रांची। देश में घोटाले का पर्याय बने मधु कोड़ा के जीवन का उतार-चढ़ाव रोचक रहा है। झारखंड के पश्चिम सिंहभूम जिले के पाताहातू में एक मजदूर परिवार में पैदा हुए कोड़ा का आरंभिक जीवन गरीबी में गुजरा। वे ठेका मजदूर रह चुके हैं। उन्होंने राजनीति की शुरुआत ठेका मजदूरों की यूनियन से की।
झारखंड गठन के बाद पहले चुनाव में कोड़ा ने सफलता का स्वाद चखा। वे पंचायती राज मंत्री बने। वे पहली बार भाजपा के टिकट पर जगन्नााथपुर से चुनाव लड़े थे। वे 2003 में अर्जुन मुंडा की सरकार बनने के बाद भी पंचायती राज मंत्री पद पर काबिज रहे। 2005 के विधानसभा चुनाव में उन्हें भाजपा का टिकट नहीं मिला तो उन्होंने निर्दलीय दावेदारी की। इस चुनाव में भी उन्हें सफलता मिली। उन्होंने तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा की अगुवाई में बनी सरकार का समर्थन किया।
निर्दलीय सीएम बन रचा इतिहास
सितंबर, 2006 में मधु कोड़ा और अन्य तीन निर्दलीय विधायकों ने अर्जुन मुंडा की सरकार से अपना समर्थन वापस ले लिया। इसके बाद सरकार अल्पमत में आ गई। बाद में संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन ने उन्हें मुख्यमंत्री के रूप में स्वीकार किया। कोड़ा के नेतृत्व में सरकार बनाई, जिसमें झामुमो, राजद, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी, फॉरवर्ड ब्लॉक समेत तीन निर्दलीय विधायक शामिल थे। कांग्रेस ने उन्हें बाहर से समर्थन दिया था। वे भारत के किसी भी प्रांत के पहले निर्दलीय मुख्यमंत्री रहे। इसके लिए उनका नाम लिम्का बुक ऑफ वर्ल्ड रिकार्ड में शामिल किया गया।
पत्नी संभाल रहीं विरासत
मधु कोड़ा का आरंभिक वैवाहिक जीवन विवादास्पद रहा। अभी उनकी पत्नी गीता कोड़ा जगन्नााथपुर से विधायक हैं। वह फिलहाल रघुवर दास के नेतृत्व वाली सरकार को समर्थन दे रही हैं।