-डॉ श्रीगोपाल नारसन-
ज्योतिबिंदू स्वरूप आत्मा
उसी स्वरूप है परमात्मा
ज्योति ही आधार जीवन का
ज्योति से संचार जीवन का
लौकिक ज्योति सूर्य से मिलती
अलौकिक ज्योति प्रभु से मिलती
प्रकृति की सृजनता इसी से
प्रकृति की पोषणता भी इसी से
प्रभु को सदा ही याद
करो
सूर्य को भी नमस्कार करो
छठ पर्व का यही है संदेश
खुशहाल रहे अपना देश।
छठ पूजा का पर्व कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाया जाता है। यह व्रत सबसे
खास माना जाता है। इस व्रत में 36 घंटों तक निर्जला रहना पड़ता है। छठ पूजा के दिन सूर्यदेव और
षष्ठी मैया की पूजा की जाती है। साथ ही इस दिन शिव जी की पूजा भी की जाती है। इस त्योहार
को सबसे ज्यादा बिहार, झारखंड, पूर्वी उत्तर प्रदेश और पश्चिमी बंगाल में मनाया जाता है। साथ ही
इसे नेपाल में भी मनाया जाता है। इस त्योहार को सूर्य षष्ठी के नाम से भी जाना जाता है। छठ
पूजा का पर्व संतान के लिए रखा जाता है। नहाय खाय से छठ पूजा की शुरुआत होती है। इस दिन
व्रती नदी में स्नान करते हैं, इसके बाद सिर्फ एक समय का ही खाना खाया जाता है।छठ का दूसरा
दिन खरना कहलाता है। इस दिन भोग तैयार किया जाता है। शाम के समय मीठा भात या लौकी की
खिचड़ी खाई जाती है।व्रत का तीसरा दिन दूसरे दिन के प्रसाद के ठीक बाद शुरू हो जाता है। छठ
पूजा में तीसरे दिन को सबसे प्रमुख माना जाता है। इस मौके पर शाम के समय भगवान सूर्य को
अर्घ्य देने की परंपरा है और बांस की टोकरी में फलों, ठेकुआ, चावल के लड्डू आदि से अर्घ्य के सूप
को सजाया जाता है। इसके बाद, व्रती अपने परिवार के साथ मिलकर सूर्यदेव को अर्घ्य देते हैं और
इस दिन डूबते सूर्य की आराधना की जाती है। छठ पूजा का पहला अर्घ्य इस साल 30 अक्टूबर को
दिया जाएगा। इस दिन सूर्यास्त का समय 05 बजकर 34 मिनट से शुरू होगा। चौथे दिन उगते हुए
सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। ये अर्घ्य लगभग 36 घंटे के व्रत के बाद दिया जाता है। 31 अक्टूबर
को उगते हुए सूर्य को अर्घ्य दिया जाएगा। इस दिन सूर्योदय 6 बजकर 27 मिनट पर होगा। इसके
बाद व्रती के पारण करने के बाद व्रत का समापन होगा।इस दिन जरूरतमंदों और गरीब लोगों की
मदद करनी चाहिए। छठ पूजा का प्रसाद बनाते समय नमकीन वस्तुओं को हाथ नहीं लगाना चाहिए।
भगवान सूर्य को स्टील, प्लास्टिक, शीशे, चांदी आदि के बर्तन से अर्घ्य नहीं देना चाहिए। इस दिन
गरीब लोगों में खाना बांटा जाए तो छठ माता हर मनोकामना पूरी करती हैं।जो लोग संतान प्राप्ति
करना चाहते हैं वो लोग छठ के दिन 108 बार इस मंत्र का जाप करें “ऊं ह्रां ह्रीं ह्रौं स: सूर्याय नम:”।
जिन लोगों की नौकरी नहीं लग रही है या घर में आर्थिक समस्या आ रही है, वो लोग इस दिन
सूर्यदेव के मंत्र “ऊं घृणिः सूर्याय नमः” का जाप करें। संतान की सुख समृद्धि के लिए इस दिन
भगवान सूर्य को अर्घ्य देना चाहिए और पशु पक्षियों को गेहूं के आटे और गुड़ से बना व्यंजन
खिलाना चाहिए।
यह पर्व मैथिल, मगध और भोजपुरी लोगो का सबसे बड़ा पर्व है ये उनकी संस्कृति है। छठ पर्व बिहार
मे बड़े धुम धाम से मनाया जाता है। ये एक मात्र ही बिहार या पूरे भारत का ऐसा पर्व है जो वैदिक
काल से चला आ रहा है और ये बिहार कि संस्कृति बन चुका हैं। यहा पर्व बिहार कि वैदिक आर्य
संस्कृति कि एक छोटी सी झलक दिखाता हैं। ये पर्व मुख्यः रुप से ॠषियो द्वारा लिखी गई ऋग्वेद
मे सूर्य पूजन, उषा पूजन और आर्य परंपरा के अनुसार बिहार मे यहा पर्व मनाया जाता हैं।इस पर्व
को छइठ, छठ व्रत, छठ, छठी मइया की पूजा, रनबे माय पूजा, छठ पर्व, डाला छठ भी कहा जाता
है। छठ पूजा सूर्य, प्रकृति,जल, वायु और उनकी बहन छठी मइया को समर्पित है ताकि उन्हें पृथ्वी
पर जीवन के देवताओ का धन्यवाद कर सके, छठी मैया, जिसे मिथिला में रनबे माय, भोजपुरी में
सबिता माई और बंगाली में रनबे ठाकुर कहा जाता है। पार्वती का छठा रूप भगवान सूर्य की बहन
छठी मैया को त्योहार की देवी के रूप में पूजा जाता है। यह चंद्र के छठे दिन काली पूजा के छह दिन
बाद छठ मनाया जाता है। मिथिला में छठ के दौरान मैथिल महिलाएं, मिथिला की शुद्ध पारंपरिक
संस्कृति को दर्शाने के लिए बिना सिलाई के शुद्ध सूती धोती पहनती हैं। इस त्यौहार के अनुष्ठान
कठिन हैं जो चार दिनों की अवधि में मनाए जाते हैं। इनमें पवित्र स्नान, उपवास और पीने के पानी
से दूर रहना, लंबे समय तक पानी में खड़ा होना, और प्रसाद और अर्घ्य देना शामिल है। छठ लिंग-
विशिष्ट त्यौहार नहीं है। छठ महापर्व के व्रत को स्त्री-पुरुष-बुढ़े-जवान सभी लोग हर्षोल्लास के साथ
मनाते हैं।