रेकजाविक। भले ही भारत समेत तमाम देशों में महिलाएं पुरुषों की तुलना में समान वेतन के लिए संघर्ष कर रही हैं, लेकिन योरपीय देश आइसलैंड ने इस दिशा में बड़ा कदम उठाया है। आइसलैंड दुनिया का पहला ऐसा देश बन गया है, जहां पुरुषों को महिलाओं से अधिक वेतन देना अवैध करार दे दिया गया है।
नए कानून के मुताबिक 25 से अधिक कर्मचारियों वाली कंपनियों और सरकारी एजेंसियों को अपनी समान वेतन की नीति के लिए सरकार से प्रमाण-पत्र लेना होगा।
नए कानून के मुताबिक, जो कंपनियां समान वेतन की नीति पर चलती नहीं पाई जाएंगी, उन्हें जुर्माना भरना होगा। आइसलैंड वीमंस राइट्स असोसिएशन की बोर्ड मेंबर डैग्नी ऑस्क ने कहा, “इसके जरिये यह तय किया जाएगा कि महिलाओं और पुरुषों को समान वेतन मिले।”
ऑस्क ने कहा, “हमारे यहां यह नियम दशकों से ही रहा है कि पुरुषों और महिलाओं को समान वेतन मिलना चाहिए, लेकिन यह अंतर बढ़ गया है।”
विपक्ष ने भी किया फैसले का स्वागत –
विधेयक पारित होने के बाद यह कानून इसी साल की शुरुआत से यानी 1 जनवरी से लागू हो गया है।
बीते साल 8 मार्च को अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के मौके पर इसका ऐलान किया गया था। इस विधेयक का आइसलैंड की गठबंधन सरकार ने स्वागत किया था। इसके अलावा संसद की विपक्षी पार्टी ने भी स्वागत किया था, जहां 50 फीसदी के करीब सदस्य महिलाएं ही हैं।
वैश्विक सूची में शीर्ष पांच में था आइसलैंड –
वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम 2017 के ग्लोबल जेंडर गैप इंडेक्स में आइसलैंड शीर्ष पांच देशों में था। जबकि अमेरिका जैसा विकसित देश शीर्ष 10 देशों की सूची में जगह नहीं बना सका था। वहीं, आइसलैंड सरकार का लक्ष्य वर्ष 2020 तक महिला और पुरुषों में वेतन असमानता को पूरी तरह से खत्म करना है।
भारत में स्थिति खराब –
वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम 2017 के ग्लोबल जेंडर गैप इंडेक्स में भारत का स्थान 108 वां है। इसमें 144 देशों को शामिल किया जाता है। 2016 में इसका स्थान 87 था यानी भारत इस मामले में एक साल में 21 स्थान और नीचे आया है। यह इंडेक्स महिला पुरुषों के लिए चार मानकों शिक्षा, स्वास्थ्य और जीवित रहना, आर्थिक मौके और राजनीतिक सशक्तीकरण पर आधारित होता है।
भारत की कार्यस्थल पर महिला पुरुष समानता और महिलाओं को वेतन के मामले में स्थिति और खराब है। इस मामले में देश का स्थान 144 देशों में 136 वां है। यानी इसमें काफी सुधार की जरूरत है। भारत में औसतन 66 फीसदी महिलाओं को काम के बदले कुछ नहीं मिलता जबकि इस मामले में पुरुषों का प्रतिशत केवल 12 है।