का
ध्यान आकर्षित किया है। संघ प्रमुख ने जनसंख्या नियंत्रण कानून की जरूरत को प्रतिपादित किया।
उन्होंने धर्म आधारित जनसंख्या असंतुलन को महत्त्व दिया। जनसंख्या पॉलसी बराबरी पर आधारित
हो। जनसंख्या संतुलन बिगड़ने से राजनीतिक अस्थिरता और धार्मिक सोहद्र को लेकर अपनी चिंता
प्रकट की है। संघ प्रमुख ने सबके लिए मंदिर पानी और श्मशान एक होने की बात कही है। संघ
प्रमुख ने यह भी कहा है कि किसी को भी इस तरीके के बयान नहीं देने चाहिए, जिससे किसी
व्यक्ति अथवा समुदाय की श्रद्धा को ठेस पहुंचे। उन्होंने अल्पसंख्यक सोहाद्र और सरकारी नौकरी के
स्थान पर उद्यमिता बढ़ाने जैसी बातें भी उद्धबोधन में कहीं। निश्चित रूप से संघ प्रमुख की अपनी
दृष्टि है। समय-समय पर संघ परिवार अपनी दृष्टि को बदलता रहता है। यह भी अच्छी बात है।
लेकिन अपने विचारों को दूसरों पर थोपना भारत की संस्कृति और सनातन धर्म का हिस्सा नहीं है।
कौन व्यक्ति हिंदू के यहां जन्म लेगा और किसका मुसलमान के यहॉ जन्म होगा, और कब मृत्यु
होगी। आदमी कब गरीब होगा, वह कब अमीर होगा, कब उसके हाथ में सत्ता होगी, और कब सत्ता
हाथ से निकल जाएगी। इस पर मानव जाति का कोई नियंत्रण नहीं है। भगवान कृष्ण ने भागवत
गीता में स्पष्ट रूप से अर्जुन को कहा, कर्म का फल हर जीव को भोगना ही पड़ता है। आत्मा और
शरीर की भिन्नता का अर्जुन को ज्ञान देते समय बताई है। कौरव और पांडव हिंदू मुसलमान नहीं थे।
सत्ता और अहंकार की लड़ाई अपनों के बीच होती हैद्य। बाहरी भीड़ से इसका कोई लेना देना नहीं
होता है। जंगल में सभी जानवर और पशु पक्षी के बीच जनसंख्या नियंत्रण जैसा कोई नियम नहीं है।
सभी जंगल मे रहते हैं कोई भी जानवर और पशु पक्षी किसी भी जानवर या पशु पक्षी के अधिकारों
का हनन नहीं करता है। कर्मफल से 8400000 योनियों में भ्रमण करते हुए अपने कर्म फल के
अनुसार विभिन्न योनियों में जीवन और मृत्यु है।
निश्चित रूप से भारत में अनंत काल का सत्ता का इतिहास है। कभी शिव और वैष्णव संप्रदाय के
बीच संघर्ष होता था। कभी आर्य और अनार्य में संघर्ष हुए। सत्ता पाने के लिए भाई भाई आपस में
लड़े। सत्ता के लिए बेटे ने बाप को कारागार में डाल दिया। ये सब सत्ताधारी सत्ता में काबिज होने के
लिए अपनों से लड़े। 5वीं शताब्दी में हूण ने भारत में आक्रमण किया। वह भी ज्यादा दिन नहीं चला।
सत्ता के लिए गुप्त वंश, चालुक्य वंश, पाल वंश इत्यादि एक दूसरे की सत्ता पाने के लिए लड़ते रहे।
इसमें हिंदू समुदाय सत्ताधारियों से लड़ती और मरती रही। 1000वीं शताब्दी मे मोहम्मद गजनबी ने
भारत में 17 बार आक्रमण किये। उसके बाद से हजारों मील से आक्रांता भारत आए। देखते ही देखते
500 वर्षों में मुस्लिम आक्रांताओं ने जिनकी संख्या हजारों में थी। एक-एक करके उन्होंने रियासतों
और जागीरदारों पर हमले किए। उस समय सारी जनसंख्या हिंदुओं की थी। बहुत कम संख्या में
हजारों मील दूर से चलकर मुस्लिम आक्रांता भारत आए। उन्होंने महलों और किलों में हमले किए।
राजा और जागीरदारों का राजपाट छीन लिया। तब हिंदू जनता ने उन सत्ताधारियों का बचाव नहीं
किया। क्योंकि हिंदू राजा अपनी प्रजा का पोषण करने के स्थान पर शोषण ज्यादा करते थे।
प्रजा हमेशा सोचती है कोई हो नृप हमें का हानि, जो अल्पसंख्यक राजा थे। उन्होंने प्रजा का कम
शोषण किया। प्रजा उनके पीछे चल पड़ी। हिंदू राजा एक दूसरे से लड़ते रहे और हिन्दू राजा हिंदू
