बीजिंग। चीनी सेना ने शुक्रवार को पुष्टि की कि पूर्वी लद्दाख के ‘गोगरा-
हॉटस्प्रिंग्स’ क्षेत्र में ‘पेट्रोलिंग प्वाइंट 15’ से चीन और भारत के सैनिकों की ‘‘समन्वित एवं नियोजित
तरीके’’ से वापसी की प्रक्रिया शुरू कर दी गई है।
पूर्वी लद्दाख में दो साल से अधिक समय से जारी गतिरोध को समाप्त करने की दिशा में अहम
कदम आगे बढ़ाते हुए भारतीय एवं चीनी सेनाओं ने बृहस्पतिवार को घोषणा की कि उन्होंने गोगरा-
हॉटस्प्रिंग्स क्षेत्र के ‘पेट्रोलिंग प्वाइंट 15’ से बलों की वापसी की प्रक्रिया शुरू कर दी है।
भारत लगातार कहता रहा है कि द्विपक्षीय संबंधों के समग्र विकास के लिए वास्तविक नियंत्रण रेखा
(एलएसी) के पास शांति बनाए रखना महत्वपूर्ण है। गतिरोध को हल करने के लिए दोनों सेनाओं ने
कोर कमांडर स्तर की 16 दौर की बातचीत की।
चीनी रक्षा मंत्रालय की शुक्रवार को यहां जारी एक प्रेस विज्ञप्ति में कहा गया है, ‘‘चीन-भारत कोर
कमांडर स्तर की बैठक के 16वें दौर में बनी सहमति के अनुसार, आठ सितंबर, 2022 को जियानन
डाबन क्षेत्र से चीनी और भारतीय बलों ने समन्वित और नियोजित तरीके से पीछे हटना शुरू कर
दिया है, जो सीमावर्ती इलाकों में शांति के लिए अच्छा है।’’
यहां भारतीय अधिकारियों ने पुष्टि की कि चीनी सेना की प्रेस विज्ञप्ति में जिस जियानन डाबन क्षेत्र
का जिक्र किया गया है, वह गोगरा-हॉटस्प्रिंग्स इलाके का वही ‘पेट्रोलिंग प्वाइंट-15’ है, जिसका
बृहस्पतिवार को भारतीय प्रेस विज्ञप्ति में उल्लेख किया गया था।
यह एक संयुक्त बयान है, लेकिन दोनों पक्षों ने इलाके का उल्लेख विभिन्न नाम से किया है।
दिल्ली में पत्र सूचना कार्यालय (पीआईबी) द्वारा बृहस्पतिवार रात को जारी संयुक्त बयान में कहा
गया था, ‘‘भारत-चीन के बीच 16वें दौर की कोर कमांडर स्तर की बैठक में बनी सहमति के अनुसार,
आठ सितंबर 2022 को गोगरा-हॉटस्प्रिंग्स (पीपी-15) क्षेत्र से भारतीय और चीनी सैनिकों ने समन्वित
एवं नियोजित तरीके से पीछे हटना शुरू कर दिया है, जो सीमावर्ती क्षेत्रों में शांति और स्थिरता के
लिए अच्छा है।’’
उज्बेकिस्तान में शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) के वार्षिक शिखर सम्मेलन से लगभग एक सप्ताह
पहले सेनाओं के पीछे हटने की प्रक्रिया की घोषणा की गई है। सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी
और चीनी राष्ट्रपति शी चिनफिंग शामिल होंगे। ऐसी अटकलें हैं कि दोनों नेताओं के बीच द्विपक्षीय
बैठक हो सकती है। हालांकि, इसे लेकर किसी पक्ष ने कोई आधिकारिक जानकारी नहीं दी है।
दोनों सेनाओं ने एक संयुक्त बयान में कहा कि पीछे हटने की प्रक्रिया की शुरुआत जुलाई में हुई 16वें
दौर की उच्चस्तरीय सैन्य वार्ता का परिणाम है।
आधिकारिक सूत्रों ने बताया कि ‘पेट्रोलिंग प्वाइंट 15’ (पीपी-15) से सैनिकों की वापसी बृहस्पतिवार
सुबह शुरू हुई और दोनों पक्षों के स्थानीय कमांडर आगामी कदमों के तौर-तरीकों पर काम कर रहे हैं।
सोलहवें दौर की कोर कमांडर-स्तर की वार्ता के बाद, दोनों पक्षों के जमीनी कमांडर ने पीछे हटने की
प्रक्रिया की बारीकियों पर सिलसिलेवार बात की।
सूत्रों ने कहा कि भारत देपसांग और डेमचोक के टकराव वाले शेष बिंदु क्षेत्रों में लंबित मुद्दों के
समाधान के लिए दबाव बनाए रखेगा।
कई दौर की सैन्य और राजनयिक वार्ता के परिणामस्वरूप, दोनों पक्षों ने पिछले साल पैंगोंग झील के
उत्तर और दक्षिण तट क्षेत्रों से सैनिकों की वापसी की प्रक्रिया पूरी की थी।
पैंगोंग झील क्षेत्र से पीछे हटने की प्रक्रिया पिछले साल फरवरी में हुई थी, जबकि गोगरा में ‘पेट्रोलिंग
प्वाइंट’ 17 (ए) क्षेत्र से सैनिकों और उपकरणों की वापसी पिछले साल अगस्त में हुई थी।
सोलहवें दौर की सैन्य वार्ता जयशंकर के अपने चीनी समकक्ष वांग यी से बाली में मुलाकात के 10
दिन बाद हुई थी।
पैंगोंग झील क्षेत्र में हिंसक झड़प के बाद पांच मई, 2020 को पूर्वी लद्दाख में सीमा गतिरोध शुरू हो
गया था।
दोनों पक्षों ने धीरे-धीरे हजारों सैनिकों के साथ-साथ भारी अस्त्र-शस्त्र भी तैनात कर दिए थे। दोनों
पक्षों में से प्रत्येक ने एलएसी पर संवेदनशील क्षेत्र में 50,000 से 60,000 सैनिकों की तैनाती कर
रखी है।