नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने द्वितीय राष्ट्रीय न्यायिक वेतन आयोग की सिफारिशें स्वीकार करते हुए इसके कार्यान्वयन की निगरानी के लिए सभी उच्च न्यायालयों में एक समिति गठित करने का आदेश दिया है।
मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला तथा न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने कहा कि यह गंभीर चिंता का विषय है कि अन्य सेवाओं के अधिकारियों ने एक जनवरी 2016 तक अपनी सेवा शर्तों में संशोधन का लाभ उठाया, लेकिन न्यायिक अधिकारियों से संबंधित ऐसे ही मुद्दे आठ साल बाद भी अंतिम निर्णय का इंतजार कर रहे हैं।
पीठ ने कहा कि इस बात पर जोर देने की जरूरत है कि न्यायाधीशों को उनके कार्यकाल के दौरान और सेवानिवृत्ति के बाद भी सुविधाएं प्रदान करना न्यायपालिका की स्वतंत्रता से जुड़ा है।
पीठ ने चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि जो न्यायाधीश सेवा से सेवानिवृत्त हो गए हैं या जिन लोगों का निधन हो गया, उनके परिवार के पेंशनभोगी भी समाधान का इंतजार कर रहे हैं।
पीठ ने कहा, “न्यायिक अधिकारियों के लिए काम की सम्मानजनक स्थिति सुनिश्चित करना राज्य (सरकार) का एक सकारात्मक दायित्व है। वह वित्तीय बोझ या व्यय में वृद्धि का हवाला देकर अपने दायित्व से नहीं बच सकती।”
शीर्ष अदालत ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को निर्देश दिया कि वे निर्देशों का शीघ्रता से पालन करें और न्यायिक अधिकारियों, सेवानिवृत्त न्यायिक अधिकारियों और पारिवारिक पेंशनभोगियों को बकाया वेतन, पेंशन और भत्तों के भुगतान को 29 फरवरी 2024 या उससे पहले गणना और भुगतान सुनिश्चित करें।
पीठ ने सभी उच्च न्यायालय के दायरे में काम करने वाली प्रत्येक ‘जिला न्यायपालिका की सेवा शर्तों के लिए समिति’ को उच्च न्यायालय के रजिस्ट्रार जनरल के माध्यम से 7 अप्रैल 2024 को या उससे पहले एक रिपोर्ट दाखिल करने का भी निर्देश दिया।
पीठ ने नौ जनवरी 2024 को जारी एक लिखित आदेश में अपने निर्देश जारी करते हुए कहा कि न्यायिक स्वतंत्रता तभी तक सुनिश्चित और बढ़ाई जा सकती है जब तक न्यायाधीश हैं।
पीठ ने जिला न्यायपालिका के सदस्यों के महत्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि वे उन नागरिकों के लिए जुड़ाव का पहला बिंदु हैं, जो विवाद समाधान की आवश्यकता का सामना कर रहे हैं।
शीर्ष अदालत ने यह भी कहा कि न्यायाधीश के काम का मूल्यांकन केवल अदालत के कामकाजी घंटों के दौरान उनके कर्तव्यों के आधार पर नहीं किया जा सकता है।