राजाओं को ही हराते रहे। मुस्लिम शासक भी जब हिंदू शासकों की तरह व्यवहार करने लगे। तो ढाई
सौ साल के इतिहास में ईस्ट इंडिया कंपनी और अंग्रेजों ने पूरे भारत को अपने कब्जे में कर लिया।
अंग्रेजों ने जब स्वतंत्रता दी। तब जाकर रियासतें खत्म हुई। भारत एक राष्ट्र बना। ईसाई धर्म 2000
साल पुराना है। मुस्लिम धर्म 1400 साल पुराना है। ईसाई और मुस्लिम धर्म के मानने वालों की
संख्या आज पूरे विश्व में सर्वाधिक है। सभी धर्म एक समान है। लोभ, क्रोध, मोह, माया, प्रमाद से
बचते हुए जियो और जीने दो के सिद्धांत के साथ लगभग सभी धर्मों की स्थापना हुई है। यह कहने
में संकोच नहीं है, कि हिंदू धर्म के शासकों ने प्रजा के पोषण का ध्यान ना करते हुए उनमें भेद किया
है। हिन्दु राजाओं ने प्रजा का शोषण किया। वर्ण व्यवस्था ने सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाया है। भारत
में जात-पात, ऊंचा-नीचा, गरीब-अमीर के बीच में हमेशा से आसमानता रही है। जिसके कारण भारत
की राज्य सत्तायें अल्पकालीन रही हैं।
चीन जैसे देश अब जनसंख्या नियंत्रण के बजाय जनसंख्या बढ़ाने की तरफ ध्यान दे रहे हैं। पिछले
30 वर्षों में चीन अपनी जनसंख्या के कारण ही विश्व की आर्थिक महाशक्ति के रूप में तेजी के साथ
आगे बढ़ा। जनसंख्या नियंत्रण मानव के बस की बात नहीं है। यह प्रकृति जन्य ईश्वरीय विधान से
जुड़ी हुई है। जन्म और मृत्यु प्रकृति के विकास और विनाश से जुड़ी हुई है। सनातन धर्म अनादि धर्म
है। इस धर्म में इतना ज्ञान है जो किसी भी धर्म में नहीं है। धर्म आचरण में धारण किया जाता है।
किताबों में पढ़ने या पूजा पाठ वाला धर्म नहीं है। 2500 साल पहले भगवान महावीर ने जियो और
जीने दो तथा अनेकांत के सिद्धांत को आचरण में लाने की शिक्षा दी। उसके बाद ही भारत में हिंसा
के बाद शांति स्थापित हुई थी। भगवान महावीर एवं धर्म के मूल गुणों के सिद्धांत और शिक्षा
वर्तमान समय में आचरण से दूर होती जा रही हैं। इसलिए हम मानव मानव में भेद करने लगे हैं।
अन्य कोई प्रजाति इस तरह का भेद नहीं करती है।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पिछले 96 साल से एक विचारधारा को लेकर एक बड़े वर्ग को प्रभावित कर
रहा है। ऐसी स्थिति में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की जिम्मेदारी और भी बढ़ जाती है। ईश्वर द्वारा
रचित विधि विधान को माने, सत्ता आती रहती है और जाती रहती हैं। कर्म फल का सिद्धांत भाग्य
के रुप में हर जीव को भोगना ही पड़ता है। इस पर भी विचार करने की आवश्यकता है। स्वदेशी
जागरण मंच 1993 से लेकर 2013 तक विदेशी निवेश और खुदरा व्यवसाय को लेकर, 70 फ़ीसदी
असंगठित क्षेत्र को रोजगार उपलब्ध करने का आंदोलन चला रहा था। 2014 के बाद से 100 फ़ीसदी
विदेशी निवेश और रिटेल सेक्टर में विदेशी भागीदारी से असंगठित क्षेत्र तहस-नहस हो गया है।
स्वदेशी जागरण मंच ने मौन धारण कर लिया है। यही असंगठित क्षेत्र स्थानीय स्तर पर सबसे बड़ा
रोजगार और सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था संचालित करता था। ठीक इसी तरह श्रम शक्ति का उपयोग
यदि सकारात्मक रूप से हो, तो यह दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनती। विदेशी निवेश से
बचना होगा। कर्ज की अर्थव्यवस्था से बचना होगा। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और उसके अनुवांशिक
संगठनों को इस दृष्टिकोण पर भी विचार करना चाहिए। भौतिक युग में कथनी और करनी में अन्तर
ज्यादा समय नहीं चलेगी।