मम्मी-पापा हैरान-परेशान थे। उनका इकलौता बेटा पप्पी झूठ बोलने लग गया था। कुछ दिन पहले पप्पी के पापा की जेब से 10 रुपए निकल गए थे। पहले तो उन्होंने इस बात को गंभीरता से न लिया लेकिन जब परसों उसके मम्मी के पर्स में से 20 रुपए का एक नोट गायब पाया गया तो मम्मी-पापा की परेशानी और बढ़ गई। पापा के शक की उंगली पप्पी की तरफ उठ रही थी लेकिन अभी उन्होंने यह बात अपने दिल में ही छुपाई हुई थी। वे घर में हो रही हरकतों पर आंख रखने लगे।
पप्पी में अब पहले से काफी परिवर्तन आया हुआ था। वह घर भी लेट आने लगा था। पिछले वर्ष वह अपनी कक्षा में आगे बैठने वाले विद्यार्थियों में से एक था लेकिन इस वर्ष वह उन लड़कों के साथ घूमता नजर आता जो कक्षा में पीछे बैठते थे और प्रायः मुर्गा बनते रहे थे। उनको अध्यापक जी नालायक टोली कहा करते थे।
मम्मी के पूछने पर पप्पी घर लेट आने का कोई न कोई बहाना बना ही लेता। कभी कहता, उसकी साइकिल की हवा निकल गई थी। कभी कहता, किसी दोस्त के घर कापी या किताब लेनी थी, उधर चला गया था और कभी स्कूल में फंक्शन होने की बात कहता।
आखिर एक दिन बिल्ली थैले से बाहर आ ही गई। पप्पी घर काफी देर के बाद आया। फिर बैड पर लेट गया। जल्दी ही उसकी झपकी लग गई। पापा ने उसे सोया हुआ देखकर उसका बैग उठाया। उसकी तलाशी ली। जब ताश की एक डिबिया उनके हाथ लगी तो वह सन्न रह गए। अब उनका शक असलियत में बदलने लगा। उन्होंने पप्पी के बस्ते में उसी तरह किताबें-कापियां डाल दीं और साथ ही ताश की डिबिया भी। अगला दिन शनिवार था। पप्पी ने मम्मी से स्कूल की फीस के तौर पर 20 रुपए लिए। फीस के पैसे जेब में डालकर वह स्कूल की तरफ रवाना हो गया।
वास्तव में अभी स्कूल में फीस देने की आखिरी तिथि में पांच दिन पड़े थे। पप्पी ने मम्मी को बोला था, मम्मा स्कूल की फीस दो न। कल आखिरी दिन है फीस जमा करवाने का। वर्ना जुर्माना लग जाएगा।
शनिवार का दिन होने के कारण स्कूल से जल्दी छुट्टी हो गई थी। हमेशा की तरह पप्पी अपने दोस्तों जग्गी, बिट्टू और हैप्पी के साथ एक उजड़े से घर के पास आ गया। फिर वे सभी ताश खेलने में व्यस्त हो गए। पप्पी इस बात से बिल्कुल बेखबर था कि उसे कोई दूर खड़ा देख रहा है। सभी दोस्त काफी देर तक ताश खेलते रहे। पप्पी जुए में बीस के बीस रुपए हार गया।
जब वह घर लौटा तो पापा ने उससे फीस के बारे में पूछा तो बोला, जमा करवा दी थी पापा।
इतना कहकर वह फिर इधर-उधर हो गया ताकि पापा उससे कोई और ऐसा सवाल न पूछ लें जिससे असलियत सामने आ जाए।
पप्पी का चेहरा मुरझाया हुआ था। पापा ने मम्मी को उसकी सारी हरकत बता दी थी। यह सुनकर मम्मी का दिल और भी दुखी हुआ। उनका दिल करता था कि पप्पी की गाल पर जबरदस्त चांटा लगाए लेकिन पापा ने रोक दिया, बोले, इसको मारपीट से नहीं, प्यार से किसी योजना द्वारा समझा कर देखता हूं। हो सकता है, असर हो ही जाए।
पप्पी के पापा ने उसके बैग से ताश की डिबिया निकाली और उसमें एक नोट लिख कर रख दिया। इस पर लिखा था, ताश खेलने की आदत न केवल जुआरी बनाती है बल्कि झूठ बोलने की आदत भी डाल देती है। जुएबाज की जिंदगी बर्बाद हो जाती है। फैसला तुम्हारे हाथ में है कि तुम बड़े होकर क्या बनना चाहते हो?
-तुम्हारे पापा।
स्कूल से घर लौटते समय आज फिर पप्पी अपने दोस्तों के साथ ताश खेलने के लिए बैठा तो डिबिया में से एक छोटा-सा पत्र निकला। इस पत्र को खोलते समय अचानक ही उसके दिल की धड़कनें तेज हो गईं। वह पत्र पढऩे लगा। उस पत्र को पढ़कर पहले तो वह कुछ देर तक सोचता रहा लेकिन फिर पैसों की शर्त लगाकर जुआ खेलने लगा। झूठ बोलना भी उसे ताश के खेल ने ही सिखाया था। वह मन ही मन शर्मसार होने लगा। उसे इस बात की और भी शर्म आ रही थी कि पापा को उसकी हरकतें पता चल जाने के बावजूद भी उसे मारपीट नहीं की।
पत्र में लिखे शब्दों में पता नहीं क्या जादू था? वह अपने दोस्तों को ताश सौंपता हुआ बोला, ये लो ताश। आज से तुम ही खेलो। आगे से कभी ताश नहीं खेलूंगा।
दोस्तों ने यह सुना तो उनकी हैरानी बढ़ गई। उन्होंने भी वह पत्र पढ़ा। सभी एक-दूसरे का मुंह ताकने लगे। फिर वे एक-दूसरे का हाथ पकड़कर बोले, हमारा भी यह फैसला है।
पप्पी ने ताश के टुकड़े-टुकड़े कर डाले। पप्पी की जिंदगी में परिवर्तन आ गया। एक रात को मम्मी-पापा ने देखा, पप्पी टेबल लैंप लगाकर पढऩे में व्यस्त था। यह देखकर पापा बोले, कई बार बच्चे को डांट की बजाय प्यार की युक्ति से समझाना उचित होता है।
बिल्कुल ठीक कहा आपने। मैं आपकी युक्ति को मान गई हूं। मम्मी बोली।
इस बार वार्षिक परीक्षा में पप्पी ने इतने अंक प्राप्त किए जो मम्मी-पापा को हैरान करने के लिए काफी थे।