बोधगया का धार्मिक ही नहीं ऐतिहासिक महत्व भी है

asiakhabar.com | April 12, 2017 | 2:06 pm IST
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बोधगया दुनिया का ऐसा महत्वपूर्ण स्थल है जो पूरी तरह बौद्ध धर्म को समर्पित है। यहां मौजूद बरगद के पेड़ के नीचे ही कपिलवस्तु के राजकुमार गौतम को बौद्धिक ज्ञान प्राप्त हुआ था और वह महात्मा बुद्ध के नाम से पूरी दुनिया में जाने गए। महात्मा बुद्ध ने अपने ज्ञान और उपदेश से बिहार में पहली बार बौद्ध धर्म का प्रचार किया। बुद्ध का सादा जीवन, उनका त्याग और लोगों के प्रति उनकी सहानुभूति के कारण लोगों ने बौद्ध धर्म को अपनाना शुरू किया। महात्मा बुद्ध की मृत्यु के बाद सम्राट अशोक ने फिर से बौद्ध धर्म का प्रचार किया और कई मठ बनवाए। साथ ही कई स्तंभ भी बनवाए, जिन्हें अशोकन पिलर्स को नाम से जाना जाता है। यह मठ आने वाले पर्यटकों को बुद्ध की जीवनी के बारे में जानकारी देते हैं। बोध गया का महाबोधी मंदिर और बोधी पेड़ वहां के गौरव ही नहीं, धरोहर भी हैं। बोध गया का महाबोधी मंदिर वास्तु शिल्प का बेजोड़ उदाहरण है। मंदिरों को पिरामिड और बेलना आकार में बनाया गया है। 170 फीट ऊंचे इस मंदिर का बेंसमेंट 48 वर्ग फीट का है। मंदिर के ऊपर छत्र धर्म का प्रतीक माने जाते हैं। मंदिर के अंदर भगवान बुद्ध की भव्य प्रतिमा है, जिसे देख कर लोग अपने जीवन में सादगी और सद्भावना को ग्रहण करते हैं। मंदिर के पूरे आंगन में कई स्तूप बने हैं। जहां लोग मन्नत मांगने आते हैं। 2500 साल पुराना यह स्तूप अपने आप में बेजोड़ कारीगरी का उदाहरण है। बोधी पेड़ बोधगया का सबसे महत्वपूर्ण स्थान है। इसी वृक्ष के नीचे भगवान बुद्ध को निर्वाण की प्राप्ति हुई थी फिर बौद्ध धर्म का प्रचार हुआ था। बैशाख (मई) के महीने में यहां मेला लगता है। जिसमें इस वृक्ष की पूजा की जाती है। बौद्ध धर्म के अनुयायी खास तौर से इस पेड़ की पूजा करते हैं ताकि वह महात्मा बुद्ध के दिखाए पद चिन्हों पर चल सकें। रत्नागढ़ में भगवान बुद्ध ने एक हफ्ता बिताया था। इसके अलावा बुद्ध की 80 फीट की प्रतिमा, लोटस टैंक, बुद्ध कुंड, चाइनीज मंदिर और मोनेस्ट्री, बर्मी मंदिर, अंतरराष्ट्रीय बुद्धिस्ट हाउस और जापानी मंदिर, थाई मंदिर, तिब्बती मठ, वास्तुशिल्प के म्यूजिक, दुर्गेश्वरी हिल वगैरह भी देख सकते हैं। बोध गया के आसपास और भी ऐसी जगह हैं जहां आप भ्रमण के लिए जा सकते हैं। बोध गया से 32 किलोमीटर दूर देव स्थित सूर्य मंदिर की वास्तुकला बेहद खूबसूरत है। इस मंदिर को देखकर ओडिशा के कोणार्क मंदिर की याद आती है क्योंकि इसका निर्माण कोणार्क मंदिर की तरह ही किया गया है। अक्टूबर−नवम्बर के महीने में यहां बिहार का पारंपरिक छठ उत्सव मनाया जाता है। बोधगया से 12 किलोमीटर दूर है प्रेतशीला पहाड़, जो गया की बेहद खूबसूरत जगह है। इस पहाड़ के नीचे है ब्रहम कुंड जिसमें स्नान कर लोग पिंडदान करते हैं। इस पहाड़ पर स्थित है 1787 में बना अहिल्या बाई मंदिर, जिसे इंदौर की रानी अहिल्या बाई ने बनवाया था। इस मंदिर की बेहतरीन कारीगरी और शानदार मूर्तिकला को देखने देश−विदेश से पर्यटक आते हैं। फाल्गुन नदी के किनारे विष्णुगढ़ मंदिर बेजोड़ कारीगरी की मिसाल है। दूर−दूर से भक्त और पर्यटक इसके आर्कषण में खिंचे चले आते हैं। 1787 में ही इसे भी रानी अहिल्या बाई ने ही बनवाया था। तीस फीट ऊंचा अष्टभुजाकार मीनार इस मंदिर को छाया प्रदान करता है। 41 किलोमीटर की दूरी पर महत्वपूर्ण पुरातत्वीय जगह है बारबर गुफाएं। ये गुफाएं मौर्यकालीन हैं। ये गुफाएं वास्तुकला के शुरुआती दौर को दर्शाती हैं। इन गुफाओं में भगवान बुद्ध ने कुछ समय तपस्या की थी। इसी गुफा में उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई थी। बोधगया जाने का बेहतर समय है अक्टूबर से अप्रैल तक। जून के मध्य से सितंबर मध्य तक यहां बारिश की मौसम होता है। बोधगया जाने के लिए सड़क और रेलमार्ग का इस्तेमाल कर सकते हैं। दिल्ली से कोलकाता जाने वाली राजधानी एक्सप्रेस भी गया जाती है। हवाई मार्ग से भी वहां पहुंचा जा सकता है।


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