नई दिल्ली। केरल का दौरा करने वाली एक केंद्रीय टीम ने केंद्रीय स्वास्थ्य
मंत्रालय को सौंपी अपनी रिपोर्ट में कहा है कि राज्य में रेबीज से मौत टीके के निष्प्रभावी होने के
चलते नहीं हुई। आधिकारिक सूत्रों ने यह जानकारी दी।
सूत्रों ने बताया कि इस बीच, कसौली (हिमाचल प्रदेश) में जांच पूरी हो गई है और इसमें कहा गया है
कि टीके प्रभावकारी हैं। उन्होंने बताया कि रिपोर्ट में कहा गया है कि ज्यादातर मौतों को टाला जा
सकता था और जानवर द्वारा काटे जाने पर उठाये जाने वाले कदमों के बारे में लोगों के बीच
जागरूकता की कमी को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है।
सूत्रों ने बताया कि जानवर के काटने पर उपचार उपलब्ध कराने वाले संस्थानों में घाव साफ करने की
उपयुक्त व्यवस्था नहीं रहने और प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में रेबीज रोधी टीके (एआरवी) की सीमित
उपलब्धता के कारण भी मौतें हुईं। इन स्वास्थ्य केंद्रों में सिर्फ 30 प्रतिशत में एआरवी उपलब्ध थे।
एक आधिकारिक सूत्र ने कहा, ‘‘किसी भी मौत के लिए टीके को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता।’’
केरल में जानवरों (ज्यातार तौर पर कुत्तों) के काटने की घटनाएं निरंतर बढ़ी हैं और पिछले छह साल
में रेबीज से होने वाली मौतों की संख्या में वृद्धि दर्ज की गई है।
केरल में, इस साल अबतक रेबीज से 21 लोगों की मौत हुई है, जो पिछले साल के आंकड़े से दोगुनी
है। हाल में पथनमथिट्टा जिले में रेबीज संक्रमण से 12 साल की एक बच्ची की मौत हो गई। उसे
टीके की तीन खुराक दी गई थी।
इस साल रेबीज से हुई सभी मौतों की पूर्ण जांच के लिए केंद्रीय टीम में राष्ट्रीय रोग नियंत्रण केंद्र के
अधिकारी शामिल किये गये थे और उन्हें पिछले महीने केरल भेजा गया था।
सूत्रों ने बताया कि टीम ने सभी मामलों से जुड़े रिकार्ड की गहन जांच की।