-एमएच बाबू- वाह रे! नेता जी, आश्चर्य चकित कर देने वाली आपकी सोच, तथा पद कि गरिमा को तार तार कर देने वाले बयान। देखिए यह नेता जी हैं। बड़ी विडम्बना है, जनता क्या करे, किससे कहे, किसपर विश्वाश एवं भरोसा करे। देश किस दिशा में जाएगा, अथवा किस दिशा में ले जाएगा, यह अत्यधिक गंभीर समस्या है। परन्तु क्या कीजिएगा, कैसे कीजिएगा….. फिर सोचना पडेगा, …. की देश चलता है तो कैसे….. संविधान से अथवा राजनीति से……. क्योंकि संविधान तो कागज के पन्नों पर अंकित है, परन्तु पालन आदेशो के अनुसार ही होता है। तो यह एक अत्यंत गंभीर प्रश्न है। की आदेश कौन देता है। पालन कौन करवाता है। क्योंकि संविधान तो वास्तव में कागज के पन्नों पर है। जिसका पालन करवाया जाता है।
तो अब आदेश देने वाले को गंभीरता से देखना एवं समझना पड़ेगा। तो कैसे देखिएगा, कौन से यंत्र अथवा चश्में का प्रयोग कीजिएगा। जिससे साफ एवं स्पष्ट दिखाई दे। और स्थिति साफ एवं स्पष्ट हो जाए। परन्तु इतना आसान भी नहीं है राजनेताओं को समझना……. यह किसी भूलभुलैया की घोर अंधेरी बावलियों से कम नही होते। और न ही अपने आपको कम होने देते हैं। यदि कम होने का कही से भी, जरा सा भी आभास मात्र हो जाए फिर देखिए यह कितनी कसरत करते हैं। और किस किस प्रकार की कसरत करते हैं। शाब्दिक कसरत, शारीरिक कसरत, मानसिक कसरत, रांगिक कसरत, तथा रूपिक कसरत। शाब्दिक कसरत वह होती है जिसमें भाषणों का भंडार होता है, जहां भी खड़े हो जाते हैं बस भाषण पर भाषण दिए चले जाते हैं। चाहे मंच पर हों अथवा सामान रूप से धरती पर, या किसी प्रोग्राम जैसे शोक सभा, अथवा उत्सव में, इसकी परवाह नही करते, बस एक ही बात ध्यान में होती है बोलते रहना, जनता का ध्यान अपनी और आकर्षित करना। अब चाहे आकर्षण का केन्द्र उचित हो अथवा अनुचित, सामाजिक, हो अथवा असामाजिक, किसी की भावनाओं को क्षति पहुंचे अथवा सम्मान, इससे कोई लेना देना नहीं। बस वोट बैंक का आंकलन और जनाधार की गणना करते रहना।. गणना और आंकलन के आधार पर अपना समीकरण सही अथवा फिट होना चाहिए। और कुछ नहीं।.. समाज इससे जुड़ेगा अथवा टूटजाएगा इसकी कोई चिंता नहीं, क्योंकि नेता जी हैं। सत्ता एवं कानून का संरक्षण प्राप्त है। बची खुची कमी जो थी उसे राजनीतिक पद ने पूर्ण कर दी।. क्योंकि अब पद मिल गया, नाम के साथ अब विधायक जी अथवा सांसद जी लिखगया। तो अहंकार आना तो स्वाभाविक है। कारण की अंधे के हांथ बटेर लग गई। तथा बन्दर को अदरख मिलगई, तो दुरूपयोग होना तय है। मानसिक कसरत में समीकरण अपने पक्ष में बैठाले जाएंगे। चाहे जैसे हो, एन, केन, प्रकारणेंन, परन्तु सारे समीकरण अपने पक्ष में होने चाहिए। एवं रांगिक कसरत में, रंग रूप एवं चोला समीकरणों के अनुसार बदल लिया जाता है। तथा मुखवटा कुछ और वास्तविकता उसके विपरीत अथवा और कुछ।.. तथा रूपिक कसरत नेताओं की अत्यंत गंभीर होती है। जो किसी भी समय अपना रूप बदल लेते हैं।..चाहे किसी भी व्यक्ति की राजनीतिक हत्या करवानी क्यों न पड़े, अथवा बाद में अपने द्वारा किए गए कुकृत्य, हत्या किए गए शव को कंधा भी देना पड़े। सारा कार्य करने के लिए नेता जी प्रयाप्त हैं।.. बस समीकरण सिद्ध होना चाहिए। सत्ता की ठसक बाकी रखना है। और कुछ नही, यह रूपिक कसरत अत्यन गंभीर है। इसमे अपने और पराए की भी बली चढ़ा दी जाती है। क्योकि दूसरे पर आरोप लगाना होता है।.