
गत वर्ष मेरा एक लेख पूर्व ‘चतुर ही नहीं बल्कि शातिर भी हैं बाबा रामदेव’ शीर्षक के साथ उस समय प्रकाशित हुआ था जब रामदेव व उनके व्यवसायिक सहयोगी बालकृष्ण ने सुप्रीम कोर्ट में चल रहे पतंजलि आयुर्वेद के गुमराह करने वाले एक दवा विज्ञापन मामले में सर्वोच्च न्यायालय में बिना शर्त अपनी ग़लती की माफ़ी मांगी थी । उस समय ‘पतंजलि वेलनेस’ ने एक विज्ञापन प्रकाशित किया था जिसके माध्यम से एलोपैथी चिकित्सा पद्धति पर ग़लतफ़हमियां’ फैलाने का आरोप लगाया गया था। इसी विज्ञापन को लेकर इंडियन मेडिकल एसोसिएशन ने 17 अगस्त 2022 को सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की थी। इस याचिका में 22 नवंबर 2023 को पतंजलि के बालकृष्ण व बाबा रामदेव की उस पत्रकार वार्ता के विषय में भी बताया गया था जिसमें पतंजलि ने मधुमेह और अस्थमा को ‘पूरी तरह से ठीक’ करने का दावा किया था। इसी मामले की सुनवाई के दौरान अदालत ने पतंजलि को सभी भ्रामक दावों वाले विज्ञापनों को तुरंत बंद करने का आदेश देते हुये यह भी कहा था कि अदालत ऐसे किसी भी उल्लंघन को बहुत गंभीरता से लेगा और हर एक प्रोडक्ट के झूठे दावे पर 1 करोड़ रुपए तक जुर्माना लगा सकता है। इसी मामले में अवमानना नोटिस का जवाब न देने जैसी चतुराई करने पर बाबा रामदेव व आचार्य बालकृष्ण दोनों को 2 अप्रैल को अदालत में व्यक्तिगत रूप में पेश होने का निर्देश दिया था। तब इसी मामले में सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई से एक दिन पहले बाबा रामदेव और पतंजलि के एमडी आचार्य बालकृष्ण ने कोर्ट में हलफ़नामा दायर कर बिना शर्त माफ़ी मांगी थी और माफ़ीनामे में रामदेव और बालकृष्ण दोनों ने कहा था कि वे आदेश का पूरी तरह से पालन करेंगे और न्याय की गरिमा को बरक़रार रखेंगे।
परन्तु अपना उत्पाद बेचने लिये दूसरी कम्पनी के उत्पाद को बदनाम करने जैसा उनका शातिरपन इस बार उन्हें इतना मंहगा पड़ जायेगा यह शायद रामदेव ने सोचा भी न होगा। इसी लिये वे देश और पूरी दुनिया में गर्मियों में घर घर पाए जाने वाले लोकप्रिय शीतल पेय ब्रांड ‘रूह अफ़ज़ा ‘ की ओर इशारा करते हुये कुछ ऐसा बोल गये जिससे उनकी साम्प्रदायिक मानसिकता तो उजागर हो ही गयी साथ ही रूह अफ़ज़ा की बैठे बिठाये ज़बरदस्त मार्केटिंग भी हो गयी। गत दिनों रामदेव ने फ़ेसबुक पर एक वीडियो जारी करते हुये कहा था कि -‘ शरबत के नाम पर एक कंपनी है जो शरबत तो देती है लेकिन शरबत से जो पैसा मिलता है उससे मदरसे और मस्जिदें बनवाती है। अगर आप वह शरबत पिएंगे तो मस्जिद और मदरसे बनेंगे और पतंजलि का शरबत पिएंगे तो गुरुकुल बनेंगे, आचार्य कुलम बनेगा, पतंजलि विश्वविद्यालय और भारतीय शिक्षा बोर्ड आगे बढ़ेगा।” उन्होंने साथ ही आगे यह भी कहा कि – “इसलिए मैं कहता हूं ये “शरबत जिहाद” है। जैसे लव जिहाद, वोट जिहाद चल रहा है वैसे ही ‘शरबत जिहाद’ भी चल रहा है। रामदेव के इस विवादित व ज़हरीले बयान के बाद काफ़ी हंगामा खड़ा हो गया। “देश भर में बिक रहे अन्य शीतल पेय को लेकर भी रामदेव कहते रहे हैं कि- “गर्मियों में प्यास बुझाने के लिए सॉफ़्ट ड्रिंक के नाम पर लोग ठंडा मतलब ‘टॉयलेट क्लीनर’ पीते रहते हैं। ‘
