अल्पसंख्यकों का असली पैरोकार भारत

asiakhabar.com | February 11, 2023 | 12:39 pm IST
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-योगेंद्र योगी-
पश्चिमी मीडिया के प्रायोजित तमाम दुष्प्रचार के प्रयासों के बाद भी भारत ने यह साबित कर दिया है
कि अल्पसंख्यक देश में न सिर्फ सुरक्षित हैं, बल्कि तरक्की की राह पर हैं। वैश्विक अल्पसंख्यकों पर
सेंटर फॉर पॉलिसी एनालिसिस की एक रिपोर्ट में धार्मिक अल्पसंख्यकों के प्रति समावेशी उपायों के
लिए भारत को 110 देशों में नंबर एक के रूप में स्थान दिया गया है। रिपोर्ट में भारत में धार्मिक
अल्पसंख्यकों की सबसे अच्छी स्थिति बताई गई है। इसके बाद दक्षिण कोरिया, जापान, पनामा और
अमेरिका का स्थान है। रिपोर्ट में कहा गया है कि मालदीव, अफगानिस्तान और सोमालिया सूची में
सबसे नीचे हैं। यूके और यूएई 54वें और 61वें स्थान पर हैं। सीपीए रिपोर्ट के अनुसार भारत की
अल्पसंख्यक नीति विविधता बढ़ाने पर जोर देती है। भारत के संविधान में संस्कृति और शिक्षा में
धार्मिक अल्पसंख्यकों की उन्नति के लिए विशेष प्रावधान हैं। रिपोर्ट के अनुसार किसी अन्य संविधान
में भाषाई और धार्मिक अल्पसंख्यकों को बढ़ावा देने के लिए कोई स्पष्ट प्रावधान नहीं है। रिपोर्ट इस
बात पर प्रकाश डालती है कि कैसे, कई अन्य देशों के विपरीत, भारत में किसी भी धार्मिक संप्रदाय
पर कोई प्रतिबंध नहीं है। मॉडल की समावेशिता और कई धर्मों और उनके संप्रदायों के खिलाफ
भेदभाव की कमी के कारण संयुक्त राष्ट्र भारत की अल्पसंख्यक नीति को अन्य देशों के लिए एक
मॉडल के रूप में उपयोग कर सकता है। पिछले दिनों बीबीसी ने गोधरा कांड को लेकर प्रधानमंत्री
नरेंद्र मोदी के खिलाफ दुष्प्रचार का प्रयास किया था।
इस रिपोर्ट ने दुष्प्रचार का नकाब हटा दिया है। रिपोर्ट यह बताती है कि भारत अल्पसंख्यकों के लिए
सिर्फ सुरक्षित ही नहीं बल्कि पूरे विश्व में सर्वाधिक सुरिक्षत देशों में पहले स्थान पर है। ऐसे में केंद्र
सरकार का यह डर कि बीबीसी की रिपोर्ट भारत की धार्मिक सहिष्णुता की छवि को नुकसान
पहुंचाएगी, महज कोरी कल्पना साबित हुई। इस रिपोर्ट से जाहिर है कि केंद्र सरकार को ऐसे कुत्सित
प्रयासों से चिंतित होने की जरूरत नहीं है। ऐसे प्रयासों को सख्ती से दबाने से उल्टा संदेश यह जाता
है कि जरूर कुछ दाल में काला है, जिस पर सरकार पर्दा डालने का प्रयास कर रही है। यदि सरकार
ने कुछ गलत नहीं किया है तो इसमें डरने की जरूरत नहीं है। इसके विपरीत अपने निर्णयों पर
सरकार को दृढ़ता से खड़ा नजर आना चाहिए। सरकार को ऐसे मुद्दों को सकारात्मकता से लेते हुए
यह प्रचार करना चाहिए कि किस तरह देश में धर्म, जाति या संप्रदाय के आधार पर भेदभाव नहीं
किया जाता। दरअसल तुष्टिकरण की राजनीति करने वाले नेताओं को बाल की खाल निकालने की
आदत पड़ गई है। विपक्षी दलों का यही प्रयास रहता है कि ऐसे मुद्दों पर सरकार को घेर कर वोटों
का ध्रुवीकरण किया जा सके। विपक्षी दल ऐसा कोई मौका नहीं छोडऩा चाहते जिससे उनका
अल्पसंख्यक-दलित वोट बैंक मजबूत हो। विपक्षी दल यह भूल जाते हैं कि ऐसे प्रयास देश की एकता-
अखंडता को कमजोर करने के साथ भारत की अंतरराष्ट्रीय छवि को भी प्रभावित करते हैं। भारत की
छवि को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बिगाडऩे की सुनियोजित साजिश पूर्व में भी रची जाती रही है।

