-ओम प्रकाश मेहता-
यह भी कितना अजीब है़…. अभी भारत में अगले आम चुनाव में 20 महीने का समय है और अभी
से सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी सहित सभी राजनीतिक दलों की नजर अगले चुनाव पर है,
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की काबिलियत और क्षमता का 8 साल तक परीक्षण करने के बाद देश के
किसी भी विपक्षी दल में उनके मुकाबले की हिम्मत दिखाई नहीं दे रही है, इसलिए प्रति पक्षी दल
एकजुट होने का प्रयास कर रहे हैं, वैसे तो उनका यह प्रयास मोदी जी के पहली बार 2014 में
प्रधानमंत्री बनने के बाद से ही जारी है, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने तो 21 दलों को
एकजुट कर भी लिया था, यह एकजुटता 2018 तक रही और 2019 के आम चुनाव के अवसर पर
टूट गई, पिछले साल से फिर इस दिशा में प्रयास शुरू हुए हैं, कभी शरद पवार तो कभी तेलंगाना के
मुख्यमंत्री श्री चंद्रशेखर राव इस दिशा में सक्रिय हैं, किन्तु क्या वे अगले २0 महीने तक एकजुट रह
पाएंगे? आज का यही सबसे बड़ा और अहम सवाल है|
प्रति पक्षी दलों की एकजुटता में भी कुछ अवरोध हैं, क्षेत्रीय दल कांग्रेस का साथ नहीं चाहते और
ममता बनर्जी लेफ्ट से परहेज कर रही है इधर बिहार में हाल में घटे राजनीतिक घटनाक्रमों के बाद
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अपने आपको “नवोदित राष्ट्रीय नेता” मान कर खुद को अगला प्रधानमंत्री
मानने लगे हैं और गर्व के साथ दावा कर रहे हैं कि अगले लोकसभा चुनाव में भाजपा को 50 सीटें
भी नहीं लाने देंगे, तो मैं इधर सी चंद्रशेखर राव, ममता बनर्जी और शरद पवार भी आए दिन नए-
नए दावे कर रहे हैं और इन सभी नेताओं का सपना प्रधानमंत्री बनना है, इधर सब कुछ लुटा कर भी
होश में नहीं आने वाली कांग्रेस के लाडले नेता राहुल गांधी की आंखों में भी रंगीन सपने हैं, अर्थात
कुल मिलाकर हर दल का नेता अपने आपको अगला प्रधानमंत्री मानकर ही चल रहा है फिर चाहे वो
वास्तविकता कुछ भी क्यों ना हो?
जहां तक नेहरू इंदिरा जी की कई वर्षों से अनवरत आलोचना करने और अपने आपको उन से बढ़कर
मानने वाले नरेंद्र भाई मोदी का सवाल है उनका तो अटूट प्रयास अब नेहरू इंदिरा के प्रधान मंत्रित्व
काल से आगे निकलना है पंडित जवाहरलाल नेहरू 17 साल और इंदिरा जी 16 साल प्रधानमंत्री रही
मोदी जी इस समय सीमा को पार कर कीर्तिमान स्थापित करना चाहते हैं और उसके लिए अभी उन्हें
अगले 2 चुनावों (2024 और 2029) पर अपनी विजय पताका फहरानी होगी और इसी दिशा में वे
स्वयं और उनकी पार्टी प्रयासरत है, प्रतिपक्ष ही दलों को मोदी और उनकी पार्टी का यही संकल्प
परेशान किए हुए हैं और एकजुटता के प्रयास भी इसी का प्रतिफल है, अब इस प्रयास प्रतियोगिता में
कौन सफल होता है? यह तो फिलहाल कोई भविष्यवाणी नहीं की जा सकती किन्तु यह तय है कि
यदि प्रतिपक्ष ही दलों को मोदी का मुकाबला सक्षमता से करना है तो उन्हें इसके लिए अपनी-अपनी
महत्वाकांक्षाओं पर लगाम लगाकर एकजुट होना पड़ेगा और चुनाव परिणामों के बाद प्रयास सफल
होते हैं,तब प्रधानमंत्री पद के बारे में सर्वसम्मति बनानी पड़ेगी क्योंकि जब तक देश का प्रतिपक्ष
बिखरा हुआ है, तब तक मोदी जी को प्रधानमंत्री बने रहने से कोई नहीं रोक सकता, आज प्रतिपक्ष
का कांग्रेस सहित कोई भी दल उन्हें अकेले चुनौती देने की स्थिति में नहीं है, …. और सच पूछा जाए
तो मोदी जी व उनका दल इसी स्थिति का लगातार फायदा उठा रहा है और यही स्थिति रही तो वे
आगे भी इसी तरह फायदा उठाते रहेंगे। इसलिए अब प्रतिपक्षी दलों की प्राथमिकता यही होनी चाहिए
कि वे अपनी महत्वाकांक्षा व अहम को त्यागे और इमानदारी से एकजुट होकर मोदी के मुकाबले की
तैयारी करें, इन प्रयासों के लिए प्रतिपक्षी दलों के पास पर्याप्त समय भी है।
जहां तक सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी का सवाल है उसने हर स्तर पर अपनी तैयारी प्रारंभ कर दी
है, बूथ स्तर से प्रदेश स्तर तक हर कहीं रणनीति तैयार कर ली गई है, क्योंकि लोकसभा चुनावों से
पहले करीब डेढ़ दर्जन राज्यों में विधानसभा चुनाव भी होना है, इसलिए भाजपा उस दिशा में ही
सक्रिय है जबकि प्रति पक्षी दलों की फिलहाल कोई तैयारी परिलक्षित नहीं हो रही है।
….और जहां तक बेचारे आम वोटर का सवाल है वह तो अपेक्षित रहा है… और लगता है आगे भी
रहेगा, क्योंकि प्रजातंत्र में उसकी भूमिका तो वोट देने के चंद मिनटों की ही होती है, उसके बाद तो
हर कोई उसे भुला देता है, आंज ना उसकी तकलीफ का किसी को ध्यान है ना उसके जीवनोपयोगी
संसाधनों की। इस स्थिति को यदि प्रजातंत्रिय प्रणाली का मुख्य दोष भी कहा जाए तो गलत नहीं
होगा? जो भी हो…. कुल मिलाकर आज तो पूरे देश की राजनीति 20 माह बाद होने वाले आम
चुनावों पर केंद्रित है, और अगले 20 महीने आम वोटरों की उपेक्षा के ही रहेंगी…।