अनिल कुमार शर्मा
जिस वस्तु की ज़रूरत नहीं उसे हटाना बेहतर
स्थान घेरकर बाधक बन जाता है कबाड़
मुफ़्त में हटा देना ही हितकर है ऐसा कबाड़
जिसने दिमाग़ में पैठ बना ली है
लगाव रूपी कबाड़ जकड़े है हर किसी को
जिसका त्याग मुश्किल है
लेकिन असम्भव नहीं
योगी के समतुल्य है कबाड़ी
उसकी निर्मल दृष्टि में
कुछ भी कबाड़ नहीं