अमेरिकी अंतरराष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता आयोग (यूएससीआईआरएफ) ने वर्ष 2021 में जारी रिपोर्ट में
भारत में धार्मिक स्वतंत्रता की स्थिति को काफी खराब बताया था। रिपोर्ट में कहा गया था कि भारत
सरकार ने नीतियों के प्रचार और प्रवर्तन को बढ़ाया, जिसमें हिंदू-राष्ट्रवादी एजेंडे को बढ़ावा देना
शामिल है, जिसने मुसलमानों, ईसाइयों, सिखों, दलितों और अन्य धार्मिक अल्पसंख्यकों को
नकारात्मक रूप से प्रभावित किया है। यूएससीआरएफ ने अमेरिकी सरकार को इसी तरह की
सिफारिश की थी जिसे बाइडन प्रशासन ने स्वीकार नहीं किया था। भारत ने इस रिपोर्ट का तगड़ा
प्रतिवाद करते हुए कहा था कि अंतरराष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता पर अमेरिकी निकाय ने केवल उस
मामले पर अपने पूर्वाग्रहों को दर्शाया है जिस पर उसे हस्तक्षेप का कोई अधिकार नहीं है। सरकार का
कहना था कि हमारा सैद्धांतिक रुख यह है कि हम अपने नागरिकों के संवैधानिक रूप से संरक्षित
अधिकारों की स्थिति पर किसी विदेशी संस्था का कोई अधिकार नहीं देखते। विदेश मंत्रालय ने कहा
था कि भारत में एक मजबूत सार्वजनिक विमर्श और संवैधानिक रूप से अनिवार्य संस्थान हैं जो
धार्मिक स्वतंत्रता और कानून के शासन के संरक्षण की गारंटी देते हैं। इससे पहले भी पूर्वाग्रह से
ग्रस्त पश्चिमी मीडिया ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की बढ़ती धाक और साख को गिराने के
बदनियति से प्रयास किए हैं। अमेरिकी अखबार वॉल स्ट्रीट जर्नल ने ऐसे वक्त मोदी सरकार के
खिलाफ विज्ञापन छापा जब वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष और विश्व बैंक की
सालाना बैठक में शामिल होने के लिए वॉशिंगटन पहुंची थीं। इस विज्ञापन में वित्त मंत्री निर्मला
सीतारमण सहित कई अधिकारियों, जजों के खिलाफ प्रतिबंध की मांग की गई थी। इस विज्ञापन को
अमेरिका की गैर-सरकारी संस्था फ्रंटियर्स ऑफ फ्रीडम ने जारी किया।
इस विज्ञापन का शीर्षक ‘मोदीज मैग्नित्सकी 11’ दिया गया। दरअसल, 2016 में अमेरिका ने ग्लोबल
मैग्नित्सकी एक्ट बनाया था, जिसके तहत उन विदेशी सरकार के अधिकारियों को प्रतिबंधित किया
जाता है जिन्होंने मानवाधिकारों का उल्लंघन किया हो। विज्ञापन में लिखा था कि मिलिए उन
अधिकारियों से जिन्होंने भारत को निवेश के लिए एक असुरक्षित जगह बना दिया। आश्चर्य की बात
यह है कि अल्पसंख्यकों के मानवाधिकारों के मामलों पर आसमान सिर पर उठा लेने वाले पश्चिमी
देश खुद रंगभेद नीति और अल्पसंख्यकों पर अत्याचारों के मामले में पीछे नहीं हैं, किन्तु उन्हें अपने
कारनामे दिखाई नहीं देते। पिछले दिनों इंग्लैंड और ऑस्ट्रेलिया में हिन्दू मंदिरों पर हमले किए गए।
इंग्लैंड में पाक समर्थकों के हमले के दौरान पुलिस तमाशबीन बनी रही। ऑस्ट्रेलिया में खालिस्तान की
मांग को लेकर अलगाववादियों ने जनमत संग्रह तक करा दिया। इन देशों में भारतीयों पर हमले होना
आम बात है। भारत से रिश्ते की दुहाई देने वाले पश्चिमी देशों को ऐसी हरकतों पर कोई अफसोस
नहीं है। इन मुद्दों पर भारत सरकार कई बार सख्ती से अपना विरोध दर्ज करा चुकी है। केंद्र सरकार
को पश्चिमी मीडिया के फरेब की तरफ ध्यान देने के बजाय राष्ट्रवाद को मजबूत करते हुए विकास
के मोर्चे पर डटे रहना है। यही एक तरीका है मानवाधिकारों के इन कथित पैरोकारों को जवाब देने
का।


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