दरअसल 1906 में दिल्ली में रूह अफ़ज़ा की शुरुआत हकीम हाफ़िज़ अब्दुल मजीद द्वारा हमदर्द लेबोरेटरीज़ की बुनियाद रखने के साथ की गयी थी। उन्होंने पारंपरिक यूनानी चिकित्सा की जड़ी-बूटियों और सीरप का उपयोग कर एक ऐसा पेय बनाया, जो गर्मी और हीट स्ट्रोक से राहत दे सके। इसी शीतल पेय का नाम रूह अफ़ज़ा रखा गया। अफ़ज़ा का शाब्दिक अर्थ है- “वह चीज़ जो आत्मा(रूह ) को तरोताज़ा कर दे।” रूह अफ़ज़ा आज पूरे विश्व में लोगों का इतना पसंदीदा व स्वीकार्य पेय बन चुका है कि यह बिना विज्ञापन के ही पूरी दुनिया में छाया हुआ है। और प्रत्येक वर्ष करोड़ों रूपये की विदेशी मुद्रा कमाकर भारत की अर्थ व्यवस्था में अपना महत्वपूर्ण योगदान देता है। शातिर रामदेव को शरबत जिहाद जैसे शब्दों से इसलिये भी परहेज़ करना चाहिए था कि उनके अपने उत्पाद दुनिया के कई मुस्लिम देशों में भी बिक रहे हैं। जिस मदरसे व मस्जिद से उन्हें चिढ़ है उसी मस्जिद व मदरसे से शिक्षित मौलवी मौलानाओं को अपने मार्केटिंग सहयोगी के तौर पर साथ लेकर वे अपने उत्पाद की मार्केटिंग ईरान सहित अन्य मुस्लिम देशों में करवाते देखे जा चुके हैं।
परन्तु दरअसल रामदेव के बार बार अनेक प्रोडक्ट फ़ेल होने के कारण और कई बार उनके उत्पाद की विश्वसनीयता संदिग्ध होने के चलते यहाँ तक कि भारतीय सेना द्वारा उनके कई उत्पादों का सेम्पल फ़ेल किये जाने के बाद उनके पतञ्जलि ब्रांड की बिक्री बंद होने लगी है। उनके उत्पाद के शोरूम तो हर जगह मिल जायेंगे परन्तु ग्राहक कहीं नज़र नहीं आता। इसीलिये वे निराशा व कुंठा का शिकार होकर पहले तो विदेशी बनाम स्वदेशी का हौव्वा खड़ा कर लोगों में देशभक्ति की भावना जगा कर अपना व्यवसाय खड़ा करने की कोशिश में थे। फिर एलोपैथी बनाम आयुर्वेद का विवाद खड़ा कर उसका लाभ उठाना चाहा जिसपर अदालत में उन्हें मुंह की खानी पड़ी। आख़िरकार इसी कुंठा व निराशा के शिकार रामदेव ने सुप्रसिद्ध स्वदेशी कम्पनी हमदर्द के विरुद्ध साम्प्रदायिकता का कार्ड खेलते हुये इसे ‘शरबत जिहाद ‘ तक बता डाला। और यहीं से इनकी हक़ीक़त उजागर हो गयी कि इन्हें अंग्रेज़ी या विदेशी से ही नहीं बल्कि स्वदेशी आयुर्वेदिक कम्पनी से भी आपत्ति है और उसमें भी इन्हें बुराई ही नज़र आती है?
वास्तविकता यह है कि झूठ कुंठा व अत्यधिक महत्वाकांक्षा पर खड़ा रामदेव का साम्राज्य अब लड़खड़ाने लगा है। स्वयं रामदेव का व्यक्तित्व अब योगगुरु के बजाय शुद्ध व्यवसायी बाबा का बन चुका है। इसी लड़खड़ाते व्यवसायिक साम्राज्य को बचाने के लिये ही रामदेव ने यह साम्प्रदायिक कार्ड खेला है। उन्हें उम्मीद तो थी कि ‘शरबत जिहाद ‘ कहने से उन्हें देश के बहुसंख्यक समाज का समर्थन मिल जायेगा परन्तु उसी बहुसंख्यक समाज ने रामदेव की इस बदकलामी का ऐसा मुंहतोड़ जवाब दिया कि ख़बरों के अनुसार रूह अफ़्ज़ा की बिक्री कई गुना बढ़ गयी। और अपने डूबते हुये व्यवसायिक साम्राज्य को बचाने के लिये ही रामदेव को साम्प्रदायिक कार्ड का सहारा लेना पड़ा और शीतल पेय में भी ‘शरबत जिहाद’ जैसी बेहूदा शब्दावली गढ़नी पड़ी।